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Ayesha Suicide Case : ऐसी मुस्कुराहटें बहुत भारी होती हैं....

Ayesha Suicide Case : ऐसी मुस्कुराहटें बहुत भारी होती हैं.... - Ayesha Suicide Case
मुस्कुराहटें, मासूमियत कहीं बोझिल होती हैं भला, वह तो ज़िंदगी को हल्का फुल्का बनाती है। दुःख के घने सायों में मुस्कुराहटें ही तो वह जुगनू है जो जगमगाती है, रोशनी जगाती है, लेकिन ऐसे कैसे मुस्कुराती रही तुम आयशा कि तुम्हारी मुस्कुराहट हमारे दिल पर बोझ बनकर छा गई, तुम्हारी मासूमियत यूं उदास कर गई सारे जहां को। 
 
एक और खाली पन बेनूरी सी दे गई नकली रौशनियों से, दिखावे के नूर से जगमगाती दुनिया को। तुमने जाने से पहले शायद महसूस किया होगा की उस दिन हवाएं भी भारी थी, नदी का पानी भी थर थर काँप रहा था किसी अनहोनी की आशंका से, जब दुनिया से खूबसूरती, मासूमियत, अच्छाई विदा लेती है तो कुदरत भी अपनी असहायता पर, विवशता पर सिर धुनती है। 
 
अजीब सी उदासी छा जाती है दुनिया के वजूद पर। 
 
 तुमने शायद देखा नहीं घर से निकलते वक्त तुम्हारे कुर्ते का हिस्सा दरवाजे में अटका होगा, शायद तुमने महसूस किया होगा कि गली के नुक्कड़ पर बीसियों खड़े रहने वाले  रिक्शों में से एक भी उस दिन वहां मौज़ूद नहीं था, यह सब इशारे थे कुदरत के, तुम्हें रोक रही थी, क्या याद नहीं नाव वाले ने नाव ले जाने से मना कर दिया था, तुम्हारी ज़िद पर बड़ी देर बाद किसी को तरस आया होगा, और अब वह भी पछता रहा होगा, अब कभी किसी अकेली लड़की को बीच नदी में अकेले नहीं ले जाएगा। 
 
तुम्हारी उम्र और अनुभव बहुत छोटे थे, शायद इतनी छोटी सी ज़िंदगी में तुम्हें बड़े दुःख मिले इसलिए तुमने मान लिया कि दुनिया बहुत बुरी है और इंसानों की शकल अब ना देखने को मिले तो अच्छा, पलभर को तुम्हारी बात सुनकर हम भी सोचने लगे कि सचमुच यह दुनिया बड़ी संगदिल है और किसी मासूमियत के लिए इसमें जगह नहीं।
 
 लेकिन...लेकिन...हम इस दुनिया के लोग तुमसे यह कहना चाहते हैं कि अपने एक कड़वे अनुभव से सारी दुनिया को बुरा मान लेना गलत है और यह गलती हर वह इंसान करता है जो तुम्हारी तरह कम उम्र का नादान फरिश्ता होता है, वह अपनी दुनिया, अपने दुःख को ही सच मान इस दुनिया के लिए रुसवाई लिए रुखसत हो जाता है, और यह कायनात ठगी सी सोचने लगती है कि क्या सचमुच दुनिया इतनी बुरी है। 
 
 
थोड़ा रुकती, थोड़ा ठहरती, अपनी मासूमियत में हौसले और सब्र का रंग मिलाती, तो देख पाती कि यह दुनिया हर मजबूत इंसान का इस्तकबाल करती है, उसपर नैमते लुटाती है, हिम्मते मर्दा, मदद- ए- ख़ुदा। इल्म की ताकत  साथ ले जुर्म के खिलाफ लड़ती तो अपने जैसी न जाने कितनी मासूमों के लिए नज़ीर बन सकती थीं। 
 
 रुकती तो देख पाती कि यह दुनिया केवल मायूसी का दयार नहीं है, खुशियों की वजह भी है, देख पाती कि नफ़रत ही नहीं बहुत प्यार भी है यहां, कि ज़िंदगी जहन्नुम ही नहीं जन्नत भी है। जानती हूं कहना बहुत आसान है, क्योंकि जिस पर गुज़रती है वो जानता है, लेकिन हंस कर मौत को गले लगाने वाली तुम, तुम्हें कमज़ोर कैसे मानूं, हां बहुत नाज़ुक थी जो 2 साल के इस बुरे अनुभव को दिल से लगा बैठी। 
 
इतना सारा प्यार और मासूमियत लेकर कोई मरता है क्या, इतना सारा प्यार लेकर तो जीना चाहिए और उस प्यार से रौशन कर देना चाहिए खुद के और दूसरों के जीवन को, इतना सारा प्यार अपने साथ ले जाकर इस दुनिया को अपने प्यार से, मासूमियत से मरहूम कर तुमने ठीक नहीं किया। तुम्हारी मुस्कुराहट बहुत भारी है उससे भी भारी है तुम्हारा हारकर यूं चल देना।
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