मां के आंचल की छाया
दीपाली पाटील
देखो पहाड़ की चोटी पर बंजारे बादलों ने डेरा डाला हैकुछ बूंदें समेटने के लिएधरती ने आंचल फैलाया है। स्नेह भरा एक आंचलसूना-सा एक गांव, बंजर-सी एक धरतीहमारी तकते हैं राहक्या सताते नहीं तुम्हेंवो मिटटी, आंगन, अश्वत्थ की छाया अक्सर बाबा की मार से बचाती मां के आंचल की छाया कितने प्यार से मां ने तुम्हें '
अश्वत्थ' ये नाम दिया थाउसके जैसे बड़े और आराध्य बनो मां ने ये वरदान दिया थामां की सूनी आंखों को अब स्नेह की बौछारों की जरुरत हैगर्मी में चूल्हा फूंकती मां कोतुम्हारी छांह की जरुरत हैबादलों से एक पोटली उधार लेकरआओ हम भी लौट चले,शतरंज की शह-मात छोड़करआओ हम भी लौट चले, तुम बन जाओ माली फिर सेहम फूलों से एक बाग भरेसूनी है मां की गोद कब सेआओ हम आबाद करें।