महाभारत में ऐक से एक योद्धा था। कर्ण से भी महान योद्धा बर्बरिक था लेकिन उसे युद्ध करने का मौका ही नहीं मिला। अश्वत्थामा भी एक महान योद्धा था लेकिन उसकी महानता तब समाप्त हो गई जब उसने सोते हुए पांडव पुत्रों को मार दिया। एकलव्य को भी महान माना जाता सकता है लेकिन वह भी युद्ध नहीं लड़ा तब उसकी महानता कैसे सिद्ध होती? द्रोण, भीष्म और श्रीकृष्ण को हम इसमें शामिल नहीं कर सकते हैं क्योंकि वे तो देवता थे।
दरअसल, कर्ण ही एक ऐसे सर्वश्रेष्ठ योद्धा थे जिन्होंने विपरीत परिस्थिति के बावजूद खुद को एक श्रेष्ठ योद्धा के रूप में स्थापित किया था और वह भी धर्मसम्मत रूप से। आओ जानते हैं कर्ण के बारे में वे तथ्य जिनके कारण उन्हें महान योद्धा माना जा सकता है।
1. अर्जुन का साथ देने के लिए जगत के स्वामी थे लेकिन कर्ण का साथ देने के लिए दुर्योधन ही था। अर्जुन पूर्णत: श्रीकृष्ण पर आश्रित थे जबकि इधर दुर्योधन खुद कर्ण पर आश्रित था।
2. कर्ण को द्रोण ने वह संपूर्ण शिक्षा नहीं दी, जो उन्होंने पांडवों या कौरवों को दी थी। फिर भी कर्ण ने परशुराम से बची हुई शिक्षा छल से हासिल कर ली थी। यदि कर्ण, अर्जुन के बराबर योग्य नहीं होता तो भगवान परशुराम कर्ण को शिक्षा देने के लिए तैयार नहीं होते।
3. कर्ण एक सच्चा मित्र होने के साथ-साथ ही दानवीर भी था। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण इस बात की पुष्टि करते हैं कि कर्ण से बड़ा दानी कोई नहीं। कर्ण जब यह जान गया कि मेरी माता कौन है और मेरे भाई कौन है तब भी उसने मित्रता का धर्म निभाया।
4. श्रीकृष्ण की योजना के तहत कर्ण के कवच और कुंडल को छलपूर्वक अर्जुन के पिता इंद्र द्वारा हथिया लेने के बावजूद कर्ण ने युद्ध को एक योद्धा की तरह लड़ा।
5. कर्ण ने जरासंध को अकेले हराया था, वहीं भीम ने श्रीकृष्ण की मदद से जरासंध को छल के द्वारा मारा था।
6. कर्ण के पास भगवान परशुराम द्वारा दिया गया शिव का विजय धनुष था। यह धनुष जिस भी योद्धा के हाथ में होता था, उस योद्धा के चारों तरफ एक ऐसा अभेद्य घेरा बना देता था जिसे भगवान शिव का पाशुपतास्त्र भी भेद नहीं सकता था। कर्ण को महाभारत में तब तक नहीं मारा जा सकता था, जब तक कि उसके हाथ में वह धनुष था।
7. कर्ण ने कुंती को वचन दिया था कि वो उनके 4 पुत्रों की जान नहीं लेगा लेकिन वह सिर्फ अर्जुन से ही युद्ध करेगा। युद्ध के दौरान ऐसे कई मौके आए भी, जब कर्ण का सामना भीम, युधिष्ठिर, नकुल और सहदेव के साथ हुआ। वो चाहता तो उन सभी को मार सकता था किंतु उसने ऐसा नहीं किया, क्योंकि एक योद्धा का वचन ही उसके लिए सर्वश्रेष्ठ होता है।
8. जिस द्रुपद को 105 भाई मिलकर जीत नहीं पाए, उसे कर्ण ने दिग्विजय के दौरान अकेले ही हराया था। प्राग्ज्योतिष का राजा भगदत्त जिसे राजसूय यज्ञ के दौरान अर्जुन नहीं हरा पाए थे, उसे भी कर्ण ने हराया था।
9. अश्वसेन बाण का संधान दोबारा न करना, यह भी श्रेष्ठता का प्रमाण है। अश्वसेन एक नाग था, जो कर्ण के धनुष पर चढ़ गया था और उसने कहा था कि तुम मेरा संधान करो, तो मैं वहां पहुंचकर अर्जुन को डंसकर अपना बदला पूरा करूंगा, क्योंकि अर्जुन ने खांडव वन दाह के समय मेरी माता को मारा था। लेकिन कर्ण ने अश्वसेन को इंकार कर दिया था।
10. जब श्रीकृष्ण ने कर्ण को यह बताया कि तुम पांडवों के सबसे बड़े भाई हों, तो कर्ण ने कहा कि हे कृष्ण! मेरी मृत्यु तक पांडवों को यह मत बताना कि मैं उनका बड़ा भाई हूं। अन्यथा उनकी लड़ाई मेरे प्रति कमजोर पड़ जाएगी। कर्ण की यह बात सिद्ध करती है कि वह पांडवों के प्रति किसी भी षड्यंत्र मैं शामिल नहीं था, फिर भी युद्ध के सामने योद्धाओं की तरह ही लड़ा।
11. महाभारत के एक प्रसंगानुसार जब कर्ण के बाणों के प्रहार से अर्जुन का रथ कुछ इंच पीछे चला जाता है और कृष्ण उसकी प्रशंसा करते हैं तब अर्जुन कहता है कि मेरे बाणों से कर्ण का रथ कई गज पीछे चला गया, तब आपने मेरी प्रसंशा नहीं की? अर्जुन की इस बात पर भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि कर्ण के रथ पर कर्ण और महाराज शल्य बैठे हैं, परंतु तुम्हारे रथ पर मैं यानी भगवान नारायण और महावीर हनुमान बैठे हैं तब भी कर्ण ने तुम्हारा रथ पीछे धकेल दिया। सोचो यदि महावीर हनुमान नहीं होते तो क्या होता?