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भीष्म पितामह की यह 10 नीतियां जो अपनाएगा, बनेगी उसी की सरकार

भीष्म पितामह की यह 10 नीतियां जो अपनाएगा, बनेगी उसी की सरकार - bhishma pitamah policy
लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं। कांग्रेस सहित सभी विपक्ष भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के खिलाफ अभियान चला रहे हैं। वर्तमान में कई लोग अपना दल छोड़कर दूसरे दल में जा रहे हैं। कोई गठबंधन कर रहा है तो कोई तोड़ रहा है। महाभारत के युद्ध के समय भी यही हुआ था। शल्य पांडवों के खेमे को छोड़कर कौरव तो युयुत्स कौरवों के खेमे को छोड़कर पांडवों के खेमे में चले गए थे। आओ जानते हैं कि राजनीति के बारे में क्या कहती है भीष्म नीति।
 
 
भीष्म ने युद्ध के पहले और बाद में बहुत ही महत्वपूर्ण बातें कही थी। ऐसी कई बातें थी जिसे उन्होंने धृतराष्ट्र, दुर्योधन, कृष्ण, अर्जुन और युधिष्ठिर से कहा था। शरशय्या पर लेटे भीष्म ने युधिष्ठिर को संबोधित करके सभी को उपदेश दिया। उनके उपदेशों में राजनीति, नीति, जीवन और धर्म की गूढ़ बाते होती थी। आओ जानते ही कि भीष्म ने क्या कहा था।
 
 
1.महाभारत के युद्ध के पहले जब श्रीकृष्ण संधि के लिए हस्तिनापुर आए थे तब भीष्म ने दुर्बुद्धि दुर्योधन को यह कहकर समझाया था कि जहां श्रीकृष्ण है, जहां धर्म है, उसी पक्ष की जीत होनी निश्चित है। इसलिए बेटा दुर्योधन! भगवान कृष्‍ण की सहायता से तुम पांडवों के साथ संधि कर लो, यह संधि के लिए बड़ा अच्छा अवसार हाथ आया है।
 
 
टिप्पणी- वर्तमान में कौन कौरव या पांडव है यह तो कहना सही नहीं होगा। जनता ही तय करती है कि भारत की वर्तमान राजनीति में महागठबंधन और भाजना के गठबंधन में कौन कौरव और कौन पांडव है। लेकिन यह भी तय करना मुश्‍किल है कि कृष्ण कौन है और किधर है।
 
 
2. ऐसे वचन बोलो जो, दूसरों को प्यारे लगें। दूसरों को बुरा भला कहना, दूसरों की निन्दा करना, बुरे वचन बोलना, यह सब त्यागने के योग्य हैं। दूसरों का अपमान करना, अहंकार और दम्भ, यह अवगुण है।
 
 
टिप्पणी- वर्तमान में सभी पार्टियों द्वारा आरोप-प्रत्यारोप लगाए जा रहे हैं। सोशल मीडिया लगी हुई है कई फेक और भ्रामक मैसेज या वीडियो वायरल करने में। हालांकि यह भी सही है कि जनता यह सब समझती है कि क्या सही है और क्या गलत। जनता उसे ही चुनेगी जो सही है।
 
 
3. त्याग के बिना कुछ प्राप्त नहीं होता। त्याग के बिना परम आदर्श की सिद्धि नहीं होती। त्याग के बिना मनुष्य भय से मुक्त नहीं हो सकता। त्याग की सहायता से मनुष्य को हर प्रकार का सुख प्राप्त हो जाता है।
 
 
टिप्पणी- सत्ता का लालच को सभी पार्टियों को है। पद, प्रतिष्ठा और रुपया देखकर ही यदि राजनीति में आए हैं तो ज्यादा समय तक संभवत: चल नहीं पाए क्योंकि एक दिन जनता समझ ही जाएगे। जिसके मन में देशप्रेम, जनता की सेवा और त्याग की भावना है वही लोकप्रिय बनता है।
 
 
4. सुख दो प्रकार के मनुष्यों को मिलता है। उनको जो सबसे अधिक मूर्ख हैं, दूसरे उनको जिन्होंने बुद्धि के प्रकाश में तत्व को देख लिया है। जो लोग बीच में लटक रहे हैं, वे दुखी रहते हैं।
 
 
टिप्पणी- यह बिल्कुल ही सही है। हमारी राजनीति में अधिक मूर्थों की तादाद भी कम नहीं है। कम पढे-लिखे और अपराधी लोग भी राजनीति में सक्रिय है। जहां कि बुद्धिमान लोगों का सवाल है तो वे राजनीति में कम ही सक्रिय है। ऐसे में बैचारी जनता के समक्ष चुनाव करने का भी धर्मसंकट ही रहता है।
 
 
5.जो पुरुष अपने भविष्य पर अधिकार रखता है (अपना पथ आप निश्चित करता है, दूसरों की कठपुतली नहीं बनता) जो समयानुकूल तुरन्त विचार कर सकता है और उस पर आचरण करता है, वह पुरुष सुख को प्राप्त करता है। आलस्य मनुष्य का नाश कर देता है।
 
 
टिप्पणी- राजनीति में अधिकतर नेता को कठपुतलियों की तरह ही काम करते हैं। दरअसल, शीर्ष स्तर का राजनेता वही बनता है जिसने अपना रास्ता खुद बनाया है और जो हर हाल में उसी पर चलता है। भारत में कई ऐसे नेता है जो कि दलों में शामिल होते वक्त यह नहीं सोचते हैं कि मेरी विचारधारा क्या है। ऐसे में उन्हें जीवन के एक मुकाम पर दूसरा दल चुनना होता है। ऐसे अधिकतर दलबदलु न घर के रहते हैं और न घाट के।
 
 
6.सनातन काल से जब-जब किसी ने स्त्री का अपमान किया है, उसका निश्चित ही विनाश हुआ है। भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताया कि, स्त्री का पहला सुख उसका सम्मान ही है। उसी घर में लक्ष्मी का वास रहता है, जहां स्त्री प्रसन्न रहती है। जिस घर में स्त्री का सम्मान न हो और उसे कई प्रकार के दुःख दिए जाते हो, उस घर से लक्ष्मी सहित अन्य देवी-देवता भी चले जाते हैं।
 
 
टिप्पणी- जो दल, नेता और देश स्त्री का उचित सम्मान नहीं करता और जहां स्त्री के साथ बुरा व्यवहार किया जाता है। वह दल, नेता और देश अंतत: विनाश की ओर ही अग्रसर होने लगते हैं। दलों को चाहिए कि वे संगठन में महिलाओं की संख्या अधिक से अधिक बढ़ाकर महिलाओं को जिम्मेदारी सौंपे। उन्हें भी राज करने का अधिकार है।
 
 
7.भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताया कि जब नदी पूरे वेग के साथ समुद्र तक पहुंचती है तो बड़े से बड़े वृक्ष को बहाकर अपने साथ ले जाती है। एक बार समुद्र ने नदी से पूछा कि तुम्हारा जल प्रवाह इतना तेज और शक्तिशाली है कि उसमें बड़ा से बड़ा पेड़ बह जाता है लेकिन ऐसा क्या है कि छोटी घास, कोमल बेल और नरम पौधों को बहाकर नहीं ला पाती? नदी ने कहा कि जब मेरे जल का बहाव आता है तो बेलें अपने आप झुक जाती है। किंतु पेड़ अपनी कठोरता के कारण यह नहीं कर पाते हैं, इसीलिए मेरा प्रवाह उन्हें उखाड़कर बहा ले आता है।
 
 
टिप्पणी- इसके दो अर्थ है पहला यह कि जो व्यक्ति विपरित परि‍स्थिति में विनम्र होकर रहता है वह बच जाता है। दूसरा यह कि कोई व्यक्ति कैसी भी परिस्थिति हो यदि उसका विनम्र स्वभाव है तो वह लोगों में लोकप्रिय तो होगा है साथ ही वह हर तरह के संकटों को जी लेगा। हमने देखा है कि पद, प्रतिष्ठा और रुतबा बढ़ने के बाद नेता लोग जनता से दूरी बना लेते हैं लेकिन जब चुनाव आते हैं तो उनमें से कई फिर से पूंछ हिलाते हुए आ जाते हैं। हालांकि जनता सब समझती है। जनता नदी की तरह है।
 
 
8. भगगाव श्रीकृष्‍ण की तरह भीष्म पितामह ने भी कहा था कि परिवर्तन इस संसार का अटल नियम है और सबको इसे स्वीकारना ही पड़ता है क्योंकि कोई इसे बदल नहीं सकता।
 
 
टिप्पणी- विज्ञान के साथ ही दुनिया बदल रही है, लोगों की सोच बदल रही है। चारों तरफ विकास हो रहा है। लोगों का जीवन स्तर सुधर रहा है। ऐसे में सभी को जमाने के साथ बदला ही होता है। नई सोच, नया जोश और नई उमंग ही वर्तमान की मांग है। जो नेता, दल और संगठन खुद को बदलना नहीं जानता वह दुनिया की रेस में पीछे हो जाता है।
 
 
9.भीष्म पितामह ने कहा था कि एक शासक को अपने पुत्र और अपनी प्रजा में किसी भी प्रकार का कोई भी भेदभाव नहीं रखना चाहिए। ये शासन में अडिगता और प्रजा को समृद्धि प्रदान करता है।
 
 
टिप्पणी- वर्तमान में देखा गया है कि नेता हो या मंत्री सभी पुत्र और परिवार के मोह में देश और जनता को भूल गए हैं। हर कोई एक श्रेष्ठ कार्यकर्ता, नेतृत्वशील योग्य व्यक्ति को आगे बढ़ने से रोककर अपने ही रिश्‍तेदार, पुत्र, पुत्री, भाई या भतीजे को टिकट, पद या संगठन में महत्वपूर्ण भूमिका देने में लगा है।
 
 
कई वर्षों से जो कार्यकर्ता पार्टी के लिए निस्वार्थ कार्य कर रहा है उसकी वर्तमान में कोई कीमत नहीं रह गई है, क्योंकि यदि वह पार्टी छोड़कर भी जाता है तो उसकी जगह दूसरा कोई आ जाएगा। दरअसल, अधिकतर दल के संस्थापक अपना दल ऐसे ही चलाते हैं जैसे कि एक दुकाम मालिक या कंपनी का मालिक कंपनी चलाता है। भारत में ऐसे कई दल है जो प्रांतीय, राष्ट्रीय या किसी विचारधारा के न होकर परिवार के दल हैं।
 
 
10.भीष्म पितामह ने कहा था कि सत्ता सुख भोगने के लिए नहीं, अपितु कठिन परिश्रम करके समाज का कल्याण करने के लिए होता है।
 
टिप्पणी- वर्तमान में तो सभी नेता सत्ता का सुख भोग रहे हैं। देश और समाज कल्याण की भावना को बहुत कम नेताओं में रही है। इससे आने वाले समय में देश का पतन ही होगा और होता रहा है।
 
संदर्भ- महाभारत
 
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