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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : गुरुवार, 24 नवंबर 2022 (15:58 IST)

आदिवासी और दलित पर क्यों फोकस हुई राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा?

मध्यप्रदेश में भारत जोड़ो यात्रा में आदिवासी और दलित वोट बैंक को साधने का कांग्रेस का गेमप्लान!

आदिवासी और दलित पर क्यों फोकस हुई राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा? - Why did Rahul Gandhi Bharat Jodo Yatra focus on tribals and Dalits?
2024 लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस की सियासी जमीन तैयार करने के लिए कन्याकुमारी से कश्मीर तक भारत जोड़ो यात्रा निकाल रहे राहुल गांधी इन दिनों मध्यप्रदेश में है। मध्यप्रदेश जिसे देश का हद्य प्रदेश के साथ भाजपा के गढ़ के रूप में पहचाना जाता है वहां पर कांग्रेस ने अपने परंपरागत दलित और आदिवासी वोटरों को फिर अपने से जोड़ने के लिए पूरी ताकत लगा रही है। आज भारत जोड़ो यात्रा में राहुल और प्रियंका आदिवासी रंग में रंगे नजर आने के साथ खंडवा में बड़ौदा के अहीर में आदिवासी नायक टंट्या भील की जन्मस्थली पहुंचकर उन्हें श्रदांजालि दी। वहीं 26 नवंबर को राहुल गांधी इंदौर के महू में भीमराव अंबेडकर की जन्मस्थली पहुंचकर बाबा साहेब को श्रदांजलि देंगे।

दरसअसल मध्यप्रदेश वह पहला राज्य है जहां सहीं मायनों में उत्तर भारत की कास्ट पॉलिटिक्स की सियासत शुरु होती है। यहीं कारण है कि मध्यप्रदेश में भारत जोड़ो यात्रा में कांग्रेस ने आदिवासी और दलित वोटबैं को कांग्रेस के पाले में फिर से लाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। यात्रा के 78 दिन अब राहुल गांधी के साथ प्रियंका गांधी शामिल हो गई है और राहुल-प्रियंका मध्यप्रदेश के जरिए उत्तरभारत के राज्यों में कांग्रेस संगठन में नई जान फूंकने की कोशिश कर रहे है।

मध्यप्रदेश में वह राज्य है जहां कांग्रेस संगठनात्मक रूप से भाजपा के सामने तगड़ी चुनौती पेश कर रही है। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा के इस अभेद किले में सेंध भी लगा दी थी लेकिन विधायकों के दलबदल के चलते कांग्रेस को 15 महीने बाद सत्ता से बाहर होना पड़ा था।

आदिवासी वोट बैंक पर कांग्रेस का फोकस-मध्यप्रदेश में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के जरिए कांग्रेस आदिवासी वोट बैंक पर फोकस कर रही है। आज यात्रा के दूसरे दिन राहुल गांधी खंडवा में आदिवासी नायक टंट्या भील की जन्मस्थली बड़ौदा अहीर पहुंचे। टंट्या भील को श्रदांजलि देने के साथ राहुल गांधी ने यहां एक जनसभा को भी संबोधित किया। राहुल ने आदिवासियों के हक की बात उठाते हुए कहा आदिवासी हिंदुस्तान का ओरजनिल मालिक है। भाजपा आदिवासियों को वनवासी बातकर आपका हक छीन लेती है। भाजपा कहती है कि यह जमीन आपकी नहीं है और न कभी रही। कांग्रेस पार्टी आदिवासियों को देश असली मालिक मानती है और मानती है कि यह देश आप से लिया गया। कांग्रेस शिक्षा और स्वास्थ्य के साथ देश के पैसा के एक भाग को आदिवासियों को देने की बात करती है। राहुल ने कहा कि आदिवासियों के हक की लड़ाई केवल कांग्रेस पार्टी लड़ती है। राहुल ने भाजपा को आदिवासियों को वनवासी बताने के लिए माफी मांगने की मांग की।
  

एक तीर के तीन निशाने- टंट्या भील की जन्मस्थली पर कांग्रेस ने मेगा इंवेट कर एक नहीं तीन राज्यों के आदिवासी वोट बैंक को साधने की कोशिश की है। गुजरात जहां वर्तमान में विधानसभा चुनाव चल रहे है वहां राज्य की 182  सदस्यीय विधानसभा में 27 सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व हैं। इसके साथ ही राज्य की 35 से 40 विधानसभा सीटों पर आदिवासी वोटर जीत-हार तय कर सकते है। अगर गुजरात के 2017 के विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखे तो इन 27 सीटों पर भाजपा सिर्फ 9 सीटें जीत पाई थी वहीं कांग्रेस ने 15 सीटों पर जीत दर्ज की थी। आदिवासी सीटों पर बड़ी हार के चलते ही राज्य में भाजपा में 100 के आंकड़े के नीचे सिमट गई थी।

गुजरात जहां कुल वोटरों में आदिवासियों की संख्या 15 फीसदी है, वहां इस बार विधानसभा चुनाव में आदिवासी की जल-जंगल-जमीन एक बड़ा मुद्दा है, ऐसे में राहुल गांधी ने अपनी सभा के जरिए आदिवासियों को सीधा संदेश देकर उनको कांग्रेस से जोड़ने की कोशिश की है।

गुजरात के बाद अब बात करते हैं मध्यप्रदेश की, राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव होने है और वहां आदिवासी वोटर ही कांग्रेस का भविष्य तय करेंगे। राज्य में विधानसभा की कुल 230 सीटों में से 47 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। वहीं 90 से 100 सीटों पर आदिवासी वोट बैंक निर्णायक भूमिका निभाता है। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने  आदिवासियों के लिए आरक्षित 47  सीटों में से 30 सीटें जीतकर 15 साल सत्ता में वापसी की थी।

आदिवासी वोटर जो 2003 के पहले मध्यप्रदेश में कांग्रेस को कोर वोट बैंक के रूप में देखा जाता है वहां बीते 20 सालों में कांग्रेस से छिटक गया था। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने आदिवासी वोट बैंक को अपनी ओर लाने की कोशिश की थी लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में आदिवासियों का फिर कांग्रेस से मोहभंग हो गया था।

वहीं मध्यप्रदेश से सटे राजस्थान में अगर कांग्रेस को लगातार दूसरी बार सत्ता में वापस आना है तो आदिवासी वोटरों को साधना जरूरी होगा। राज्य की कुल 200 विधानसभा सीटों में से 25 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित है वहीं करीब एक दर्जन सीटों पर आदिवासी जीत हार में निर्णायक भूमिका निभाते है। 2018 के विधानसभा चुनाव की बात करे तो कांग्रेस ने आदिवासियों के लिए आरक्षित 25 सीटों से आधी से अधिक 13 सीटों पर जीत हासिल की थी और सत्ता में काबिज हुई थी।
 

आदिवासी के साथ दलित गठजोड़ पर नजर- भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी कांग्रेस के पंरपरागत दलित वोट बैंक को भी साधने की कोशिश कर रहे है। दलित वोट बैंक को साधने के लिए राहुल गांधी को बाबा साहब अंबेडकर की जन्मस्थली इंदौर के महू में एक बड़ी जनसभा को संबोधित करने जा रहे है। खास बात यह है कि कि राहुल गांधी महू में 26 नवंबर को बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर को श्रदांजलि देने के बाद सभा को संबोधित करेंगे। गौरतलब है कि 26 नवंबर देश में संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है और राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो यात्रा में लगातार संविधान खतरे मे होने की बात कहते नजर आए है।

चुनावी राज्य गुजरात में 13 विधानसभा सीटें दलितों के लिए आरक्षित है वहीं राज्य की कुल 25 विधानसभा सीटों पर दलित वोट जीत-हार तय करने की भूमिका में होते है। 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने दलितों के लिए आरक्षित 13 में से 5 सीटों पर जीत हासिल की थी। ऐसे में गुजरात विधानसभा में वोटिंग से ठीक पहले कांग्रेस महू से दलित वोट बैंक को साधने की पूरी कोशिश करेंगे।

वहीं अगर बात मध्यप्रदेश की करें तो मध्यप्रदेश में 17 फीसदी दलित वोटर बैंक है। मध्यप्रदेश में 230 विधानसभा सीटों में से अनुसूचित जाति (दलित) के लिए 35 सीटें रिजर्व है। वहीं प्रदेश की 84 विधानसभा सीटों पर दलित वोटर जीत हार तय करते है। विधानसभा चुनाव में जिस पार्टी के साथ दलित वोट बैंक एकमुश्त जाता है वह सत्ता में काबिज हो जाती है। ऐसे में कांग्रेस 2023 विधानसभा चुनाव से पहले दलित वोट बैंक को साधने की कोशिश कर रही है।
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