चाइल्ड पोर्नोग्राफी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बड़ा फैसला देते हुए चाइल्ड पोर्नोग्राफी को डाउनलोड करना और देखना को अपराध बताते हुए इसे पॉक्सो और आईटी एक्ट के तहत अपराध बताया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में उल्लेख करते हुए कहा कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी के चलते बच्चों के उत्पीड़न की घटनाओं के आधार पर दिया है। इसके साथ ही ऐसे मामलों की शिकायत करने में समाज की कितनी भूमिका है, इस पर ध्यान रखा।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ऐसे समय आया है जब भोपाल में स्कूलों में मासूम के साथ यौन उत्पीड़न के तीन नए मामले आए है और तीनों ही मामलों में आरोपियों के मोबाइल से चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुड़े वीडियो मिले है जो यह बताता है कि अपराध को अंजाम देने से पहले उन्होंने चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुड़े वीडियो देखे।
'वेबदुनिया' से बातचीत में मनोचिकित्सक डॉक्टर सत्यकांत कहते हैं कि पिछले कुछ सालों में चाइल्ड पोर्न एडिक्शन के चलते ही मासूमों के प्रति अपराधों में तेजी से इजाफा हुआ है। वह कहते हैं अगर मासूमों के साथ रेप की हाल की घटनाओं को उठाकर देखे तो उसके पीछे अपराधियों की चाइल्ड पोर्न देखने की लत एक बड़ा कारण रही है। वह कहते हैं कि पोर्न की लत बच्चों और किशोरों के लिए विशेष रूप से चिंताजनक है और हमको यौन शिक्षा को बढ़ावा और अनिवार्य कर उसको तुरंत रोकना होगा नहीं को आने वाले समय की हम कल्पना भी नहीं कर सकते है।
यौन शिक्षा से रुकेगी यौन हिंसा- डॉक्टर सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि यौन यौन शिक्षा को औपचारिक शिक्षा प्रणाली में शामिल करने की चर्चा अक्सर विवादों का सामना करती है, लेकिन यह यौन हिंसा को रोकने का एक प्रभावी उपाय हो सकता है। यौन हिंसा, जिसमें बलात्कार, छेड़छाड़ और दुर्व्यवहार शामिल हैं, एक गंभीर सामाजिक समस्या है। इसे रोकने के लिए केवल कानूनी कदम उठाना काफी नहीं है, बल्कि मानसिकता में बदलाव की भी जरूरत है, जो कि शिक्षा के माध्यम से संभव है।
आज भी कई समाजों में सेक्स को एक वर्जित विषय माना जाता है, खासकर पारंपरिक समाजों में। इस प्रकार की सोच के कारण बच्चों और युवाओं को यौन संबंधी आवश्यक जानकारी नहीं मिल पाती, जिसका परिणाम यह होता है कि वे अपने शरीर और संबंधों को सही ढंग से नहीं समझ पाते। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बताती है कि जिन देशों में यौन शिक्षा को औपचारिक रूप से स्कूलों में शामिल किया गया है, वहां यौन हिंसा की घटनाओं में कमी आई है।
यौन शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बच्चों और युवाओं को उनके शरीर, संबंधों और सीमाओं के बारे में सही जानकारी देना है। यह उन्हें सहमति और सम्मान के महत्व को समझाने में मदद करती है। शोध से साबित हुआ है कि जहां यौन शिक्षा दी जाती है, वहां यौन हिंसा के मामलों में कमी देखी गई है। उदाहरण के लिए, स्वीडन और नीदरलैंड्स जैसे देशों में यौन शिक्षा को स्कूलों में प्रारंभिक स्तर से ही अनिवार्य किया गया है, जिससे किशोर गर्भधारण, यौन संचारित संक्रमण (STIs) और यौन हिंसा की दरें कम हुई हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का मानना है कि स्कूल आधारित व्यापक यौन शिक्षा कार्यक्रम यौन हिंसा को रोकने में अत्यधिक प्रभावी हो सकते हैं। यह बच्चों को "गुड टच" और "बैड टच" की पहचान सिखाने में भी मदद करती है, जिससे वे संभावित यौन शोषण को समय रहते पहचान सकते हैं और उससे बच सकते हैं। अमेरिका में किए गए एक शोध के अनुसार, जिन राज्यों में यौन शिक्षा अनिवार्य है, वहां किशोर गर्भधारण और यौन हिंसा के मामलों में 10-15% की कमी आई है। इसी प्रकार, अफ्रीका में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि जहां यौन शिक्षा लागू की गई, वहां HIV संक्रमण दर और यौन हिंसा के मामलों में कमी आई है।
यौन शिक्षा का उद्देश्य केवल शारीरिक संबंधों के बारे में जानकारी देना नहीं है, बल्कि यह लैंगिक समानता, सहमति, शारीरिक सीमाओं का सम्मान और यौन स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाती है। सहमति की समझ से युवा जिम्मेदारी से आचरण करने के लिए प्रेरित होते हैं। साथ ही, यह शिक्षा यौन हिंसा के शिकार लोगों को अपनी पीड़ा व्यक्त करने और न्याय प्राप्त करने में भी सहायक होती है। हालांकि, यौन शिक्षा का विभिन्न समाजों में विरोध होता रहा है।
कुछ लोग इसे बच्चों के मानसिक विकास के लिए हानिकारक मानते हैं, लेकिन शोध इस बात का समर्थन नहीं करता। बल्कि यह दिखाता है कि जहां यौन शिक्षा दी जाती है, वहां किशोरावस्था में यौन संबंधों की प्रवृत्ति कम होती है, और यौन स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता अधिक होती है। यौन शिक्षा यौन हिंसा को रोकने का एक प्रभावी और आवश्यक कदम है। इसके जरिए बच्चों और युवाओं को न केवल शारीरिक और मानसिक रूप से जागरूक किया जा सकता है, बल्कि उन्हें यौन संबंधों में जिम्मेदार और संवेदनशील भी बनाया जा सकता है।
पोर्नोग्राफी के आंकड़े डराते है – भारत में पोर्नोग्राफी कितनी तेजी से युवाओं को अपनी चपेट में ले रहा है इसको केवल इससे समझा जा सकता है कि 10 में से 8 युवा 18 वर्ष की उम्र से पहले पोर्नोग्राफी देख लेते हैं। एक रिसर्च के मुताबिक लगभग 80% युवा अपनी ऑनलाइन गतिविधियों को साझा नहीं करते है। वहीं 15 से 19 साल की उम्र में पोर्न एडिक्ट होने की सबसे अधिक सम्भावना रहती है
पोर्नोग्राफी से नुकसान - पोर्नोग्राफ़ी को देखने से किशोरों में नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं, जो उनके मनोवैज्ञानिक और शारीरिक विकास दोनों को प्रभावित करते है। उनकी एकाग्रता और याददाश्त में कमी आ जाती है। इसका सबसे खतरनाक प्रभाव ये हैं कि महिलाओं के प्रति व्यवहार आक्रामक हो जाता है और युवा अश्लील छींटाकशी करके के साथ साथ अपराध की ओर बढ़ जाते है।
माता पिता कब हो जाएं सतर्क -
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आपको कंप्यूटर पर अश्लील विडियो मिलते हैं।
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जब आप कमरे में प्रवेश करते हैं, बच्चा घबराकर मोबाइल/कंप्यूटर बंद कर देता है या स्क्रीन बदल देता है। मोबाइल पर हर फंक्शन पास वर्ड लगा कर रखता है
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कंप्यूटर देखते समय अपने कमरे को बंद कर रखता है।
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बच्चा कंप्यूटर/मोबाइल से इन्टरनेट हिस्ट्री को हटा देता है।
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बच्चा रात में बहुत देर तक ऑनलाइन रहता है।
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बच्चा सब के सो जाने के बाद ऑनलाइन गतिविधियाँ शुरू करता है