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Written By कीर्ति राजेश चौरसिया
Last Modified: गुना , शुक्रवार, 13 जनवरी 2017 (07:32 IST)

यहां खड़ी ट्रेन के नीचे से गुजरते हैं स्कूली बच्चे...

यहां खड़ी ट्रेन के नीचे से गुजरते हैं स्कूली बच्चे... - Student crosses rail lines to go school
गुना। मध्यप्रदेश के शहर के महावीरपुरा इलाके में बच्चों को स्कूल पहुंचने के लिए रेल पटरियां पार करना पड़ता है। मजबूरियां झेलकर शिक्षा हासिल करने की ये तस्वीर उस वक्त और विचित्र हो जाती है जब पटरियों पर कोई ट्रेन या मालगाड़ी खड़ी होती है और उसके नीचे से गुजरकर बच्चे स्कूल पहुंचते हैं।
 
ऐसा नहीं है कि बच्चों को स्कूल तक पहुंचने का वैकल्पिक रास्ता नहीं है। रास्ता तो है पर तीन कि.मी. की दूरी तय करने की बजाय बच्चे पटरियां पार कर चंद मिनिटों में स्कूल पहुंचने का जोखिम उठाते हैं।
 
वर्षों से महावीरपुरा क्षेत्र के स्कूली बच्चे भार्गव कालोनी स्थित निजी स्कूल पहुंचते हैं। जबकि भार्गव कालोनी के भी कुछ बच्चे इसी तरह रेलवे ट्रेक पार दूसरे छोर पर स्थित निजी और सरकारी स्कूल में पहुंचते हैं।
 
लंबी दूरी से बचने के लिए करते हैं पटरी पार : महावीरपुरा और भार्गव कालोनी के बीच स्थित रेलवे ट्रेक पर यूं तो ओवरब्रिज मौजूद है। लेकिन बच्चे इतनी लंबी दूरी तय करने की बजाय सीधे पटरियां पार कर स्कूल जाते हैं। हद तो तब हो जाती है। जब ट्रेक पर कोई ट्रेन या मालगाड़ी खड़ी होती है। और उसके नीचे ये बच्चे गुजरते हैं। इस बीच अगर कभी कोई ट्रेन या मालगाड़ी आगे बढ़ जाएगी तो हादसे की भयावहता से इंकार नहीं किया जा सकता। 
 
जिन स्कूलों के बच्चे ये पटरियां पार करते हैं, उनमें चार निजी स्कूलों के अलावा एक सरकारी स्कूल भी है। जबकि भार्गव कालोनी के पटरी पार करने वाले ये बच्चे अधिकांश दूसरे छोर पर स्थित मिशनरी स्कूल के विद्यार्थी होते हैं।
 
परिजन भी आते हैं बच्चों के साथ : लंबी दूरी का सफर तय करने के बजाय कुछ पालक भी सुबह के समय बच्चों को अपनी मौजूदगी में पटरी पार कराते हैं, लेकिन लौटते समय बच्चे अकेले ही रेलवे ट्रेक को पार करते हैं।
 
परिजनों का कहना है कि छोटी दूरी के लिए उन्हें हर माह ऑटो वाले को 600 रुपए किराया देना पड़ता है, इसलिए वे इसी मार्ग से अपने बच्चों को स्कूल भेजते हैं।
 
इस ट्रेक पर कई लोग गवां चुके हैं जान : महावीरपुरा और भार्गव कालोनी जैसे इलाकों में रह रहे बच्चों को आज भी स्कूल जाने के लिए कई समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है। हर रोज उन्हें जोखिम भरे इस रास्ते से जूझना पड़ता है ताकि समय पर स्कूल पहुंच सकें और खुद को सभ्य, सुसंस्कृत और शिक्षित कर सकें। 
 
गौरतलब है कि इसी ट्रेक पर कई बार लोग पटरियां पार करते समय ट्रेन की चपेट में आ चुके हैं। इसके बाद भी नौनिहालों की जान को जोखिम में डालने का ये सिलसिला बदस्तूर जारी है।
 
दुखद यह है कि यह सब देखते-जानते हुए भी सांसद, स्थानीय विधायक और जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों के कान में जूं तक नहीं रेंग रही है।
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