देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी के कार्यक्रम में बोले पद्मश्री श्यामसुंदर पालीवालइंदौर, आज जमीन, जंगल, पेड़, पानी, नदी, पहाड़ को जोड़कर काम करने की आवश्यकता है। केवल प्रयास नहीं, एक तपस्या की तरह हमें काम करना होगा ताकि प्रकृति को बचाया जा सके।
यह तपस्या सालों तक चल सकती है, लेकिन विश्वास रखिये एक न एक दिन आपको इसका फल अवश्य ही मिलेगा। प्रकृति को बचाने के लिए हमें सोने की तरह तपना होगा तभी हमें सोने की तरह चमक पैदा कर पाएंगे।
प्रकृति आधारित व्यवस्था को जब तक हम स्थापित नहीं करेंगे, हम आदर्श तंत्र की कल्पना को साकार नहीं कर पाएंगे।
उक्त विचार पद्मश्री श्यामसुंदर पालीवाल ने व्यक्त किए। वे सोमवार को देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी के पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला में आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित कर रहे थे।
कार्यक्रम आजादी का अमृत महोत्सव के तहत आयोजित किया गया था। देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी के रेक्टर डॉ. अशोक शर्मा, रजिस्ट्रार डॉ. अनिल शर्मा, नवभारत समाचार पत्र के सम्पादक क्रांति चतुर्वेदी विशेष रूप से उपस्थित थे।
प्रकृति, विकास और समाजिक तंत्र को जोड़ते हुए श्री पालीवाल ने कहा, प्रकृति आधारित व्यवस्था को जब तक हम स्थापित नहीं करेंगे, तब तक न तो विकास को प्राप्त हो पाएंगे और न ही तंत्र में स्थायी सुधार कर पाएंगे।
आज प्राकृतिक तंत्र पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है। प्रकृति से आज हर आदमी को जुड़ना होगा, तभी विकास संभव हो पाएगा।
इसके लिए सभी को एक साथ मिलकर तपस्या करनी होगी। हमें तो एक लक्ष्य तय कर अपना काम करते रहना होगा। फल जल्दी नहीं मिलेगा, लेकिन हमें अपना काम ईमानदारी से करना होगा। फल के लिये हमें सोने की तरह तपना होगा। आज प्रकृति और बेटी को बचाने की जरूरत है और दोनों दिशा में काम करना होगा, ताकि भविष्य को संवारा जा सके।
उन्होंने कहा, प्रकृति आधारित रोजगार को बढ़ावा देना होगा, किसानों को फायदा पहुंचाने वाली फसल को उगाना होगा। ऐसे कई काम करने होंगे, जिससे पूरी व्यवस्था को प्रकृति से जोड़ा जा सके। हमारी व्यवस्था आदर्श तब तक नहीं बन सकती है, जब तक वह प्रकृति आधारित नहीं होती है। सीमेंट के जंगलों से हम आदर्श गांव या शहर नहीं हो सकते है।
हमें प्रकृति आधारित तंत्र तैयार करना होगा। उन्होंने प्रकृति को बचाने के लिए उसे बेटियों से जोड़ने का आव्हान भी किया। श्री पालीवाल ने प्रकृति से जुड़ने के लिए उनके द्वारा पिपलांत्री गांव में किए गए प्रयासों के किस्से भी सुनाएं।
नवभारत समाचार पत्र के सम्पादक क्रांति चतुर्वेदी ने जल बचाव के लिए मध्यप्रदेश के हुए कामों का उदाहरण देते हुए कहा, प्रदेश के खरगोन और झाबुआ में लोगों ने प्रकृति को बचाने के लिए महत्वपूर्ण काम किया है। दोनों ही क्षेत्रों में पानी की कमी हो रही थी, जिसे पूरा करने के लिए लोगों ने ईमानदारी से प्रयास किए।
खास बात यह रही कि दोनों की जगहों पर लोगों ने प्रकृति को पुनर्जीवित कर लिया। यहां के गांव वालों के इस प्रयास से सभी को सीख लेनी चाहिए और इसे जीवन में अपनाना चाहिए।
रेक्टर अशोक शर्मा ने प्रकृति संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने की बात कही। उन्होंने कहा, प्रकृति के महत्व को हम भूलते जा रहे, जिसके कारण हमें प्राकृतिक आपदा का सामना करना पड़ रहा है। कोरोना काल के बाद तो हमें प्रकृति के महत्व को समझते हुए इसे बचाने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।
इस अवसर पर डॉ. सोनाली नरगुंदे द्वारा सम्पादित पुस्तक का विमोचन भी किया गया। पुस्तक का शीर्षक जलवायु परिवर्तन के विविध आयाम है। आरंभ में अतिथियों ने सरस्वती पूजन किया। सरस्वती वंदना का गायन डॉ. अनुराधा शर्मा ने किया। अतिथियों का स्वागत तुलसी का पौधा देकर किया गया।
इस अवसर पर ईएमआरसी के विभागाध्यक्ष, डॉ. चंदन गुप्ता, इंस्ट्रुमेंटेशन के विभागध्यक्ष रत्नेश गुप्ता, डॉ. रिशिना नातू, प्रेमजीत सिंह, वरिष्ठ पत्रकार डॉ. नीलमेघ चतुर्वेदी, वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार मुकेश तिवारी, डॉ. मनीष काले, जितेंद्र जाखेटिया सहित बड़ी संख्या में छात्र और वरिष्ठजन उपस्थित थे। अतिथियों को शाल-श्रीफल देकर सम्मानित किया गया। संचालन डॉ. कामना लाड़ ने किया। आभार डॉ. सोनाली नरगुंदे ने माना।