मध्यप्रदेश भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में हुए संगठनात्मक बदलाव ने एक बार फिर राज्य की सियासत में हलचल मचा दी है। बैतूल विधायक हेमंत खंडेलवाल को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के रूप में निर्विरोध चुने जाने की प्रक्रिया ने न केवल पार्टी के आंतरिक समीकरणों को उजागर किया, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव अब न सिर्फ सरकार, बल्कि संगठन में भी अपनी मजबूत पकड़ बना चुके हैं।
भाजपा अध्यक्ष पद की दौड़ में जिस तरह से पार्टी दिग्गजों के नाम से उनको किनारे कर हेमंत खंडेलवाल को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाकर केंद्रीय नेतृत्व ने कई संकेत दे दिए है। हेमंत खंडेलवाल के अध्यक्ष बनने से नरोत्तम मिश्रा, कैलाश विजयवर्गीय और प्रहलाद पटेल जैसे दिग्गज नेताओं को एक बार फिर निराशा हाथ लगी है, जैसा कि 2023 विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री चयन के दौरान हुआ था।
यह घटनाक्रम न केवल मध्यप्रदेश भाजपा की आंतरिक राजनीति को दर्शाता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि केंद्रीय नेतृत्व, विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह, ने मोहन यादव पर पूर्ण भरोसा जताया है। मोहन यादव की पसंद का दबदबा2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की प्रचंड जीत के बाद यह उम्मीद थी कि शिवराज सिंह चौहान, जो लंबे समय तक राज्य के सबसे प्रभावशाली नेता रहे, फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे। लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने सबको चौंकाते हुए मोहन यादव को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी। यह फैसला उस समय भी कई बड़े नेताओं के लिए झटका था, और अब हेमंत खंडेलवाल के प्रदेश अध्यक्ष बनने से यह साफ हो गया है कि मोहन यादव न केवल सरकार, बल्कि संगठन में भी अपनी पसंद को प्राथमिकता दिलाने में सफल रहे हैं। हेमंत खंडेलवाल का चयन एक रणनीतिक कदम माना जा रहा है।
बैतूल से विधायक और पूर्व सांसद खंडेलवाल एक निम्न-प्रोफाइल, कार्यकर्ता-केंद्रित नेता हैं, जिन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का भी समर्थन प्राप्त है। उनके चयन में मुख्यमंत्री मोहन यादव की भूमिका सबसे अहम रही। नामांकन प्रक्रिया के दौरान स्वयं मोहन यादव उनके प्रस्तावक बने, और प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा ने भी इस प्रक्रिया को सुचारू रूप से आगे बढ़ाया। यह स्पष्ट संकेत है कि केंद्रीय नेतृत्व ने मोहन यादव की पसंद को न केवल स्वीकार किया, बल्कि उस पर पूर्ण विश्वास भी जताया।
क्षत्रपों की हार, सामूहिक नेतृत्व की जीत?- मध्यप्रदेश भाजपा में क्षेत्रीय क्षत्रपों की मौजूदगी हमेशा से चर्चा का विषय रही है। शिवराज सिंह चौहान, नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल और नरोत्तम मिश्रा जैसे नेताओं ने अपने-अपने क्षेत्रों में मजबूत पकड़ बनाई है। लेकिन हाल के घटनाक्रमों ने साबित कर दिया कि केंद्रीय नेतृत्व अब सामूहिक नेतृत्व को प्राथमिकता दे रहा है, न कि किसी एक व्यक्ति विशेष के प्रभाव को। नरोत्तम मिश्रा, जो लंबे समय तक शिवराज सरकार में गृह मंत्री रहे और जिन्हें अमित शाह का करीबी माना जाता है, इस बार भी अपनी दावेदारी को मजबूत नहीं कर सके। 2023 के विधानसभा चुनाव में दतिया सीट से हार का सामना करने के बावजूद, उनकी संगठन में वापसी की चर्चाएं जोरों पर थीं। लेकिन हेमंत खंडेलवाल के चयन ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
इन नेताओं की सभागृह में उपस्थिति और खंडेलवाल के नामांकन समारोह में शामिल होना एक तरह से मजबूरी ही माना जा रहा है। यह दिखाने की कोशिश थी कि वे भी इस फैसले का हिस्सा हैं, लेकिन सियासी गलियारों में यह बात आम है कि हेमंत खंडेलवाल का चयन पूरी तरह से मोहन यादव और आरएसएस की पसंद का परिणाम है।
मोदी-शाह का भरोसा और नया सियासी समीकरण: मोदी-शाह की जोड़ी ने एक बार फिर यह साबित किया है कि वे अपने विश्वासपात्र नेताओं को ही आगे बढ़ाने में यकीन रखते हैं। मोहन यादव, जो आरएसएस के करीबी माने जाते हैं और जिन्होंने उज्जैन दक्षिण से लगातार तीन बार विधानसभा चुनाव जीता है, अब मध्यप्रदेश भाजपा के सबसे मजबूत चेहरों में से एक बन गए हैं। उनके नेतृत्व में सरकार और संगठन दोनों में सामंजस्य बनाए रखने की कोशिश की जा रही है। हेमंत खंडेलवाल जैसे निम्न-प्रोफाइल नेता का चयन इस बात का संकेत है कि केंद्रीय नेतृत्व और आरएसएस ऐसे नेताओं को प्राथमिकता दे रहे हैं, जो विवादों से दूर रहें और संगठन को मजबूत करने में योगदान दें।
यह भी उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश में सामाजिक और क्षेत्रीय संतुलन को बनाए रखने की कोशिश की गई है। मोहन यादव, जो ओबीसी वर्ग से आते हैं, और उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा, जो अनुसूचित जाति से हैं, के बाद हेमंत खंडेलवाल जैसे सामान्य वर्ग के नेता को संगठन की कमान सौंपकर पार्टी ने सामाजिक संतुलन का ध्यान रखा है।
मोहन यादव का बढ़ता कद: हेमंत खंडेलवाल का निर्विरोध चयन और मोहन यादव की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका मध्यप्रदेश भाजपा में उनके बढ़ते कद को दर्शाती है। मोदी-शाह की जोड़ी ने एक बार फिर यह साबित किया है कि वे अपने विश्वासपात्र नेताओं को ही संगठन और सरकार में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां देंगे। नरोत्तम मिश्रा, कैलाश विजयवर्गीय और अन्य दिग्गजों को इस बार भी अपनी महत्वाकांक्षाओं को किनारे रखना पड़ा। यह बदलते सियासी समीकरणों का दौर है, जहां नए चेहरों को मौका दिया जा रहा है, और पुराने क्षत्रपों को यह समझना होगा कि पार्टी अब सामूहिक नेतृत्व और सामाजिक संतुलन के रास्ते पर चल रही है।मोहन यादव और हेमंत खंडेलवाल की जोड़ी अब मध्यप्रदेश भाजपा को नई दिशा देने की कोशिश करेगी।