धार। निर्वाचन आयोग ने आगामी विधानसभा चुनाव में राजनीतिक पार्टियों से यह अपेक्षा की है कि प्लास्टिक से बने पोस्टर व बैनर का उपयोग नहीं किया जाए। पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए यह नैतिक अपेक्षा रखी गई है।
दरअसल, आगामी दिनों में जो चुनावी युद्घ लड़ा जाना है, वह प्लास्टिक के फ्लेक्स पर ही आधारित होना है। जिस प्लास्टिक फ्लेक्स पर पोस्टर और बैनर प्रकाशित किए जाते हैं, वे प्रकृति के लिए बहुत ही घातक होते हैं।
मप्र राज्य निर्वाचन आयोग कार्यालय के उप मुख्य निर्वाचन अधिकारी जेसी भट्ट ने पर्यावरण को नुकसान से बचाने के लिए इस संबंध में निर्देश जारी किए हैं। गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षों से कम्प्यूटरीकृत फ्लेक्स यानी पोस्टर, बैनर बनाने का क्रांतिकारी कार्य शुरू हो गया है। कुछ ही घंटों में कल्पना से भी बड़े आकार के पोस्टर व बैनर तैयार हो जाते हैं। ये पोस्टर, बैनर गुणवत्ता के मामले में भी बेहतर होते हैं।
पेंटरों को प्लास्टिक ने दी मात-कभी राजनीतिक आयोजनों में पेंटरों की अहम भूमिका होती थी, किंतु अब यह भूमिका कम्प्यूटर और छपाई तकनीक निभा रही है। प्लास्टिक की फ्लेक्स बनने के बाद से ही पेंटरों को उनके हुनर के बावजूद रोजगार बड़ी मुश्किल से मिल पा रहा है।
पेंटर किरण गुंजाल ने बताया निर्वाचन आयोग ने इस तरह की नैतिक पहल कर हमारे कामकाज को राहत प्रदान की है। हम प्लास्टिक के फ्लेक्स से सस्ते में बैनर बना देते हैं, किंतु उन पर कम्प्यूटर की तरह चित्र व मोनो आदि हुबहू उतार पाना बेहद कठिन होता है। हालाँकि कपड़े पर बनाए जाने वाले बैनर सस्ते होते हैं, जबकि फ्लेक्स का बैनर 8 से 9 रुपए वर्गफूट में बनकर तैयार होता है, जो तुलनात्मक रूप से महँगा भी होता है, किंतु इसकी सुंदरता का कोई जोड़ नहीं है।
प्रकृति को क्या है नुकसान-पोस्टर और बैनर जिस नायलोन फाइबर से बनाए जाते हैं, वह प्रकृति के लिए नुकसानदायक है। रसायन विषय के प्राध्यापक बीआर पाटिल ने बताया फ्लेक्स के कारण प्रकृति को नुकसान है। लंबे समय तक यह फाइबर नष्ट नहीं होता है। यदि यह धरती की सतह पर फैला रहता है तो बारिश का पानी धरती में नहीं जा पाता है। इसके अलावा भी कई नुकसान होते हैं। इधर इसकी छपाई में साल्वेंट इंक यानी स्याही का उपयोग किया जाता है। वह भी कुछ मामले में नुकसान दायक है।
चायना का एक तरफा राज-फ्लेक्स यानी नायलोन सीट व सालवेंट इंक चायना से बुलवाई जाती है। इस व्यवसाय से जुड़े सनी भाई का कहना है कि भारत में फ्लेक्स की सीट और स्याही नहीं बनाई जाती है। इस मामले में पूर्ण रूप से चायना के ऊपर निर्भर रहना पड़ता है।