कर्नाटक में दलबदलुओं की हार के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक मंत्रियों की बढ़ी टेंशन
Madhya Pradesh Political News:विधानसभा चुनाव में कर्नाटक का किला भाजपा के हाथ से निकल जाने के बाद अब भाजपा हाईकमान का पूरा ध्यान मध्यप्रदेश (madhya pradesh election 2023) पर आकर टिक गया है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जिस तरह से दलबदुल नेताओं को हार का सामना करना पड़ा है उसके बाद मध्यप्रदेश में कांग्रेस से भाजपा में ज्योतिरादित्य सिंधिया (jyotiraditya scindia) के साथ शामिल हुए सिंधिया समर्थक नेताओं की धड़कने बढ़ गई है। मध्यप्रदेश में सिंधिया समर्थक विधायक और मंत्री बैचेन है। इसकी बड़ी वजह चुनाव सर्वे में इन नेताओं की रिपोर्ट निगेटिव आना और मंत्रियों ंके लगातार विवादों में होना है।
उपचुनाव में हारे नेताओं के टिकट पर संशय-विधानसभा चुनाव में इस बार सिंधिया समर्थक उन नेताओं का भविष्य सबसे ज्यादा खतरे में दिखाई दे रहा है जो उपचुनाव हार गए। मार्च 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल हुए 22 विधायकों में कई को उपचुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। सिंधिया के गढ़ माने जाने वाले ग्वालियर-चंबल की 16 सीटों में से डबरा से इमरती देवी, दिमनी से गिर्राज दंडोतिया, सुमावली से एंदल सिंह कंसाना मंत्री रहते हुए चुनाव हार गए थे। इसके साथ ही ग्वालियर पूर्व से मुन्नालाल गोयल, मुरैना से रघुराज सिंह कंषाना, गोहद से रणवीर जाटव, करैरा से जसमंत जाटव भी चुनाव हार गए थे। उपचुनाव में हार का सामना करने वाले यह सभी सिंधिया समर्थक एक बार टिकट की दावेदारी कर रहे है लेकिन बड़ा सवाल यह है कि उपचुनाव में हार का सामना करने वाले इन नेताओं को पार्टी दोबारा मौका देगी।
विवादों में सिधिंया समर्थक मंत्री- चाल-चरित्र और चेहरे की राजनीति करने वाली भाजपा की मध्यप्रदेश सरकार मे सिंधिया समर्थक मंत्री लगातार विवादों में रहते है। सिंधिया के कट्टर समर्थक और शिवराज सरकार में परिवहन और राजस्व जैसे अहम विभाग संभालने वाले मंत्री गोविंद सिंह राजपूत लगातार विवादों में घिरे हुए है। सागर जिले के रहने वाले मान सिंह पटेल के गुमशुदा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश सरकार और गोविंद सिंह राजपूत से जवाब मांगा है।
कैबिनेट मंत्री गोविंद सिंह राजपूत पर सागर के रहने वाले मान सिंह पटेल की जमीन पर कब्जा करने का बड़ा आरोप लगा है। मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के कब्जे वाले जमीन को लेकर मान सिंह पटेल ने 2016 में सिटी मजिस्ट्रेट, रेवेन्यू डिपार्टमेंट और संबंधित थाने में नाम दर्ज शिकायत दर्ज कराई थी। साथ ही यह भी आशंका भी जताई थी कि उसकी जान को मंत्री गोविंद राजपूत से खतरा है। मान सिंह पटेल की शिकायत पर आईपीसी की धारा 145 में प्रकरण रजिस्टर्ड होकर काफी सुनवाई भी चली थी, लेकिन मानसिंह पटेल के लापता होने के बाद प्रकरण को बंद कर दिया गया। अब यह पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है।
वहीं पिछले दिनों सिंधिया समर्थक कैबिनेट मंत्री राजवर्धन दत्तीगांव को लेकर एक महिला का वीडियो वायरल हुआ जो काफी विवादों में रहा था। इसके साथ ही सिंधिया समर्थक अन्य मंत्री प्रद्युम्मन सिंह तोमर और महेंद्र सिंह सिसौदिया लगातार अपने बयानों से सुर्खियों में बने हुए रहते है।
संगठन के राडार पर सिंधिया समर्थक मंत्री-साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सिंधिया समर्थक मंत्री भाजपा संगठन की राडार पर है। पिछले दिनों पार्टी के राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश ने सिंधिया समर्थक मंत्रियों की भाजपा दफ्तर में अलग से बैठक की। बैठक में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल हुए तुलसी सिलावट, महेंद्र सिंह सिसौदिया, प्रद्युम्मन सिंह तोमर,राजवर्धन दत्तीगांव शामिल हुए।
भाजपा में अंदरखाने सिंधिया का विरोध!-वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर ग्वालियर-चंबल की भाजपा नई और पुरानी भाजपा में बंट गई है और आए दिन दोनों ही खेमे आमने सामने दिखाई देते है। बात चाहे पंचायत चुनाव की हो या नगरीय निकाय चुनाव में उम्मीदवारों के चयन की नई भाजपा और पुरानी भाजपा के नेताओं में टकराव साफ देखा गया था। ग्वालियर नगर निगम के महापौर में भाजपा उम्मीदवार के टिकट को फाइनल करने को लेकर ग्वालियर से लेकर भोपाल तक और भोपाल से लेकर दिल्ली तक जोर अजमाइश देखी गई थी और सबसे आखिरी दौर में टिकट फाइनल हो पाया था। ग्वालियर नगर निगम में महापौर चुनाव में 57 साल बाद भाजपा की हार को भी नई और पुरानी भाजपा की खेमेबाजी का परिणाम बताया जाता है। गौर करने वाली बात यह है कि भाजपा की महापौर उम्मीदवार को सिंधिया खेमे के मंत्री के क्षेत्र से बड़ी हार का सामना करना पड़ा था।
इतना ही नहीं पंचायत चुनाव में ग्वालियर के साथ-साथ डबरा और भितरवार में जनपद पंचायत अध्यक्ष पद पर अपने समर्थकों को बैठाने के लिए महाराज समर्थक पूर्व मंत्री इमरती देवी और भाजपा के कई दिग्गज मंत्री आमने सामने आ गए थे। पंचायत चुनाव में दोनों ही गुटों ने अपना वर्चस्व दिखाने के लिए खुलकर शक्ति प्रदर्शन भी किया था।