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Last Updated :मुजफ्फरनगर-सहारनपुर , बुधवार, 3 अप्रैल 2019 (12:01 IST)

जाटलैंड में मोदी लहर का असर, मुश्किलें बढ़ा सकते हैं पार्टी उम्मीदवार

जाटलैंड में मोदी लहर का असर, मुश्किलें बढ़ा सकते हैं पार्टी उम्मीदवार - Loksabha election Jatland and BJP
मुजफ्फरनगर-सहारनपुर। 'मैं मोदी का फैन हूं और मैंने पिछली बार मोदी को ही वोट दिया था, लेकिन हमारे यहां काम तो कुछ हुआ नहीं। जिसे मोदी के नाम पर जिताया, वह मिलता नहीं। शिकायत भी नहीं कर सकते।' यह टिप्पणी अकेले केवल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोकसभा क्षेत्र सहारनपुर के एक पेट्रोल पंप पर काम करने वाले युवा सतबीर यादव की नहीं है।
 
लोकसभा चुनावों के पहले चरण के लिए मतदान करने जा रहे मुजफ्फरनगर, बागपत, कैराना और गाजियाबाद के मतदाताओं में कई ऐसे हैं जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ तो करते हैं पर भाजपा के स्थानीय उम्मीदवारों को वोट नहीं देना चाहते।
 
पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के आठ लोकसभा क्षेत्रों में मतदान होना है और जहां भी सपा-बसपा गठबंधन का उम्मीदवार मजबूत स्थिति में है वहां मोदी के शुभचिंतकों में यह दुविधा है।
 
मुजफ्फरनगर में भाजपा के एक पदाधिकारी ने नाम न लिखे जाने का आग्रह करते हुए बताया कि पार्टी को संघ (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) के दबाव में संजीव बालियान को टिकट देना पड़ा और उसी के चलते आसपास के लोकसभा क्षेत्रों में भी उम्मीदवार नहीं बदले गए। पदाधिकारी ने स्वीकार किया कि उम्मीदवार न बदले जाने का नुकसान पार्टी को हो सकता है। 
 
मुजफ्फरनगर में भाजपा के लिए चिंता की दूसरी वजह विपक्षी गठबंधन के उम्मीदवार राष्ट्रीय लोकदल के नेता चौधरी अजित सिंह के प्रति जाट समुदाय की सहानुभूति होना और गन्ना किसानों का भुगतान न होने से उपजी नाराजगी है।
 
बालियान पिछली बार मोदी लहर पर सवार होकर चार लाख से अधिक वोटों से जीते थे। रालोद को उम्मीद है कि इस बार जाट वोटों में विभाजन और सपा-बसपा के समर्थन के कारण मुस्लिम, दलित व पिछड़ा वर्ग के झुकाव का उन्हें फायदा मिलेगा। अजित सिंह की तरह बालियान भी जाट समुदाय से हैं।
 
अजित सिंह के एक समर्थक और दिल्ली - मुजफ्फरनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर ढाबा चलाने वाले रवींद्र अहलावत ने कहा, जाटों की नाराजगी तीन मसलों पर है। पहला, हमारे नेता अजित सिंह से केंद्र सरकार ने अच्छा सुलूक नहीं किया। उनकी कोठी (राजधानी में सांसद के तौर पर आवंटित सरकारी मकान) खाली करवाई। दूसरा, गन्ना किसानों का भुगतान नहीं हुआ और तीसरा, यूपीए ने जाट आरक्षण का फैसला किया पर भाजपा के समय उसे सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया। अहलावत ने यह भी कहा, 'मैं चाहता हूं नरेंद्र मोदी फिर से प्रधानमंत्री बनें पर यहां से तो अजित सिंह को जिताना है।'
 
भाजपा ने बागपत में केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह को उम्मीदवार बनाया है और यहां अजित सिंह के बेटे जयंत चौधरी गठबंधन के उम्मीदवार हैं। कांग्रेस ने यहां उम्मीदवार नहीं दिया है। यहां भी नरेंद्र मोदी और भाजपा की चिंता की वही वजहें दिखती हैं जो मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद और सहारनपुर में हैं। स्थानीय सांसद को फिर से टिकट दिए जाने से असंतोष और गठबंधन की मजबूती।
 
प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करने वाले हर वर्ग में हैं। मुजफ्फरनगर में चाय की एक छोटी दुकान चलाने वाले हैदर अली ने चुनाव का जिक्र करते ही बिना रुके मोदी की खूबियां गिनानी शुरू कर दी और फैसला भी सुना दिया कि मेरा वोट तो मोदी को ही मिलेगा। मोदी के प्रति मुस्लिम समुदाय की सहानुभूति के बारे में ज्यादा खोजबीन करने पर लोग बताते हैं कि 2013 में जाट व मुस्लिम समुदाय के बीच हुए दंगे का डर अब तक कायम है और मुस्लिम समुदाय में कमजोर तबका सत्तारूढ़ दल के खिलाफ अपनी राय जाहिर कर किसी तरह का जोखिम नहीं मोल लेना चाहता। 
 
सहारनपुर-बागपत रोड से लगे गांव खटकाहेड़ी में बढ़ई का काम करने वाले अक्षय कुमार ने पूछने पर बिना लाग लपेट के कहा कि वह नरेंद्र मोदी को वोट देगा। यहां से उम्मीदवार कौन है, यह पूछने पर उसका जवाब था मालूम नहीं। मोदी को वोट देने का कारण पूछने पर उसने कहा, कानून व्यवस्था पहले से बेहतर हुई है। 
 
मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, बागपत और गाजियाबाद में उम्मीदवार न बदलने से भाजपा कार्यकर्ता यदि नाराज हैं तो कैराना में उनकी नाराजगी उपचुनाव में उम्मीदवार रहीं मृगांका सिंह को टिकट न दिए जाने से है। मृगांका इस इलाके में प्रभावशाली गूजर नेता और पूर्व सांसद हुकुम सिंह की बेटी हैं। हुकुम सिंह के निधन के बाद हुए उपचुनाव में भाजपा ने कैराना से मृगांका को उम्मीदवार बनाया था, लेकिन वह विपक्ष की संयुक्त उम्मीदवार तबस्सुम हसन से चुनाव हार गईं। इसके पहले वह कैराना से ही विधानसभा का चुनाव भी हार चुकी थीं। बावजूद इसके मृगांका को उम्मीद थी कि पार्टी उन्हें इस बार फिर मौका देगी। भाजपा ने मृगांका के बजाय गूजर समुदाय से ही दूसरे नेता प्रदीप चौधरी को यहां से टिकट दिया है। 
 
भाजपा के स्थानीय नेता मानते हैं कि मृगांका के प्रति समुदाय की सहानुभूति है और उन्हें टिकट न दिए जाने से एक बड़ा तबका नाराज है। इस नाराजगी से संभावित नुकसान की भरपाई के लिए ही भाजपा ने इलाके के एक और गूजर नेता व समाजवादी पार्टी से विधानपरिषद के सदस्य वीरेंद्र सिंह को पार्टी में शामिल किया है।
 
भाजपा के स्थानीय रणनीतिकारों का आकलन है कि सांसदों के प्रति नाराजगी से बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। पिछले चुनाव में अगर सहारनपुर को छोड़ दें तो कहीं भी भाजपा की जीत का अंतर दो लाख वोट से कम नहीं था। सहारनपुर में भाजपा उम्मीदवार को लगभग 65 हजार वोट ज्यादा मिले थे। कांग्रेस वहां दूसरे नंबर पर थी। रणनीतिकार मान रहे हैं कि जीत का अंतर हो सकता है कि कम हो, पर मोदी के नाम पर अब भी भाजपा जीतने की स्थिति में है।
 
हाल ही में चर्चा में आए भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद रावण के गांव छुटमलपुर में उनके पड़ोसी जॉनी ने कहा, इस बार भाजपा उम्मीदवार तभी जीत सकते हैं जब मुस्लिम मतों में बंटवारा हो। मुजफ्फरनगर, बागपत, गाजियाबाद और कैराना में इसकी संभावना नहीं है। सहारनपुर और बिजनौर में इसका सबसे ज्यादा खतरा है। जॉनी का मानना था कि दलित वर्ग का एक बड़ा तबका मोदी का समर्थक है लेकिन अधिकांश का वोट मायावती को ही मिलेगा। (भाषा)