गर्म रेत का किनारा शीतलता का एहसास कराती लहरें विरोधाभास है दोनों में माँ तुम और मैं हम भी तो विरोधाभासी हैं तुम शीतल लहरों के मानिंद और मैं मैं गर्म रेत तुम्हारे इंतज़ार में तुम्हारी शीतलता से आनन्दित होने को मैं आतुर रहता हूँ और तुम बाहें फैलाए भर लेती हो मुझे अपने अंक में इन लहरों में आय पाकर भूल जाता हूँ मैं अपने सभी दुःख बाहें फैलाए मुस्कराकर तुम देती हो प्रेरणा जीने की और मैं लहरों में रेत की तरह तुममें विलीन होकर ही अपना अस्तित्त्व पाता हूँ।