शी की विचारधारा को फैलाने में जुटा चीन
चीन की यूनिवर्सिटियां राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सोच को चीन और पूरी दुनिया में फैलाने में जुटी हैं। इसके लिए सरकार से भरपूर आर्थिक मदद मिल रही है जिससे इंटरएक्टिव ऑनलाइन कोर्स और नए रिसर्च इंस्टीट्यूट बनाए जा रहे हैं।
पिछले साल अक्टूबर से चीन की बहुत सी यूनिवर्सिटियों ने शी की विचारधारा को अपने मूल पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया है। माओ त्सेतुंग के बाद शी जिनपिंग चीन के पहले ऐसे नेता हैं जिनकी सोच को बाकायदा यूनिवर्सिटियों में पढ़ाया जा रहा है। सरकार की तरफ से भी आदेश है कि शी के विचारों को किताबों, कक्षाओं और छात्रों के दिमाग में डाला जाए। इसी का नतीजा है कि यूनिवर्सिटियों में अनिवार्य विचारधारा कक्षाओं को नए सिरे से अपडेट किया गया है।
हू आंगांग चीन की प्रतिष्ठित त्सिंगहुआ यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं। वह दशकों से तर्क देते रहे हैं कि चीन की अनोखी राजनीतिक व्यवस्था ही उसे एक दिन अमेरिका जैसी महाशक्ति बनने में मदद करेगी। अब वह चीन में बढ़ रहे ऐसे विचारकों में शामिल हैं जो शी जिनपिंग की विचारधारा का अध्ययन कर रहे हैं और इसे अधिकारियों और छात्रों के साथ साझा कर रहे हैं।
शी जिनपिंग की इस विचारधारा को आधिकारिक तौर पर "नए युग के लिए चीनी विशेषताओं वाले समाजवाद के लिए शी जिनपिंग के विचार" के नाम से जाना जाता है। शी विचारधारा दरअसल उनके सार्वजनिक बयानों का संग्रह है। इनमें चीन को कम्युनिस्ट पार्टी के कड़े नियंत्रण में 2050 तक आर्थिक और सैन्य ताकत बनाने पर जोर दिया गया है।
बीजिंग में अपने यूनिवर्सिटी कैंपस में हू कहते हैं, "शी के प्रस्तावों से पूरी दुनिया को फायदा होगा। उनका कोई मुकाबला ही नहीं है। चीन ने एक नए दौर में प्रवेश कर लिया है और उसने दुनिया भर को सामान मुहैया कराना शुरू कर दिया है। जैसा कि मैंने ठीक दस साल पहले कहा था कि ऐसा ही होगा।"
वहीं चीन के सुचोऊ शहर में स्थित शियान चियाओथोंग-लीवरपूल यूनिवर्सिटी में चीनी शिक्षा पर विशेषज्ञ माइकल गोव शी कहते हैं कि शी चाहते हैं कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के मूल्यों को चीनी जनता के बीच में ज्यादा स्वीकार्यता मिले, ताकि उनकी वैधता को मजबूती मिले। वह कहते हैं कि शी के नेतृत्व में फर्क यह है कि वह राज्य के मूल्यों का विस्तार करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि लोगों को अपनी तरफ खींच सकें।
शी चीन में माओ के बाद सबसे ताकतवर नेता हैं। उनके लिए राष्ट्रपति के दो कार्यकालों की सीमा को पहले ही खत्म किया जा चुका है। इसका मतलब है कि शी जिनपिंग चाहें तो आजीवन चीन के नेता बने रह सकते हैं। चीनी व्यवस्था पर दिन प्रति दिन उनकी पकड़ मजबूत होती जा रही है।
इस बीच, कुछ लोग ऐसे भी हैं जो शी की विचारधारा को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं दिखते। बीजिंग की एक यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र पढ़ने वाले एक छात्र का कहना है कि इसमें नारों और लक्ष्यों के सिवाय कुछ नहीं है और आम लोगों की जिंदगी से इसका ज्यादा सरोकार नहीं दिखता। लेकिन दूसरी तरफ सरकार और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी शी के विचारों को फैलाने में जुटी है। अक्टूबर 2017 से यूनिवर्सिटियों में शी विचारधारा से संबंधित 30 नए शोध संस्थान खोले गए हैं। इसके लिए 25 लाख डॉलर का बजट रखा गया है।
एके/एमजे (रॉयटर्स)