शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. डॉयचे वेले
  3. डॉयचे वेले समाचार
  4. women saving environment
Written By DW
Last Updated : रविवार, 19 सितम्बर 2021 (20:14 IST)

खुद भी आत्मनिर्भर बन रहीं, और पर्यावरण को भी बचा रहीं ये महिलाएं

खुद भी आत्मनिर्भर बन रहीं, और पर्यावरण को भी बचा रहीं ये महिलाएं - women saving environment
प्रशांत महासागर के तट पर रहने वाली अफ्रीकी मूल की कोलंबियाई महिलाओं ने हिंसा व संघर्ष के साथ-साथ खनन और अवैध कटाई से उत्पन्न हालातों का सामना किया है। अब ये महिलाएं अपने पर्यावरण को बचाने के लिए साथ मिलकर काम कर रही हैं।
 
हर दिन जैसे ही कोलंबिया के पश्चिमी तटों पर सूरज निकलता है, उसी समय करीब एक दर्जन महिलाएं डोंगी (छोटी नाव) और मोटरबोट पर सवार होकर "पियांगुआ" पकड़ने निकल जाती हैं। इसके लिए, ये महिलाएं घने मैंग्रोव जंगलों के बीच करीब दो घंटे तक यात्रा करती हैं। पियांगुआ, घोंघे की तरह का एक समुद्री जीव है जो प्रशांत महासागर के इस तटीय इलाके में पाया जाता है।
 
यह काम काफी थका देने वाला होता है। लंबे समय से यह काम महिलाएं ही करती आ रही हैं। एस्नेडा मोंटानो पियांगुआ पकड़ने के लिए दिन का अधिकांश हिस्सा कीचड़ में बिताती हैं। इस कीचड़ में ही पियांगुआ छिपे रहते हैं। इस काम के दौरान सांप, टॉडफिश, मच्छरों के हमले का डर हमेशा बना रहता है।
 
मोंटानो की उम्र 50 की होने को है। वह आठ साल की उम्र से पियांगुआ पकड़ने का काम कर रही हैं। वह कहती हैं, "यह हमारी परंपरा और विरासत है जो हमें हमारे पूर्वजों से मिली है। मैंने यह काम अपनी दादी से सीखा है।"
 
मोंटानो, दक्षिणी पश्चिमी कोलंबिया के एक छोटे से शहर क्विरोगा में रहती हैं। यहां रहने वाले ज्यादातर लोग अफ्रीकी मूल के हैं। वह 20 स्थानीय "पियांगुएरा" के एक समूह, "एसोसिएशन ऑफ विमिन बिल्डिंग ड्रीम्स" का नेतृत्व करती हैं। इस समूह में शामिल कई महिलाएं ‘सिंगल मदर' हैं। वहीं, कई ऐसी हैं जो युद्ध और संघर्ष वाले इलाकों से विस्थापित होकर यहां आई हैं।
 
ये महिलाएं 2013 में सशस्त्र समूहों से खुद को सुरक्षित रखने के लिए एक साथ जुड़ी थीं। ये लोग रोजगार के नाम पर केकड़े, पियांगुआ जैसे समुद्री जीवों को बेचकर अपना जीवन-यापन करती हैं।
 
मोंटानो विवाहित हैं। वह कहती हैं, "इससे हमें अपने पतियों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है। साथ ही, हम अपने बेटे और बेटियों की मदद भी कर पाते हैं।"
 
पारिस्थितिकी संकट का खामियाजा
महिलाओं को मिली यह आर्थिक स्वतंत्रता पूरी तरह मैंग्रोव जंगलों और आसपास के जलीय क्षेत्रों से जुड़ी हुई है। हालांकि, यह पारिस्थितिकी तंत्र कोका की खेती, खनन, खेती के लिए तैयार की जा रही जमीन की वजह से संकट में है। कोका के पौधे से ही कोकीन तैयार होता है और इस पौधे को लगाने के लिए जंगलों की कटाई की जाती है।
 
मोंटानो कहती हैं, "इससे पहले, हम सिर्फ घर बनाने के लिए मैंग्रोव के पेड़ों की टहनियों को काटते थे। अब बाहरी लोग आते हैं और पूरा पेड़ काट देते हैं। वे जिस ‘चेनसॉ' तेल को यहां छोड़ जाते हैं उससे पियांगुआ मर जाते हैं। अगर अभी हमारे पास जो है उसे सुरक्षित नहीं रखेंगे, तो हमारे सामने खाने का संकट पैदा हो जाएगा। आखिर ये मैंग्रोव ही हमारे जीवन-यापन के साधन हैं।"
 
पियांगुएरा की हालत वैश्विक समस्या को दिखाती है। जब पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने से आजीविका नष्ट होती है, तो सबसे ज्यादा खामियाजा महिलाओं को भुगतना पड़ता है।
 
पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा गरीब
"द डबल एक्स इकॉनमी" की लेखक और अर्थशास्त्री लिंडा स्कॉट के अनुसार, दुनिया की गरीब आबादी में सबसे ज्यादा संख्या महिलाओं की है। पूरी दुनिया की 80 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि का मालिकाना हक पुरुषों के पास है। महिलाओं के पास संसाधनों की कमी होती है। उन्हें नौकरी के अवसर कम मिलते हैं। इसके अलावा, जब समाज पर जलवायु परिवर्तन का असर पड़ता है, तो महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा बढ़ जाती है।
 
मुख्य तौर पर महिलाएं घर की देखभाल, घर निर्माण से जुड़े काम, काम चलाने लायक खेती, और पानी भरने का काम करती हैं। इन सब कामों से पर्यावरण पर काफी कम असर पड़ता है। लेकिन जब प्राकृतिक संसाधन कम होने लगते हैं, तो इन कामों को करना मुश्किल हो जाता है। ये संसाधन महिलाओं के लिए काफी मायने रखते हैं। ऐसे में महिलाएं भी इन प्राकृतिक संसाधनों को बचाने में अहम भूमिका निभा सकती हैं।
 
बोगोटा में एंडीज विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और भूगोलविद डायना ओजेडा कहती हैं, "महिलाओं को हाशिए पर धकेल दिया गया है। इसलिए, वे खुद को संगठित करने का काम कर रही हैं। अगर वे ऐसा नहीं करेंगी, तो उनके लिए जिंदगी जीना मुश्किल हो जाएगा।"
 
मैंग्रोव बचाना मतलब जिंदगी बचाना
महिलाएं कई पीढ़ियों से पियांगुआ को पकड़ती रही हैं। ऐसे में उनका भविष्य पारिस्थितिकी तंत्र के भविष्य के साथ जुड़ा हुआ है। इसलिए, बिल्डिंग ड्रीम्स समूह से जुड़ी महिलाएं पारिस्थितिकी तंत्र और खुद को, दोनों को बचाने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रही हैं।
 
2020 के बाद से, मोंटानो और अलग-अलग संगठनों की करीब 100 अन्य महिलाओं ने कटाई से प्रभावित 18 हेक्टेयर मैंग्रोव को फिर से हरा-भरा बना दिया है। वे हर हफ्ते मैंग्रोव को मापने और उनकी निगरानी करने के लिए डोंगी में निकलती हैं।
 
कोलंबिया में वर्ल्डवाइड फंड फॉर नेचर के समुद्री कार्यक्रम की अधिकारी स्टेला गोमेज का कहना है कि ज्यादा से ज्यादा महिलाएं पियांगुआ पकड़ने का काम करके आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बन रही हैं।
 
गोमेज कहती हैं, "मैंग्रोव के दलदल की सुरक्षा का सीधा असर उनके परिवार के भोजन पर पड़ता है। ये न सिर्फ उनके जीवन-यापन का साधन हैं बल्कि कार्बन को सोखने और जैव विविधता के आकर्षण के केंद्र भी हैं। साथ ही, ये जंगल समुद्री तूफानों से तट पर रहने वाले लोगों की सुरक्षा भी करते हैं।"
 
दूषित पानी
पियांगुएरा न सिर्फ पर्यावरण को बचाने के लिए संघर्ष कर रही हैं, बल्कि और भी कई मुद्दों के लिए संघर्ष कर रही हैं। प्रशांत महासागर के तट पर बसे कोलंबिया के इस इलाके में कोई सड़क नहीं है। यहां आने-जाने का एकमात्र साधन नदियां हैं।
 
नदियों के किनारे पर लकड़ी के पारंपरिक घर बने हैं। कुछ घर मोटरबोट्स और डोंगी पर भी बने हुए हैं। ये डोंगी और मोटरबोट्स माल और लोगों को एक जगह से दूसरी जगह पर पहुंचाते हैं। जब ये चलते हैं, तो पानी के ऊपर और नीचे दोनों जगह हलचल होती है।
 
यह दृश्य देखने में जितना अच्छा लगता है उतना ही समुदाय के लोगों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है क्योंकि इस इलाके में खनन की वजह से लोगों को स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है।
 
पश्चिमी तट पर स्थित शहर टिम्बिकी में 18वीं शताब्दी के अंत से अब तक सोने का खनन होता आ रहा है। पिछले 20 सालों से यहां मशीन के जरिए अवैध तरीके से खनन हो रहा है। यह मशीन पेड़ों को काट देता है और तट के किनारे जमे गाद को भी हटा देता है।
 
वहीं, सोने के खनन में इस्तेमाल होने वाले रसायनों ने पानी और मिट्टी को दूषित कर दिया है। अवैध खनन करने वाले लोगों द्वारा नदियों और जलमार्गों में फेंके गए तेल, ईंधन, साइनाइड, और पारे की वजह से नदियों की वनस्पतियां, मछलियां, और क्रस्टेशियाई मर रहे हैं।
 
इस क्षेत्र की अधिकांश महिलाओं की तरह, लूज नेरी फ्लोरेज खाना बनाने को लेकर काफी प्रसिद्ध हैं। अपने परिवार को भोजन कराने की जिम्मेदारी उनके ऊपर ही है। वह हर दिन सुबह-सुबह उठकर अपने किचन गार्डन में पारंपरिक क्यारियों पर उगाई गई केले और जड़ी-बूटियों की मदद से काफी स्वादिष्ट मछली पकाती हैं।
 
हालांकि, पानी के दूषित हो जाने के बाद ऐसी महिलाओं के लिए परिवार की देखभाल करना मुश्किल हो गया है। जो जलमार्ग कभी समुदाय के लिए जीवनदायिनी थे, अब जहर के समान हो गए हैं।
 
फ्लोरेज कहती हैं, "जब 2010 में अवैध खनन शुरू हुआ था, तब काफी ज्यादा महिलाएं बीमार पड़ी थीं। बच्चों में डायरिया और कई तरह के इंफेक्शन होने लगे। नदी पूरी तरह गंदी हो गई थीं।"
 
महिलाओं का कहना है कि इन दिनों उन्हें पीने के साफ पानी की तलाश में दूर-दूर तक जाना पड़ता है। और यह सब कोका के बागानों से निकलने वाले  रसायन से दूषित है। 2019 में, कोलम्बियाई ड्रग ऑब्जर्वेटरी ने बताया कि टिम्बिकी में लगभग 1,464 हेक्टेयर में कोका उगाया जा रहा था। इसमें ज्यादातर अवैध थे।
 
लगातार आय से आत्मनिर्भर होती हैं महिलाएं
पर्यावरण में होने वाले नुकसान का सीधा असर मछली पकड़ने और पारंपरिक तरीके से खेती करने जैसे कामों पर पड़ता है। लोग गरीबी से बचने के लिए कोका के उत्पादन की ओर आकर्षित होते हैं। इस वजह से प्राकृतिक संसाधन कम हो रहे हैं।
 
फ्लोरेज बताती हैं, "यही वजह है कि स्थानीय महिलाओं के नेतृत्व वाले समूह की आर्थिक रणनीतियां इतनी महत्वपूर्ण हैं।" फ्लोरेज ‘एल सेबोलाल' संगठन की अध्यक्ष हैं।  इस संगठन में 13 महिलाएं और चार पुरुष शामिल हैं। ये लोग संकीर्ण-मुंह वाली पारंपरिक टोकरियों का इस्तेमाल करके नदी से झींगा पकड़ते हैं। साथ ही, हाथ से अलग-अलग सामान बनाने के लिए कैलाश के पेड़ों सहित अलग-अलग पौधों की खेती करते हैं।
 
वह कहती हैं, "कोका उगाने के लिए पेड़ों को काटने के बजाय, हम अपने पौधे लगाकर और झींगा पकड़कर पैसे कमाने के तरीके को बढ़ावा देते हैं। इससे पर्यावरण को किसी तरह का नुकसान भी नहीं होता है।"
 
इस पहल से महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता मिलती है। साथ ही, उन ताकतों का विरोध करने की हिम्मत भी मिलती है जो न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि महिलाओं को भी नुकसान पहुंचाते हैं और उनका शोषण करते हैं।
 
चियांगुआ फाउंडेशन भी महिलाओं के नेतृत्व वाला संगठन है। यह संगठन पिछले 26 सालों से इस इलाके में महिलाओं के अधिकारों के लिए काम कर रहा है। संगठन पौधों के बारे में विशेष जानकारी प्राप्त कर रहा है, ताकि इस क्षेत्र के मूल पौधे ‘पापा चाइना' से आटे का उत्पादन किया जा सके। साथ ही, जड़ी-बूटियों की खेती भी कर रहा है, ताकि इसका इस्तेमाल भोजन, सौदर्य प्रसाधन, और इलाज के लिए किया जा सके।
 
चियांगुआ फाउंडेशन की कोऑर्डिनेटर मर्लिन कैसेडो कहती हैं, "लिंग की वजह से होने वाली हिंसा की एक वजह आर्थिक निर्भरता है जो महिलाओं की पुरुषों पर होती है। इसलिए, उत्पादन से जुड़े परियोजनाओं को लागू करते समय, महिलाएं कह सकती हैं कि मैं भी पैसे कमा सकती हूं और मैं इस तरह की चीजें नहीं बर्दाश्त कर सकती।"
 
रिपोर्ट: लिया वालेरो
ये भी पढ़ें
अब कम बच्चे गोद लिए जा रहे हैं भारत में