क्या इंसानों का सीवर में उतरना कभी खत्म हो पाएगा?
रिपोर्ट : चारु कार्तिकेय
केंद्र सरकार ने इंसानों द्वारा सीवर की सफाई को पूरी तरह से खत्म करने के लिए नया अभियान शुरू किया है। क्या ये नए कदम इस अमानवीय प्रथा को खत्म कर पाएंगे?
केंद्र सरकार ने गुरुवार, 19 नवंबर को 2 नई घोषणाएं कीं। सामाजिक कल्याण मंत्रालय सीवरों और सेप्टिक टैंकों की सफाई के लिए मशीनों का उपयोग अनिवार्य करने के लिए एक कानून लेकर आएगा। दूसरी तरफ शहरी कार्य मंत्रालय ने इंसानों द्वारा सीवर की सफाई रोकने के लिए राज्यों के बीच एक प्रतियोगिता की शुरुआत की।
243 शहरों के बीच होने वाली इस प्रतियोगिता के लिए 52 करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं। राज्य सरकारों ने प्रण लिया है कि अप्रैल 2021 तक इस तरह की सफाई की प्रक्रिया को पूरी तरह से मशीन आधारित बना दिया जाएगा। सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले शहरों को इनाम दिया जाएगा।
भारत में मैन्युअल स्केवेंजिंग या इंसानों द्वारा नालों की सफाई एक बड़ी समस्या है। 2013 में एक कानून के जरिए इस पर प्रतिबंध भी लगा दिया गया था, लेकिन बैन अभी तक सिर्फ कागज पर ही है। देश में आज भी लाखों लोग सीवरों और सेप्टिक टैंकों की सफाई करने के उद्देश्य से उनमें उतरने के लिए मजबूर हैं।
282 सफाईकर्मियों की मौत
यह अमानवीय होने के साथ साथ जानलेवा भी है। नालों में फैली गंदगी से उनमें घातक गैसें बन जाती हैं जिन्हें सूंघ लेने मात्र से इंसान बेहोश हो जाता है। गैसें अधिक मात्रा में नाक में गईं तो जान ले लेती हैं। 2016 से 2019 के बीच देश के अलग-अलग हिस्सों में कम से कम 282 सफाईकर्मी सीवर और सेप्टिक टैंक साफ करने के दौरान मारे गए।
केंद्र सरकार द्वारा संसद में दी गई जानकारी के मुताबिक इनमें से सबसे ज्यादा (40) सफाईकर्मियों की मृत्यु तमिलनाडु में हुई, 31 की हरियाणा और 30 की दिल्ली और गुजरात में हुई। सफाईकर्मियों के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों का कहना है कि असली आंकड़े इससे कहीं ज्यादा हैं और असली तस्वीर कहीं ज्यादा भयावह।
इसी स्थिति को देखते हुए केंद्र सरकार ने ये नए कदम उठाए हैं। सरकार ने निर्णय लिया है कि कानून में संशोधन करके सीवरों और सेप्टिक टैंकों की मशीन आधारित सफाई को अनिवार्य कर दिया जाएगा और शब्दावली में से 'मैनहोल' शब्द को हटाकर 'मशीन-होल' शब्द का उपयोग किया जाएगा।
इसके अलावा कानून के उल्लंघन के मामलों की शिकायत करने के लिए एक राष्ट्रीय हेल्पलाइन भी शुरू की जाएगी। सामाजिक कल्याण मंत्रालय ने यह भी फैसला लिया है कि सफाई मशीनें खरीदने के लिए नगर पालिकाओं और ठेकेदारों की जगह सीधे सफाई कर्मचारियों को पैसे दिए जाएंगे।