अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन पद संभालने के बाद अपनी पहली विदेश यात्रा की तैयारी कर रहे हैं। इस यात्रा को उन्होंने लोकतंत्र के लिए निर्धारक क्षण बताया है। अपने पहले विदेश दौरे पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के एजेंडे में जी-7, नाटो और यूरोपीय संघ के साथ शिखर वार्ता के अलावा रूसी राष्ट्रपति व्लदीमीर पुतिन से जिनेवा में मुलाकात भी होगी।
अपनी यात्रा से पहले बाइडन ने वॉशिंगटन पोस्ट में एक लेख में लिखा है, 'पिछली सदी की रूप-रेखा देने वाले लोकतांत्रिक सहयोगी और संस्थान आधुनिक खतरों और दुश्मनों के सामने अपनी क्षमता साबित कर पाएंगे? मैं मानता हूं कि जवाब है, हां। और इस हफ्ते यूरोप में हमारे पास यह साबित करने का मौका है।'
बाइडन के ये शब्द अमेरिका के दुनिया के बारे में पारंपरिक रवैये को पुख्ता करने का संकेत भी देते हैं जो बीते चार साल में डोनाल्ड ट्रंप के राज में बदल गया था। बाइडन अपने जी-7 के सहयोगियों ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली और जापान के नेताओं से शुक्रवार को इंग्लैंड में मिलेंगे। फिर वह विंडसर कासल में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय से भेंट करेंगे। वहां से बाइडन ब्रसेल्स जाएंगे और 14 जून को नाटो की बैठक में हिस्सा लेंगे। 15 को यूरोपीय संघ के साथ शिखर वार्ता के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति स्विट्जरलैंड जाएंगे, जहां वह व्लादीमीर पुतिन से मिलेंगे। 78 वर्षीय बाइडन के लिए पद संभालने के बाद यह अब तक का सबसे सघन दौरा है, जिसकी रूप रेखा इस तरह तैयार की गई है कि पुतिन के सामने अमेरिकी राष्ट्रपति को सिर्फ अमेरिका नहीं बल्कि पूरे लोकतांत्रिक जगत के नेता के तौर पर पेश किया जा सके। अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलविन कहते हैं कि वह पूरी ताकत के साथ इस बैठक में जाएंगे।
'अमेरिका लौट आया है'
पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का तर्क था कि अमेरिका को दुनिया का थानेदार नहीं होना चाहिए। उनके समर्थकों के बीच यह रुख काफी लोकप्रिय भी था। लेकिन अब जबकि दुनिया कोरोनावायरस महामारी के सामने रेंग रही है, बाइडन अमेरिका को पूरी दुनिया के लिए वैक्सीन से लेकर आर्थिक प्रगति के रास्ते पर वापस लाने वाले रहनुमा के तौर पर पेश करना चाहते दिखते हैं।
उन्होंने ईरान के साथ परमाणु समझौते पर बातचीत फिर से शुरू कर ही दी है और जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर भी नेतृत्व संभाल लिया है। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन कहते हैं, 'अमेरिका लौट आया है। विकल्प है, चीन का अधिपत्य या फिर कोलाहल।'
हालांकि ट्रंप के दौर के सदमे से उबर रहे यूरोपीय देश इन संकेतों को लेकर कितने आशवस्त हैं, यह अभी स्पष्ट नहीं है। उनके और अमेरिका के बीच अभी भी संघर्ष यदा-कदा नजर आ रहा है। पिछले महीने फ्रांस ने जब संयुक्त राष्ट्र में इस्राएल और हमास के बीच युद्ध विराम की मांग का प्रस्ताव पेश किया तो अमेरिका ने उसे अवरुद्ध कर दिया। अमेरिका ने जब अपने यहां वैक्सीन को रोके रखा तो यूरोपीय देशों ने नाराजगी जाहिर की। और अब जब नाटो की मुलाकात के दौरान ही बाइडन तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैयप एर्दोआन से मिलेंगे, तो उसे लेकर भी यूरोपीय देश सशंकित हैं। दोनों नेताओं ने एक दूसरे को लेकर तीखे बयान दिए हैं। बाइडन ने तुर्की में मानवाधिकारों की गंभीर हालत पर चिंता जताई तो एर्दोआन ने कहा कि अमेरिका एक कीमती दोस्त खो सकता है।
जिनेवा पर निगाहें
सबसे ज्यादा निगाहें जिनेवा पर रहेंगी, जहां पुतिन-बाइडन मुलाकात होगी। ब्लिंकेन कहते हैं कि अमेरिका ज्यादा स्थिर रिश्ते बनाना चाहता है। अमेरिका रूस के साथ परमाणु हथियारों को लेकर न्यू स्टार्ट संधि को आगे बढ़ाकर संदेश देना चाहेगा कि उसका मकसद काम है। साथ ही ईरान के मामले में उसे रूस की जरूरत भी है। लेकिन तनाव बहुत ज्यादा है। बाइडन ने हाल ही में सोलरिवंड्स पर हुए साइबर हमले के लिए रूस को जिम्मेदार बताया था। वह यूक्रेन सीमा पर तनाव, पुतिन के विपक्षी अलेक्सी नावाल्नी की रिहाई और बेलारूस के राष्ट्रपति आलेक्जांडर लुकाशेंको के हाल ही में नागरिक विमान से पत्रकार को गिरफ्तार करने जैसे मुद्दे भी उठा सकते हैं।
जेक सुलविन कहते हैं कि पुतिन से मिलने के लिए बाइडन मतभेदों के बावजूद नहीं बल्कि इसलिए जा रहे हैं कि दोनों देशों के बीच मतभेद हैं। उधर रूस की उम्मीदें भी काफी कम हैं। मॉस्को की एचएसई यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर दमित्री सुसलोव कहते हैं, 'हमें रूस-अमेरिका संबंधों में किसी बहुत बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। रिश्तों में तनाव तो रहेगा।'
एए/वीके (रॉयटर्स, एएफपी)