प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच जारी जुबानी जंग लगातार तेज हो रही है और एक-दूसरे को नीचा दिखाने के प्रयास में दोनों नेता तमाम हदें लांघ रहे हैं।
देश में मौजूदा लोकसभा चुनावों के दौरान पश्चिम बंगाल में दो शीर्ष नेताओं के बीच जबरदस्त हमलों और बिंदुवार जवाबी हमलों की वजह से सियासत में शिष्टाचार की परंपरा गर्त में जाती नजर आ रही है। मोदी कभी ममता के प्रधानमंत्री बनने के कथित सपने का मखौल उड़ाते हैं तो कभी उन पर बांग्लादेशी घुसपैठियों को संरक्षण देने का आरोप लगाते हैं।
ममता भी इसके जवाब में उनको "एक्सपायरी बाबू” से लेकर झूठा तक तमाम विश्लेषणों से नवाजती रही हैं। दरअसल इन दोनों नेताओं के लिए बंगाल की 42 सीटें नाक व साख का सवाल बन गई हैं। इसके लिए तमाम रणनीतिक दांव-पेंच अपनाए जा रहे हैं। देश में इससे पहले किसी प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के बीच ऐसी चुनावी महाभारत संभवतः देखने में नहीं आई है। अब मोदी ने यह कह कर इस लड़ाई को चरम पर पहुंचा दिया है कि तृणमूल कांग्रेस के 40 विधायक उनके संपर्क में हैं और 23 मई के बाद तमाम विधायक ममता का साथ छोड़ देंगे।
मोदी के हमले
मोदी इस महीने बंगाल में कई रैलियां कर चुके हैं और हर रैली में ममता पर उनके हमले लगातार तेज हुए हैं। दूसरी ओर, ममता की रैलियों में भी निशाने पर मोदी ही रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बंगाल में अपना लोकसभा चुनाव अभियान भी एक ही दिन तीन अप्रैल को शुरू किया था।
मोदी ने उस दिन पहले सिलीगुड़ी और कोलकाता की रैलियों में ममता पर हमले की शुरुआत की तो ममता ने अपनी रैली में उन पर जवाबी हमले किए। अपनी पहली चुनावी रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को राज्य के विकास की राह में "स्पीडब्रेकर” यानी गतिरोधक करार देते हुए उन पर जम कर बरसे। उन्होंने कहा कि बंगाल के विकास के लिए ममता को सत्ता से जाना होगा। उन्होंने दीदी पर भी वामपंथियों की राह पर चलने का आरोप लगाया।
बंगाल के चिटफंड घोटाले का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि दीदी के मंत्रियों और उनसे जुड़े लोगों ने झूठे वादों के जरिए आम लोगों की गाढ़ी मेहनत की कमाई लूट ली। ममता पर परिवारतंत्र चलाने का आरोप लगाते हुए मोदी ने कहा है कि बुआ (ममता) और भतीजा (सांसद अभिषेक बनर्जी) मिल कर राज्य के संसाधनों को लूट रहे हैं।
सी दिन ममता ने मोदी पर जवाबी हमला करते हुए कहा कि मोदी सरकार की एक्सपायरी डेट आ चुकी है। इसलिए अब से वे उनको एक्सपायरी बाबू ही कहेंगी। उन्होंने बिंदुवार तरीके से प्रधानमंत्री के तमाम आरोपं का जवाब तो दिया ही, उनके खिलाफ जम कर बरसीं भी।
तीन अप्रैल से हमलों और जवाबी हमलों का जो सिलसिला शुरू हुआ वह अब तक न सिर्फ जारी है बल्कि लगातार तेज हो रहा है। मोदी ने ममता पर शारदा, रोजवैली और नारदा घोटाले के जरिए राज्य की छवि धूमिल करने और वोट बैंक की राजनीति के तहत अवैध प्रवासियों को शरण देने का भी आरोप लगाया। तीसरे चरण के मतदान से पहले यहां अपनी रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया कि पहले दो चरणों के मतदान के बाद स्पीडब्रेकर दीदी की नींद उड़ गई है। उन्होंने बालाकोट हमलों का सबूत मांगने के लिए भी ममता की आलोचना की और कहा कि ममता को इसके बदले चिटफंड घोटालों में शामिल लोगों के खिलाफ सबूत जुटाने चाहिए।
तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी का मखौल उड़ाते हुए प्रधानमंत्री ने कहा है कि मुठ्ठी भर सीटें लेकर वह प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रही हैं। उनका कहना था कि अगर प्रधानमंत्री की कुर्सी नीलाम होती तो दीदी चिटफंड घोटालों से लूटे गए पैसों से इसे खरीद लेतीं। मोदी ने तृणमूल कांग्रेस के शासनकाल में भ्रष्टाचार व अपराध लगातार बढ़ने का दावा करते हुए कहा कि उसने राज्य में लोकतंत्र का अपहरण कर लिया है। प्रधानमंत्री अपनी हाल की रैलियों में दावा करते रहे हैं कि बंगाल में दीदी का सूरज डूबने वाला है।
मोदी ने तो यहां तक दावा कर दियाहै कि तृणमूल कांग्रेस के 40 विधायक बीजेपी के संपर्क में हैं और लोकसभा चुनावों में पार्टी (बीजेपी) की जीत के बाद यह लोग तृणमूल से नाता तोड़ लेंगे। उन्होंने कहा, "दीदी मुठ्ठी भर सीटें लेकर आप दिल्ली नहीं पहुंच सकतीं। दिल्ली बहुत दूर है। दीदी के पैरों तले की राजनीतिक जमीन खिसक रही है।”
इससे पहले टीवी पर अभिनेता अक्षय कुमार के साथ एक गैर-राजनीतिक इंटरव्यू में मोदी ने यह कह ममता के लिए मुश्किल पैदा कर दी थी कि दीदी उन को हर साल कुर्ते और रसगुल्ले भेजती हैं। दरअसल, इसका मकसद खासकर बंगाल के अल्पसंख्यक वोटरों को यह संदेश देना था कि दीदी उनके साथ हैं।
ममता का जवाब
दूसरी ओर, तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष व मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री मोदी पर जवाबी हमला करते हुए केंद्र पर राज्य के मामलों में हस्तक्षेप का आरोप लगाया है। वह कहती हैं, बीजेपी को पहले दिल्ली की गद्दी बचाने का प्रयास करना चाहिए। उसके बाद बंगाल की ओर देखना चाहिए। उन्होंने बीजेपी को बंगाल में एनआरसी लागू करने की भी चुनौती दी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में कभी एनआरसी लागू करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। ममता कहती हैं, "देशहित में उनको प्रधानमंत्री की कुर्सी व राजनीति से हटाना जरूरी है। मोदी के मुंह को टेप से सील कर देना चाहिए ताकि वह झूठ नहीं बोल सकें।" अपनी एक अन्य रैली में ममता ने मोदी पर हिंसा व दंगों के जरिए राजनीति में दीक्षा लेने का आरोप लगाते हुए कहा कि अगर हिटलर ने उनका कामकाज देखा होता तो वह आत्महत्या कर लेता। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख सैनिकों व शहीदों के नाम पर वोट मांगने के लिए भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लगातार आलोचना करती रही हैं।
ममता ने दावा किया है कि लोकसभा चुनावों के बाद केंद्र में सरकार के गठन में और क्षेत्रीय दलों की भूमिका अहम होगी और अबकी लोकसभा में बीजेपी के लिए सौ का आंकड़ा पार करना भी मुश्किल होगा।
तृणमूल कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर विधायकों की खरीद-फरोख्त का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ चुनाव आयोग से शिकायत करने की बात कही है। मोदी को कुर्ते व रसगुल्ले उपहार में भेजने की बात का खुलासा होने की वजह से तिलमिलाई ममता ने जवाबी हमले में कहा कि उपहार देना बंगाल की संस्कृति का हिस्सा रहा है और दुर्गापूजा के दौरान वे कई लोगों को ऐसे उपहार भेजती हैं। ममता का कहना था, "अब बंगाल के लोग उनको उपहार में कंकड़ भरे मिट्टी के रसगुल्ले भेजेगें जिसे खाकर उनके सभी दांत टूट जाएंगे।” उन्होंने मोदी पर शिष्टाचार की संस्कृति पर भी राजनीति करने का आरोप लगाया है।
मोदी भी कहां चूकने वाले थे! उन्होंने कहा, "बंगाल की पवित्र मिट्टी से बने रसगुल्ले खा कर वे धन्य हो जाएंगे। उसमें जितने पत्थर होंगे, बंगाल में हिंसा और पथराव उतना ही कम होगा।”
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि पहले कभी बंगाल की लोकसभा सीटों की इतनी अहमियत नहीं रही। इस बार बीजेपी जहां यहां अधिक से अधिक सीटें जीत कर दूसरे राज्य में होने वाले संभावित नुकसान की भरपाई करना चाहती है वहीं ममता अपनी सीटों की तादाद बढ़ा कर चुनावों के बाद किंगमेकर की भूमिका में आना चाहती हैं।
राजनीतिक विश्लेषक प्रदीप मंडल कहते हैं, "अब चुनावों के आखिरी तीन चरण से पहले इन दोनों शीर्ष नेताओं के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर और तेज होने का अंदेशा है। लेकिन एख-दूसरे के खिलाफ बचकानों आरोप व कड़वाहट राजनीतिक शिष्टाचार के लिहाज से ठीक नहीं है। इसका असर केंद्र-राज्य संबंधों पर पड़ना लाजिमी है। लेकिन दोनों में से कोई भी नेता अपनी जुबान पर अंकुश लगाने को तैयार नहीं है।”
रिपोर्ट प्रभाकर, कोलकाता