चांद की जमीन पर पहली बार कदम रखने वाले नासा के अंतरिक्ष यात्रियों ने चांद के वायुमंडल का भी पता लगाया था। इसके बारे में इससे पहले जानकारी नहीं थी। यह वायुमंडल काफी कमजोर है। हाल ही में चांद की मिट्टी के नमूनों का अध्ययन करने के बाद वैज्ञानिक यह पता लगा सके हैं कि यह वायुमंडल किस प्रक्रिया से तैयार हुआ था।
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के 5 अपोलो अभियानों से हासिल हुई मिट्टी के 9 नमूनों में वैज्ञानिकों को पोटेशियम और रुबिडियम मिला है। इनके प्रकारों का अध्ययन यह दिखाता है कि चांद का वायुमंडल छोटे बड़े धूमकेतुओं की टक्कर से बना और फिर बचा रहा।
कैसे बना चांद का वायुमंडल
शुक्रवार को साइंस जर्नल में प्रकाशित एक रिसर्च रिपोर्ट में की प्रमुख लेखक निकोल नी मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की प्लेनेटरी साइंटिस्ट हैं। उनका कहना है, "धूमकेतु की टक्कर से बहुत ऊंचे तापमान की गर्मी पैदा होती है जिनका दायरा 2,000-6,000 डिग्री सेल्सियस के करीब होता है। यह अत्यधिक गर्मी चांद की सतह पर मौजूद चट्टानों को पिघला कर वाष्प बना देती है, और उसके परमाणु वातावरण में मिल जाते हैं, ठीक वैसे ही जैसे गर्मी पानी को वाष्प में बदल देती है।"
चांद का वायुमंडल अत्यधिक पतला है और तकनीकी रूप से इसे बाह्यमंडल यानी एक्सोस्फीयर कहा जाता है। इसका मतलब है कि इसके परमाणु एक दूसरे से टकराते नहीं हैं क्योंकि उनकी संख्या बहुत कम होती है। इसके उलट पृथ्वी का वायुमंडल मोटा और स्थाई है। नी का कहना है, "अपोलो मिशनों में चांद की सतह पर ऐसे उपकरण ले जाए गए थे जिन्होंने वायु में परमाणुओं का पता लगाया।"
दो प्रक्रियाओं ने बनाया वायुमंडल
2013 नासा ने रोबोटिक एलएडीईई (लुनर एटमॉस्फियर एंड डस्ट एनवायरनमेंट एक्सप्लोरर) अंतरिक्ष यान को चांद की कक्षा में उसके वायुमंडल और सतह के पर्यावरण का अध्ययन करने के लिए भेजा था। इसने वहां काम कर रही दो प्रक्रियाओं का पता लगाया जिन्हें स्पेस वेदरिंग कहा जाता है। इनमें से एक है मीटियोराइट इम्पैक्ट यानी धूमकेतु की चोट और दूसरा सोलर विंड स्पटरिंग यानी सौर हवाओं की हलचल।
नी ने बताया, "सौर हवाएं अत्यधिक ऊर्जा से आवेशित कणों को पूरे अंतरिक्ष में यहां वहां ले जाती हैं जिनमें ज्यादातर प्रोटॉन होते हैं। जब यह कण चांद से टकराते हैं तो वे अपनी ऊर्जा चांद की सतह पर मौजूद परमाणुओं को दे देते हैं, इसकी वजह से परमाणु सतह को छोड़ कर बाहर निकल जाते हैं।"
धूमकेतुओं की टक्कर
सौर हवाओं का मतलब सूरज से लगातार निकलने वाली ऊर्जा से भरपूर कणों की धारा से है, जो सौर मंडल में सब जगह पहुंचते हैं। एलएडीईई चांद के वायुमंडल में इन दो प्रक्रियाओं के तुलनात्मक योगदान का पता नहीं लगा सका था। एक नई रिसर्च ने बताया है कि धूमकेतुओं की टक्कर का योगदान 70 फीसदी से ज्यादा है जबकि सौर हवाओं का योगदान 30 फीसदी से कम है।
चांद पर धूमकेतुओं की टक्कर लगातार होती रहती है। इनमें पहले हुई बड़ी टक्करें भी शामिल हैं जिनकी वजह से इसकी सतह पर गड्ढे बन गए हैं जो आसानी से देखे जा सकते हैं। इसके अलावा छोटे धूमकेतुओं की टक्कर भी लगातार होती रहती है जिनका आकार तो कई बार धूल के बराबर होता है। इन टक्करों के नतीजे में कुछ परमाणु तो अंतरिक्ष में भी चले जाते हैं। बाकी परमाणु सतह के ऊपर वायुमंडल में लटके रहते हैं। बाद में होने वाले और धूमकेतुओं की टक्कर से निकले परमाणु इनके साथ आते रहते हैं।
कितना मोटा है चांद का वायुमंडल
चांद के वायुमंडल में मुख्य रूप से एरगॉन, हीलियम और नियॉन के साथ पोटेशियम और रुबिडियम और कम मात्रा में कुछ दूसरे तत्व हैं। इनका दायरा चांद की सतह से करीब 100 किलोमीटर तक है। इसके मुकाबले पृथ्वी के वायुमंडल का दायरा लगभग 10,000 किलोमीटर तक है।
चांद की सतह के वास्तविक परमाणुओं का परीक्षण करने की बजाय रिसर्चरों ने चांद की मिट्टी का इस्तेमाल किया। इसे रिगॉलिथ कहा जाता है। रिसर्चर एक खास उपकरण का इस्तेमाल करते हैं जिसे मास स्पेक्ट्रोमीटर कहा जाता है जो मिट्टी में पोटेशियम और रुबिडियम के अलग अलग आइसोटोप्स के अनुपात का परीक्षण करता है। आइसोटोप एक ही तत्व के अलग अलग परमाणु होते हैं जिनका भार अलग होता है। ऐसा उनके अंदर मौजूद न्यूट्रॉन की संख्या अलग होने के कारण होता है। चांद के वायुमंडल में पोटेशियम के तीन और रुबिडियम के दो आइसोटोप मौजूद हैं।
एनआर/एसके (रॉयटर्स)