जानकारों का कहना है कि टोंगा में जो सुनामी आई थी, उसकी वजह शॉक वेव या अंतरजलीय भूस्खलन हो सकते हैं वहीं अंतरजलीय ज्वालामुखी 1 दिन पहले भी फटा था और संभव है कि उसकी वजह से सुनामी हिस्सों में आई हो।
सुनामी टोंगा के 'हुंगा टोंगा-हुंगा हापई' अंतरजलीय ज्वालामुखी के फटने के बाद आई थी। न्यूजीलैंड के भूवैज्ञानिक खतरों के निगरानी तंत्र जीएनएएस की वेबसाइट पर सोमवार को छपे एक लेख में लिखा गया, 'ज्वालामुखी की वजह से सुनामी का आना दुर्लभ जरूर है पर अभूतपूर्व नहीं है।'
जीएनएस के सुनामी ड्यूटी अफसर जोनाथन हैनसन का कहना है कि हो सकता है कि यह हिस्सों में हुआ हो, क्योंकि वही ज्वालामुखी 1 दिन पहले भी फट पड़ा था। उन्होंने वेबसाइट पर लिखा, 'संभव है कि पहले वाले विस्फोट ने ज्वालामुखी के एक हिस्से को पानी के ऊपर फेंक दिया हो जिसकी वजह से ज्वालामुखी के बहुत ही गर्म छेद में पानी घुस गया होगा।'
दुनिया से कटा टोंगा
उन्होंने आगे लिखा, 'इसका मतलब है कि 1 दिन बाद जो विस्फोट हुआ, वो शुरू में पानी के नीचे हुआ और फिर पूरे महासागर में फैल गया जिसकी वजह से दूर-दूर तक सुनामी आई।' विस्फोट और सुनामी के 3 दिनों बाद तक टोंगा की 1,00,000 लोगों की आबादी बाकी दुनिया से अभी भी लगभग कटी ही हुई है। संचार व्यवस्था पंगु हो गई है और आपात राहत कोशिशें भी रुकी हुई हैं।
ज्वालामुखी ने टोंगा को राख की एक परत में ढंक दिया और हवा में 20 किलोमीटर ऊपर तक राख और गैस को फैला दिया। झटकों की ऐसी तरंगें भी बनीं जिन्हें अंतरिक्ष से पूरे ग्रह में फैलते हुए देखा गया। इसकी वजह से पूरे प्रशांत महासागर इलाके में सुनामी आई जिसकी लहरें इतनी शक्तिशाली थीं कि 10,000 किलोमीटर से भी ज्यादा दूर पेरू में 2 महिलाएं डूब गईं। 'हुंगा टोंगा-हुंगा हापई' तथाकथित 'आग के गोले' में स्थित है, जहां सरकती हुई टेक्टॉनिक प्लेटों के बीच दरार आने से भूकम्पीय गतिविधियां बढ़ जाती हैं।
कैसे आई सुनामी?
जब ज्वालामुखी फटता है तो धरती की सतह की तरफ ऊपर आते हुए मैग्मा की वजह से ज्वालामुखी की गैसें निकलती हैं, जो फिर बाहर की तरफ निकलने के रास्ते तलाशती हैं। इससे एक दबाव बनता है। ये गैसें जब पानी तक पहुंचती हैं तो पानी वाष्प बन जाता है जिससे दबाव और बढ़ जाता है।
ऑस्ट्रेलिया के मोनैश विश्वविद्यालय में ज्वालामुखी विशेषज्ञ रे कैस कहते हैं कि उन्हें संदेह है कि धमाके की तीव्रता से संकेत मिलता है कि बड़ी मात्रा में गैस उस छेद से निकली। उन्होंने कहा, 'संभव है कि पानी से होकर आगे जा रहीं झटकों की तरंगें सुनामी का कारण बन गई हों। लेकिन ज्यादा संभावना यह है कि वो उस भूस्खलन की वजह से आई हो जो विस्फोट की वजह से ज्वालामुखी के पानी के नीचे के हिस्से पर आया हो।'
असाधारण विस्फोट
एक और संभावना यह है कि चूंकि ज्वालामुखी महासागर की सतह के ठीक नीचे है, इस वजह से उसके फटने का असर और खराब हुआ। ज्वालामुखी करीब 5,900 फीट ऊंचा है और उसका लगभग पूरा हिस्सा महासागर की सतह के नीचे के डूबा हुआ है। उसके मुंह के किनारे ने एक द्वीप बना दिया है जिस पर कोई रहता नहीं है।
पेरिस में रहने वाले भूवैज्ञानिक रफाएल ग्रैंडिन कहते हैं, 'जब गहरे सागर में विस्फोट होते हैं तो पानी उन्हें दबा देता है। जब वो हवा में होते हैं तो उसके जोखिम तात्कालिक इलाके में केंद्रित रहते हैं। लेकिन जब ये बस सतह के ही नीचे होते हैं तब सुनामी का खतरा सबसे ज्यादा होता है।'
ग्रैंडीन ने बताया कि ऐसी भी खबरें आई हैं कि उस दिन हुए विस्फोट की आवाज यहां से 9,000 किलोमीटर दूर अलास्का तक में सुनाई दी। ग्रैंडिन कहते हैं कि यह असाधारण' है।(सांकेतिक चित्र)
सीके/एए (एएफपी)