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Written By DW
Last Updated : शुक्रवार, 17 सितम्बर 2021 (10:21 IST)

कोलकाता सबसे सुरक्षित महानगर, लेकिन महिलाओं के लिए नहीं

कोलकाता सबसे सुरक्षित महानगर, लेकिन महिलाओं के लिए नहीं - Kolkata safest metropolis but not for women
रिपोर्ट : प्रभाकर मणि तिवारी
 
पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता रहने के लिए देश में सबसे सुरक्षित महानगर है। इसके बावजूद इसके राज्य में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराध चिंता का विषय बन गए हैं। नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) की ओर से जारी वर्ष 2020 के आंकड़ों से यह बात सामने आई है। इसमें कहा गया है कि दिल्ली, मुंबई और चेन्नई के मुकाबले कोलकाता में वर्ष 2020 में आपराधिक मामलों में काफी कमी आई है।
 
एनसीआरबी की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि 20 लाख से ज्यादा आबादी वाले 19 शहरों में से 129।5 के स्कोर के साथ कोलकाता लगातार तीसरे साल भी सबसे सुरक्षित महानगर के तौर पर सामने आया है। 129।5 प्रति एक लाख लोगों पर दर्ज होने वाले अपराधों का आंकड़ा है।
 
इस सूची में 233 के स्कोर के साथ हैदराबाद दूसरे और 318।5 के साथ मुंबई तीसरे नंबर पर है। 1608।6 के स्कोर के साथ राजधानी दिल्ली सातवें स्थान पर है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कोलकाता में बीते 6 वर्षों यानी वर्ष 2014 से आपराधिक मामलों में लगातार गिरावट दर्ज की गई है। वर्ष 2014 में महानगर में जहां 28,226 आपराधिक मामले दर्ज किए गए थे वहीं 2020 में यह आंकड़ा 18,277 है।
 
इस दौरान महानगर में हत्या के महज 53 मामले सामने आए। इसके अलावा हत्या के प्रयास के 121 मामले सामने आए जबकि वर्ष 2018 में ऐसे क्रमशः 55 और 143 मामले दर्ज किए गए थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि सुरक्षित राज्यों की सूची में बंगाल आठवें स्थान पर है। राज्य में अपराध की दर 186.6 है, जो राष्ट्रीय औसत 478.4 से काफी कम है।
 
सब तो अच्छा नहीं
 
हालांकि एनसीआरबी रिपोर्ट में बंगाल के लिए सब कुछ अच्छा ही नहीं है। इसमें कहा गया है कि राज्य में बीते तीन वर्षों के दौरान बच्चों के खिलाफ आपराधिक मामलों में काफी तेजी आई है और वर्ष 2019 के 6,191 मामलों के मुकाबले यह आंकड़ा 10,284 तक पहुंच गया है।
 
17,008 मामलों के साथ मध्य प्रदेश इस मामले में पहले स्थान पर है। उसके बाद क्रमशः उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र का स्थान है। हालांकि कई अन्य राज्यों की तुलना में बंगाल में बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराध की दर कम है। राज्य में 3 करोड़ बच्चे हैं और उनके खिलाफ अपराध की दर 34 है।
 
इसी तरह महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध के मामलों में भी वृद्धि हुई है। बीते एक साल के दौरान जहां दिल्ली और उत्तर प्रदेश में ऐसे मामलों में कमी आई है वहीं बंगाल और ओडीशा में ये बढ़े हैं। बंगाल में वर्ष 2019 में ऐसे 29,859 मामले दर्ज किए गए थे जबकि 2020 में यह आंकड़ा बढ़ कर 36,439 तक पहुंच गया है। वैसे, इस दौरान सिर्फ नौ महिलाओं की ही हत्या हुई।
 
महिलाओं के खिलाफ अपराध
 
रिपोर्ट में कहा गया है कि महिलाओं के खिलाफ दर्ज होने वाले कुल मामलों में से 19,962 यानी आधे से ज्यादा पति के हाथों उत्पीड़न और घरेलू हिंसा से संबंधित हैं। महिला कार्यकर्ताओं का कहना है कि राज्य में महिलाओं के जागरूक होने की वजह से ऐसे अधिक से अधिक मामले पुलिस के सामने आ रहे हैं। यही वजह है कि इन आंकड़ों में वृद्धि दर्ज की गई है।
 
वर्ष 2020 के दौरान राज्य में बलात्कार के 1128 मामले दर्ज होने के बावजूद यह देश के शीर्ष दस राज्यों की सूची में शामिल नहीं है। रिपोर्ट के मुताबिक, बंगाल में महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर 76।2 है जो तेलंगाना, राजस्थान, हरियाणा, असम और ओडीशा के मुकाबले बहुत कम है।
 
राज्य में हत्या के प्रयास के मामले में भी बंगाल शीर्ष पर है।यहां इस दौरान ऐसे 14,751 मामले दर्ज किए गए, पुलिस का कहना है कि अपराधियों के खिलाफ इस आरोप में मामला दर्ज करने का मकसद समाज को एक मजबूत संदेश देना है ताकि ऐसे मामलों पर अंकुश लगाया जा सके।
 
आखिर यह विरोधाभास क्यों?
 
कोलकाता के लगातार तीसरे साल भी सबसे सुरक्षित महानगर के तौर पर सामने आने के बावजूद राज्य में खासकर महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले आखिर क्यों बढ़ रहे हैं? विशेषज्ञों में इसकी वजहों पर आम राय नहीं है। राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष लीना गांगुली कहती हैं कि लॉकडाउन के नकारात्मक पहलुओं के असर से पूरी दुनिया जूझ रही है। बंगाल कोई अपवाद नहीं है। प्रशासन और सरकार पर भरोसा होने की वजह से ही अधिक से अधिक महिलाएं अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों और अपराधों की शिकायत लेकर सामने आ रही हैं।
 
उनका कहना है कि बीते साल के दौरान ऐसे मामले तेजी से बढ़े हैं। पहले इसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती थी। लॉकडाउन में पति, पत्नी और घर के बाकी सदस्य ज्यादातर समय एक साथ गुजारते हैं। ऐसे में मतभेद और टकराव बढ़ना स्वाभाविक है।
 
महिला कार्यकर्ता शाश्वती घोष कहती हैं कि कोई भी महिला सहनशक्ति खत्म होने के बाद ही ऐसे मामलों की शिकायत लेकर सामने आती है। इसकी वजह यह है कि एक बार पुलिस में शिकायत करने के बाद किसी भी महिला के लिए ससुराल के दरवाजे बंद हो जाते हैं। मुझे लगता है कि यह महज लॉकडाउन का असर नहीं है। अत्याचार तो पहले से ही होते रहे थे। अब अधिक से अधिक महिलाएं शिकायत लेकर सामने आ रही हैं। उधर कोलकाता पुलिस के पूर्व आयुक्त प्रसून मुखर्जी कहते हैं कि ये आंकड़े सामाजिक पतन का प्रतीक हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए था। लेकिन लंबे लॉकडाउन के दौरान घर में ही बंद रहना भी इसकी एक प्रमुख वजह हो सकती है।
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