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Written By DW
Last Modified: लखनऊ , गुरुवार, 24 जुलाई 2025 (07:59 IST)

डिजिटल अरेस्ट की जांच में कितना आगे पहुंची जांच एजेंसियां?

डिजिटल अरेस्ट जैसे साइबर अपराधों को रोकने के लिए केवल सरकार और जांच एजेंसियों की नहीं, बल्कि हर नागरिक की सजगता और कानूनी समझ जरूरी है। कानून का सहारा और तकनीक की समझ के साथ इस तरह के अपराध रोके जा सकते हैं।

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रामांशी मिश्रा
लखनऊ के किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (KGMU) में डॉक्टर सौम्या गुप्ता के पास अप्रैल, 2024 में एक कॉल आई। फोन करने वाले ने खुद को एक कस्टम अधिकारी बताया। कॉल पर उनसे कहा गया कि डॉक्टर सौम्या के नाम से एक कार्गो में जाली पासपोर्ट, ड्रग्स और कुछ फर्जी दस्तावेज मिले हैं।
 
जब डॉ. सौम्या को कुछ समझ नहीं आया तो कॉल करने वाले ने एक कथित सीबीआई अधिकारी से बात करने को कहकर कॉल ट्रांसफर कर दिया। डॉ गुप्ता को अगले 10 दिनों तक वीडियो कॉल के जरिए ‘डिजिटल अरेस्ट' रखा गया और इस मामले को दबाने के नाम पर अलग-अलग बैंक अकाउंट में 85 लाख रुपए ट्रांसफर करा लिए गए। 
 
डॉ सौम्या को जब तक ठगी का एहसास हुआ तब तक उनके काफी पैसे जा चुके थे। इसके बाद उन्होंने पुलिस के पास शिकायत दर्ज करवाई। हालांकि वह इकलौती पीड़ित नहीं है, बल्कि कई अन्य डॉक्टरों के साथ भी डिजिटल अरेस्ट और साइबर फ्रॉड के मामले सामने आए हैं। लखनऊ के साथ-साथ भारत के कई हिस्सों में लोगों के साथकरोड़ों रुपए की ठगी की गई।
 
हर मामले में शामिल अपराधी किसी ना किसी विभाग के अधिकारी के रूप में सामने आए। कभी आईपीएस अधिकारी तो कभी प्रवर्तन निदेशालाय के अधिकारी और कभी सीबीआई या फिर किसी और विभाग के अधिकारी बन कर अपराधियों ने लोगों को लूटा।  
 
भारत में गृह मंत्रालय के तहत काम करने वाले भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र के 2024 के आंकड़ों के अनुसार, साइबर अपराधियों ने 12,000 करोड़ रुपए से भी अधिक की ठगी देश भर में लोगों से की है। इसमें डिजिटल अरेस्ट के मामलों में 2,140 करोड़ रुपए की ठगी की गई है। यह वे मामले हैं, जिन्हें रिपोर्ट किया गया। सैकड़ों ऐसे भी मामले हैं जो पुलिस तक पहुंचे ही नहीं।
 
यूपी में पहली बार कैसे पकड़ा गया साइबर ठग
इस मामले में लखनऊ पुलिस ने तत्परता दिखाई और 5 दिनों के भीतर ही डॉक्टर सौम्या को डिजिटल अरेस्ट करने वाले आरोपी देवाशीष राय को लखनऊ से ही गिरफ्तार कर लिया। पुलिस की पूछताछ में आरोपी ने माना कि उसने फर्जी बैंक अकाउंट खुलवाकर ठगी की है। इस मामले में एक साल के अंदर ट्रायल पूरा किया गया और कोर्ट ने देवाशीष को सात साल की सजा सुनाने के साथ ही उस पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया है।
 
उत्तर प्रदेश में डिजिटल अरेस्ट के मामले में पहली बार किसी आरोपी को सजा हुई है। हालांकि लखनऊ समेत उत्तर प्रदेश के कई अलग-अलग हिस्सों से डिजिटल अरेस्ट के सैकड़ों मामले सामने आ चुके हैं। इनमें लखनऊ के केजीएमयू के साथ संजय गांधी स्नाकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) के भी कई डॉक्टर और अधिकारी शामिल हैं जिनसे लाखों या करोड़ों रुपए की ठगी की जा चुकी हैं।
 
पुलिस ने क्या कार्रवाई की
लखनऊ के डिप्टी कमिश्नर ऑफ पुलिस (क्राइम) कमलेश दीक्षित ने डीडब्ल्यू हिंदी को मामले की जांच- पड़ताल के बिंदुओं पर बात की। कमलेश ने बताया, "आरोपी को पकड़ने के लिए कई टीमों का गठन किया गया था। पड़ताल के दौरान डॉ. सौम्या को भेजे गए दस्तावेजों की जांच भी की गई उससे पता चला कि यह कागज पूरी तरह से फर्जी थे। इसके अलावा डॉक्टर सौम्या से जिन बैंक अकाउंट में पैसे ट्रांसफर करवाए गए थे, उन्हें भी जाली दस्तावेजों के जरिए खुलवाया गया था।"
 
हालांकि बैंक अकाउंट के जरिए ही पुलिस आरोपी तक पहुंचने में सफल हुई। कमलेश ने आगे बताया, "आरोपी ने एक बैंक अकाउंट में अपना असली पैन कार्ड लगाया था। यही पुलिस के लिए सबसे बड़ी और हम कड़ी साबित हुआ।"
 
जांच में पुलिस को पता चला कि यह पैन कार्ड आजमगढ़ में मसौना के रहने वाले देवाशीष राय का था जो वर्तमान में लखनऊ में ही गोमती नगर विस्तार स्थित मंदाकिनी अपार्टमेंट में रह रहा था।
 
डिजिटल अरेस्ट करने वाले इस अपराधी को पकड़ने के लिए पुलिस ने पूरे इलाके में नाकाबंदी की और एक टीम के साथ देवाशीष के फ्लैट पर छापा मारा। इस दौरान पुलिस टीम को आरोपी के फ्लैट से पुलिस की वर्दी, लैपटॉप, कई मोबाइल और फर्जी दस्तावेजों के साथ पुलिस स्टेशन का एक नकली सेटअप भी बरामद हुआ।
 
कमलेश ने बताया कि इस आरोपी से पूछताछ में यह पता चला कि उसने यूट्यूब से सीख कर लोगों को डिजिटल अरेस्ट करके ठगी करनी शुरू की थी। इसमें उसके कुछ साथी भी शामिल थे।
 
जांच में कितनी आगे बढ़ी पुलिस
कमलेश का कहना है कि डिजिटल अरेस्ट के वर्तमान में भी एक महीने में औसतन तीन से चार मामले सामने आ ही जाते हैं। हालांकि डिजिटल अरेस्ट के इस मामले में सफलता के बाद यूपी पुलिस की टीम ने एक नई गति पकड़ी है। इस आरोपी ने 8 और भी लोगों के साथ ठगी की थी, जिसकी जांच की जा रही है। यह भारत का पहला ऐसा मामला है, जिसमें 1 साल के अंदर किसी डिजिटल अरेस्ट करने वाले साइबर अपराधी को सजा हुई।
 
एक ओर इस मामले से डिजिटल अरेस्ट और साइबर क्राइम से पीड़ित लोगों को एक आस बंधी है, वहीं पुलिस भी इन मामलों पर जांच के नए तरीकों पर काम करने की ओर आगे बढ़ गई है। कमलेश के अनुसार, साइबर अपराध की जांच में नए तरीके से पहलुओं को शामिल करने और दस्तावेजों की परख समेत अपराधियों तक जल्द पहुंच के लिए अब पुलिसकर्मियों का नियमित अंतराल पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
 
बातचीत का अंदाज और इंसान 'अरेस्ट'
कमलेश का कहना है कि सभी ठग हमारे आसपास के ही लोग होते हैं। दिखने में बेहद आम लेकिन उनके पास बातचीत का वह तरीका होता है जिससे बड़े से बड़ा धुरंधर भी इनकी बातों में आ जाता है। इसी के कारण यह लोगों को लाखों करोड़ों रुपए का चूना लगाते हैं।
 
डिजिटल अरेस्ट करने वाले ठाकुर के बारे में डीसीपी कमलेश ने एक और खुलासा किया। एक मामले का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि एक संभ्रांत परिवार की महिला को साइबर अपराधियों ने वीडियो कॉल के जरिए डिजिटल अरेस्ट किया। उनके परिवार पर मुकदमा चलाने की बात कही, लेकिन महिला के बैंक अकाउंट ना होने पर उन्होंने दूसरी चाल चली।
 
अपराधियों ने महिला से कहा कि उनकी कुछ तस्वीरें 'कथित पुलिसकर्मियों' के पास है जिनमें वह एक बड़े अपराधी के साथ दिख रही हैं। ऐसे में वह अपने शरीर का हर हिस्सा दिखलाकर इस बात की पुष्टि करें कि उनके शरीर पर कहीं चोट नहीं है। महिला ने डर के मारे वीडियो कॉल पर दिए गए निर्देश के अनुसार ही काम किया। 
 
कमलेश बताते हैं कि इस तरह के कॉल में वे स्क्रीन रिकॉर्ड कर लेते हैं और उसके बाद पूरे परिवार से पैसे ऐंठने की कोशिश करते हैं। असल में ये ठग पीड़ित को ना केवल आर्थिक नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव डालते हैं।
 
साइबर क्राइम में कई गंभीर धाराएं
डिजिटल अरेस्ट एक बेहद गंभीर और लगातार बढ़ती हुई साइबर धोखाधड़ी है। ये जुर्म करना जितना आसान है, भारतीय न्यायसंहिता में इसके लिए इतनी ही गंभीर धाराएं हैं। विमलेश निगम इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में अधिवक्ता हैं। वह बताते हैं कि जिनके साथ साइबर अपराध हुए हों, उन्हें डिजिटल साक्ष्यों के साथ जल्द से जल्द प्राथमिकी दर्ज करवाना चाहिए। विमलेश कहते हैं, "ऐसे अपराध भारतीय दंड संहिता की धारा 419 (छल), 420 (धोखाधड़ी), 468 (जालसाजी), और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66डी के अंतर्गत संज्ञेय और दंडनीय अपराध हैं। इन धाराओं को वर्तमान में भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 318 में शामिल कर दिया गया है।”
 
धारा 318 के अनुसार, धोखाधड़ी तब होती है जब कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी को धोखा देता है, जिससे उसे संपत्ति देने, संपत्ति रखने की सहमति देने, या शारीरिक, मानसिक, प्रतिष्ठा या आर्थिक नुकसान पहुंचाने का कारण बनता है।
 
बचाव के भी हैं उपाय
डिजिटल अरेस्ट जैसे साइबर अपराधों को रोकने के लिए केवल सरकार और जांच एजेंसियों की नहीं, बल्कि हर नागरिक की सजगता और कानूनी समझ भी जरूरी है। विमलेश निगम का मानना है कि सजगता के साथ कानून का सहारा और तकनीक की समझ के साथ ही इस तरह के अपराध से निपटा जा सकता है।
 
अधिवक्ता विमलेश निगम ऐसी ठगी से बचने के लिए ये तीन काम करने की सलाह देते हैं: 
 
1. कोई भी व्यक्ति यदि डिजिटल गिरफ्तारी या वारंट की धमकी दे तो सतर्क रहें।
2. किसी भी प्रकार की जानकारी, OTP या पैसे ट्रांसफर करने से पहले अधिकृत स्रोतों जैसे बैंक या नजदीकी पुलिस स्टेशन या किसी विशेषज्ञ से पुष्टि करें।
3. ठगी का पता चलने पर https://cybercrime.gov.in पर शिकायत दर्ज करें और कानूनी सलाह लेने में देर ना करें।