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Last Modified: शनिवार, 6 जुलाई 2019 (11:40 IST)

क्या बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं हैं जर्मनी के स्कूल?

क्या बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं हैं जर्मनी के स्कूल? | Germany School
स्कूलों में खींचतान, मारपीट और झगड़ा झंझट कोई नई बात नहीं है, लेकिन जर्मनी में एक सर्वे के अनुसार आधे से ज्यादा बच्चे मॉबिंग और हिंसा का शिकार हैं। तो क्या जर्मनी के स्कूल बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं हैं?
 
स्कूल के दिनों को लोग बड़े होने पर वर्षों याद रखते हैं। वे दिन मस्ती के अलावा शांति और सुकून के दिन होते हैं। पढ़ाई के अलावा और कोई चिंता नहीं, दिन भर मस्ती और हुड़दंग, नए नए कारनामे और दोस्तों के साथ मौज मस्ती। यही वे दिन होते हैं जिनमें दोस्तियां जड़ जमाती हैं और रिश्ते रूप लेते हैं। आपको भी अपने स्कूल के दिन याद होगे। लेकिन अब अगर बच्चों को देखें तो बहुत कुछ बदल गया है। और ऐसा नहीं है कि ऐसा सिर्फ हमें या आज के बच्चों के माता-पिताओं को लगता है। अभी स्कूलों में जा रहे बहुत से बच्चों को भी लगता है कि स्कूल उन्हें मस्ती नहीं दे रहा।
 
बैर्टेल्समन फाउंडेशन ने स्कूलों में एक सर्वे कराया है जिसके नतीजे परेशान करने वाले हैं। आधे से ज्यादा बच्चों का कहना है कि उन्हें दूसरे बच्चों के बहिष्कार, छेड़छाड़ या मारपीट का सामना करना पड़ा है। हाइस्कूलों के 39 प्रतिशत बच्चों ने कहा है कि पिछले महीनों में उन्हें इनमें से कम से कम दो का सामना करना पड़ा है। जर्मनी की शिक्षा मंत्री ने भी इन नतीजों को गंभीर बताया है। सर्वे के लेखकों ने खासकर इस बात पर चिंता जताई है कि प्राइमरी स्कूलों में करीब 55 प्रतिशत बच्चे बहिष्कार या छेड़छाड़ का शिकार होते हैं। लेकिन दूसरी तरफ आधे से ज्यादा बच्चे स्कूल में पूरी तरह सुरक्षित महसूस करते हैं, जो इस बात का सबूत हो सकता है कि प्राइमरी स्कूलों में मारपीट उतनी गंभीर नहीं होती।
 
खुदमुख्तारी की चाहत
स्कूलों की एक और समस्या ये है कि ज्यादातर बच्चों को लगता है कि टीचर उन्हें गंभीरता से नहीं लेते। 14 साल के सिर्फ एक तिहाई बच्चों को लगता है कि उनकी राय को गंभीरता से लिया जा रहा है। हायर सेकंडरी स्कूलों में तो सिर्फ 13 फीसदी बच्चों को लगता है कि स्कूली मामलों में उनकी हिस्सेदारी हो रही है। सर्वे के लेखकों का कहना है कि इस तरह की आलोचनाओं को किशोरावस्था का विद्रोह कहकर दरकिनार नहीं किया जाना चाहिए। इस तरह का रवैया किशोरों की आलोचनाओं को गंभीरता से लेने और अधिकारों के बंटवारे को रोकता रहा है।
 
सर्वे में बच्चों की एक और समस्या का भी जिक्र किया गया है। ये है गरीब परिवारों से आने वाले बच्चों की धन की चिंता। सर्वे का कहना है कि कमजोर वर्ग से आने वाले बच्चों में सुरक्षा की भावना में कमी होती है और अक्सर वे साथी बच्चों के हिंसक बर्ताव का सामना करते हैं। हालांकि ज्यादातर बच्चों के पास अपना खुद का मोबाइल फोन है, लेकिन फिर भी 52 प्रतिशत से ज्यादा अपने परिवारों की वित्तीय स्थिति से परेशान हैं। इन बच्चों से अक्सर छेड़छाड़ की जाती है, उन्हें गुटों से बाहर रखा जाता है और धक्कामुक्की की जाती है। वे घर पर, स्कूल में और पड़ोस में असुरक्षित महसूस करते हैं और अपने दोस्तों के साथ पैसे के अभाव में मनोरंजन के कोई कदम नहीं उठा सकते।
 
नहीं पता बच्चों को अपना अधिकार
हालांकि तीन चौथाई से ज्यादा बच्चे स्कूलों और रिहायशी इलाके में खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं लेकिन तीन फीसदी बच्चे ऐसे भी हैं जो कहीं भी सुरक्षित महसूस नहीं करते। बहुत से बच्चे ऐसे भी हैं जिन्हें अपने अधिकारों के बारे में पता नहीं। हायर सेकंडरी स्कूलों में ऐसे बच्चों की संख्या करीब 47 प्रतिशत है जबकि प्राइमरी स्कूलों के 63 प्रतिशत बच्चों को अपने अधिकारों का पता नहीं। सर्वे की लेखिका सबीने एंडरसन का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार संधि को पास हुए तीस साल हो गए हैं लेकिन अक्सर बच्चों को शारीरिक सुरक्षा और उनसे जुड़ें मामलों में उनकी भागीदारी के अपने अधिकारों का पता नहीं होता।
 
जर्मनी की परिवार कल्याण मंत्री गिफाई ने सर्वे के नतीजों की पुष्टि की है और कहा है कि स्कूलों में हिंसा और मॉबिंग से कोई अछूता नहीं रहता। उन्होंने चेतावनी दी है कि इसका नतीजा स्कूल जाने से मना करने से लेकर आत्महत्या तक हो सकता है। जर्मन शिक्षक संघ के अध्यक्ष ने सर्वे की रिपोर्ट पर कहा है कि ज्यादातर जर्मन स्कूल हिंसा के केंद्र नहीं हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि इस रिपोर्ट से स्कूलों की गलत तस्वीर नहीं बननी चाहिए।  यह सर्वे इस समय बच्चों और किशोरों पर चल रहे अंतरराष्ट्रीय सर्वे के बाबत किया गया है। सर्वे के लिए 2017-2018 के स्कूली सत्र में 8 साल से 14 साल के 3450 बच्चों से पूछताछ की गई। 
 
एमजे/आईबी (डीपीए,एएफपी)
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