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Last Updated : बुधवार, 7 दिसंबर 2016 (13:29 IST)

चीन पर ट्रंप की चाल से सब सकते में हैं

चीन पर ट्रंप की चाल से सब सकते में हैं - Donald Trump's politics with China
डॉनल्ड ट्रंप कब क्या करेंगे, यह कोई नहीं जानता। लेकिन दिखने लगा है कि इस वजह से बहुत उथल पुथल होने वाली है। ताइवान की राष्ट्रपति से उनकी बातचीत इसकी बानगी है।
ऐसा गलती से हुआ है या सोच-समझ कर, यह अभी स्पष्ट नहीं है। लेकिन अमेरिका के नए राष्ट्रपति बनने जा रहे डॉनल्ड ट्रंप ने चीन को लेकर बेहद सख्त नीति के संकेत दे दिए हैं। हालांकि इन संकेतों पर चीन और मौजूदा अमेरिका सरकार ने चेतावनी भी दे दी है।

सोमवार को व्हाइट हाउस के प्रवक्ता जोश अर्नेस्ट ने कहा कि ताइवान की संप्रभुता को लेकर जिस तरह की बातें कही जा रही हैं, वे चीन के साथ संबंधों को लेकर हुई प्रगति के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती हैं।
 
ताइवान के साथ अमेरिका ने 1979 में कूटनीतिक संबंध खत्म कर लिए थे। ऐसा चीन के साथ हुए एक समझौते के बाद हुआ था। चीन ताइवान को अपना हिस्सा बताता है। अब ट्रंप ने ताइवान की संप्रभुता के पक्ष में बयान देकर उस समझौते के उलट बात कर दी है। पिछले हफ्ते डॉनल्ड ट्रंप ने ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेन से बात की थी और उसके बाद ट्विटर पर चीन की सैन्य और व्यापार नीतियों को चुनौती भी दे डाली थी। अर्नेस्ट ने कहा, "समझ में नहीं आ रहा है कि यह किस तरह की रणनीतिक कोशिश है। समझाने का जिम्मा मैं उन्हीं पर छोड़ता हूं।"
 
वैसे, यह तो ट्रंप के सलाहकार भी नहीं बात पा रहे हैं कि होने वाले राष्ट्रपति चाहते क्या हैं। ताइवान की नेता के साथ बातचीत एक नई रणनीति की शुरुआत थी या फिर बस औपचारिक बधाई, इस बारे में अभी तक कोई बयान नहीं दिया गया है। व्हाइट हाउस में ट्रंप के चीफ ऑफ स्टाफ बनने वाले राइंस प्रिबस ने कहा कि जब ट्रंप ने साई से बात की तो "उन्हें अच्छी तरह पता था कि क्या हो रहा है।" लेकिन उपराष्ट्रपति बनने वाले माइक पेंस कहते हैं कि यह बातचीत "औपचारिक बधाई संदेश से ज्यादा कुछ नहीं थी।"
 
डॉनल्ड ट्रंप स्पष्ट कर चुके हैं कि वैश्विक परिदृश्य में उनकी क्रिया-प्रतिक्रिया का अनुमान लगाना आसान नहीं होगा। उन्हें लगता है कि अमेरिका की छवि और नीतियों को लेकर बराक ओबामा जिस तरह पेश आते रहे हैं, उसे बदलने की जरूरत है। लेकिन ट्रंप क्या करेंगे, इसे लेकर अनिश्चितता की स्थिति उनके सहयोगियों और विरोधियों दोनों को परेशान कर रही है। तब इस तरह के सवाल भी उठ रहे हैं कि विदेश नीति को लेकर सोची-समझी रणनीति पर चलना ठीक रहेगा या फिर भावनाओं में बहकर औचक फैसले लेना।
 
चीन की दबंग सरकार को दूसरे देशों के साथ संबंधों में प्रेडिक्टेबिलिटी ही पसंद है। खासकर अमेरिका को लेकर वह हमेशा चाहता है कि चीजें लीक से हटें नहीं। दुनिया की इन दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच लगबग 660 अरब डॉलर का सालाना व्यापार होता है। साउथ चाइना सी में द्वीप बनाने से लेकर अमेरिका में साइबर हमलों तक जैसे मुद्दों पर दोनों मुल्कों के बीच तीखे विवाद रहे हैं। इसके बावजूद ईरान परमाणु समझौते और ग्लोबल वॉर्मिंग जैसे मुद्दों पर दोनों ने साथ मिलकर काम भी किया है। लेकिन ट्रंप के आने के बाद इन संबंधों पर अनिश्चितता के बादल हैं।
 
वीके/एके (एपी)
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