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Written By DW
Last Updated : सोमवार, 3 जून 2024 (09:08 IST)

चांद के रहस्यमय हिस्से पर चीन को मिली एक और बड़ी कामयाबी

चांद के रहस्यमय हिस्से पर चीन को मिली एक और बड़ी कामयाबी - China got another big success on the mysterious part of the moon
-स्वाति मिश्रा
 
चांद पर इंसानों ने एक और इतिहास बनाया है। 2 जून को चीन के एक मानवरहित अंतरिक्ष यान ने चंद्रमा के सुदूर हिस्से (फार साइड) पर उतरने में कामयाबी पाई। चीन का यह मिशन पहली बार चंद्रमा के इस सुदूर हिस्से से चट्टान और मिट्टी के नमूने लाएगा। चीन के नेशनल स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन ने एक बयान जारी कर बताया कि उसका चांग'ई-6 यान, साउथ पोल-आइटकिन बेसिन पर उतरा है।
 
एजेंसी ने बताया, 'चांग'ई-6 लैंडर जिन पेलोड्स को लेकर गया है, वे योजना के मुताबिक वैज्ञानिक खोजबीन करेंगे।' चीन ने मई 2024 में चांग'ई-6 को मिशन पर रवाना किया था। यह अभियान चीन का अब तक का सबसे जटिल लूनर मिशन माना जाता है। चांग'ई-6 अपने साथ जो नूमने लाएगा, उससे वैज्ञानिकों को चंद्रमा की उत्पत्ति और सौर मंडल के बारे में बेशकीमती जानकारियां मिल सकती हैं। यह चीन के आने वाले चंद्रमा अभियानों के लिए अहम डेटा मुहैया करा सकता है।
 
अमेरिका समेत कई देश चंद्रमा पर मौजूद खनिज संसाधनों के बारे में ज्यादा जानकारी हासिल करना चाहते हैं, ताकि अगले एक दशक के भीतर चांद पर बस्तियां बसाई जा सकें और लंबे समय के लिए अंतरिक्षयात्रियों को वहां रखा जा सके। इस ताजा उपलब्धि से पहले भी चीन चंद्रमा के इस सुदूर हिस्से पर पहुंच चुका है। जनवरी 2019 में जब चांग'ई-4 मिशन 'फॉन करमान क्रैटर' में लैंड हुआ, तो चंद्रमा के इस इलाके में उतरने वाला वह पहला देश था। चंद्रमा के इस हिस्से में गहरे और अंधेरे गड्ढों की भरमार है। ऐसे में रोबोटिक लैंडिंग ज्यादा बड़ी चुनौती है।
 
इस साल अब तक चांद पर तीन लैंडिंग हो चुकी हैं। जापान का एसएलआईएम लैंडर जनवरी में उतरा था। फरवरी में अमेरिकी स्टार्टअप 'इंट्यूटिव मशीन्स' के एक लैंडर ने कामयाबी पाई। हालांकि, अब तक चांद पर इंसानों को उतारने की उपलब्धि बस अमेरिका ही हासिल कर पाया है।
 
जून के आखिर तक पृथ्वी पर पहुंचेंगे नमूने
 
योजना के मुताबिक चांग'ई-6 लैंडर स्कूप और ड्रिल की मदद से दो दिन के भीतर करीब दो किलो नमूने जमा करेगा। इसे लैंडर के ऊपर लगे एक रॉकेट बूस्टर में रखा जाएगा, जो कि वापस अंतरिक्ष में जाकर चंद्रमा की कक्षा में मौजूद एक अंतरिक्ष यान से जुड़ेगा और पृथ्वी पर लौट आएगा। इसकी लैंडिंग 25 जून के आसपास चीन के इनर मंगोलिया इलाके में होनी है।
 
अगर सबकुछ योजना के हिसाब से हुआ, तो इस अभियान से चीन को चंद्रमा के इतिहास और सौर मंडल के जन्म से जुड़ी नई जानकारियां मिलेंगी। साथ ही, ये नमूने डार्क और नियर साइड के बीच तुलना करने में भी मदद करेंगे। चीन ने अंतरिक्ष अभियानों में देर से कदम रखा और लंबे वक्त तक उसकी रफ्तार धीमी रही। लेकिन अब वह बेहद मत्वाकांक्षी अंतरिक्ष कार्यक्रम पर तेजी से आगे बढ़ रहा है। चीन 2030 तक चंद्रमा पर अंतरिक्ष यात्रियों को उतारने की तैयारी में है। 
 
क्यों खास है चांग'ई-6 के लैंड होने की जगह?
 
साउथ पोल-आइटकिन बेसिन, हमारे सौर मंडल के सबसे बड़े और पुराने 'इम्पैक्ट फीचर' में से एक है। इम्पैक्ट फीचर का मतलब है अतीत में किसी और चीज के तेजी से टकराने के कारण किसी ग्रह, चंद्रमा या एस्टेरॉइड की सतह पर बना कोई फीचर या आकृति। मसलन, गड्ढा या घाटी। नासा के मुताबिक साउथ पोल-आइटकिन बेसिन का निचला केंद्र गहरे नीले और बैंगनी रंग का दिखता है। इसके किनारे पहाड़ हैं, जो लाल और पीले रंग के हैं। आप नासा की वेबसाइट पर इसकी तस्वीर देख सकते हैं।
 
इस बेसिन का व्यास करीब 2,500 किलोमीटर है। यह इस मायने में भी दिलचस्प है कि चंद्रमा की अपनी परिधि बस 11,000 किलोमीटर है। यानी, साउथ पोल-आइटकिन बेसिन चंद्रमा के तकरीबन एक चौथाई हिस्से में फैला है। इसकी गहराई 8 किलोमीटर से भी ज्यादा है। स्ट्रैटिग्राफिक रिलेशनशिप्स बताते हैं कि यह चंद्रमा पर मौजूद सबसे पुराना इम्पैक्ट बेसिन है, लेकिन वैज्ञानिक इसकी उम्र की सटीक जानकारी हासिल करना चाहते हैं।
 
आसान भाषा में स्ट्रैटिग्राफिक रिलेशनशिप्स का मतलब मिट्टी में बनी किसी चीज की उम्र जानने का तरीका है। मिट्टी परतों में बनी होती है। एक परत के ऊपर दूसरी परत जमती जाती है। इस हिसाब से सबसे निचली परत सबसे पुरानी होगी। स्ट्रैटिग्राफिक रिलेशनशिप्स में पुरातत्वेत्ता मिट्टी की इन परतों को पुराने से नए के क्रम में बांटकर उम्र निर्धारित करते हैं। 
 
क्या है फार साइड ऑफ दी मून?
 
चंद्रमा का एक हिस्सा है जिसे हम पृथ्वी देख पाते हैं। चंद्रमा का दूसरा हिस्सा जो हमेशा हमारी नजर से ओझल रहता है। हमें जो हिस्सा दिखता है, उसे 'नियर साइड' और जो हिस्सा हमेशा ओझल रहता है उसे 'फार साइड' कहते हैं। इस हिस्से के बारे में मानवों की समझ बहुत सीमित है, इसपर ज्यादा शोध भी नहीं हुआ है। अव्वल तो चंद्रमा पर इतने अभियान भेजने, यहां तक कि मानवों को इसकी सतह पर उतारने के बावजूद हम अभी तक यह जवाब नहीं खोज सके हैं कि चांद बना कैसे। उसपर भी फार साइड ऑफ मून और बड़ा रहस्य है।
 
वैज्ञानिकों के मुताबिक यह फार साइड चंद्रमा के हमारे देखे-भाले हिस्से से बहुत ज्यादा अलग है। 1959 में तत्कालीन सोवियत संघ का एक अंतरिक्ष यान इस हिस्से से होते हुए उड़ा था और तब पहली बार इंसानों ने इसकी तस्वीर देखी। वैज्ञानिक अब तक इस बड़ी पहेली को भी नहीं सुलझा सके हैं कि आखिर क्यों चंद्रमा का एक ही हिस्सा पृथ्वी के सामने रहता है, क्यों नहीं घूमते हुए दूसरा हिस्सा हमारे आगे आ जाता। आखिर क्यों हम हमेशा से बस एक ही तरफ के चांद को देखते आए हैं?
 
कैसे बना चांद?
 
आम मान्यता है कि पृथ्वी के शुरुआती दौर में कोई खगोलीय पिंड इससे टकाराया। यह पिंड मंगल ग्रह के आकार का रहा होगा। इस टकराव के कारण छिटका पृथ्वी का एक हिस्सा उछलकर अंतरिक्ष में गया और चांद बना। वैज्ञानिक मानते हैं कि एक वक्त था, जब चंद्रमा पिघली हुई अवस्था में था। वह मानो मैग्मा का एक बड़ा-सा समंदर था, जो आगे चलकर जमा और ठोस हुआ। चंद्रमा पर ज्वालामुखी से निकले बहाव से बने गहरे हिस्से आज भी मौजूद हैं, वहीं सतह पर दिखने वाले हल्के रंग के हिस्से चंद्रमा की शुरुआती परत (क्रस्ट) का भाग माने जाते हैं।
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