• Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. डॉयचे वेले
  3. डॉयचे वेले समाचार
  4. backstory of kanyakumari and the-memorial where modi is meditating
Written By DW
Last Modified: शनिवार, 1 जून 2024 (08:20 IST)

शांत प्रतिस्पर्धा में नजर आते कन्याकुमारी के 2 स्मारक

vivekanand rock memorial
चारु कार्तिकेय
कन्याकुमारी के विवेकानंद रॉक मेमोरियल को रामकृष्ण मिशन ने बनवाया था, लेकिन इसे बनवाने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने बहुत संघर्ष किया था। बाद में इस स्मारक के ठीक सामने एक और स्मारक बनवाया गया।
 
कन्याकुमारी के तट से करीब 500 मीटर दूर समुद्र में स्थित विवेकानंद रॉक मेमोरियल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ध्यान लगाने की तस्वीरें जारी की गई हैं। खुद मोदी ने अपनी इस यात्रा के उद्देश्य पर कोई बयान जारी नहीं किया है, लेकिन उन्होंने 2019 में लोकसभा चुनावों के नतीजे आने के पहले भी इसी तरह की एक यात्रा की थी।
 
वह उत्तराखंड के केदारनाथ गए थे और वहां एक दिन बिताया था। वहां एक गुफा में ध्यान की मुद्रा में बैठे हुए उनकी तस्वीरें भी जारी की गई थीं। कुछ इसी तरह की तस्वीरें और वीडियो कन्याकुमारी से भी जारी किए गए हैं।
 
modi dhyan
आरएसएस की कोशिशों से बना स्मारक
अटकलें लग रही हैं कि इस यात्रा के पीछे मोदी के कई उद्देश्य हो सकते हैं। विवेकानंद रॉक मेमोरियल को रामकृष्ण मिशन ने बनवाया था जिसका मुख्यालय पश्चिम बंगाल में है। चुनावों के आखिरी चरण में जिन सीटों पर मतदान होना है उनमें पश्चिम बंगाल की नौ सीटें भी हैं।
 
इसके अलावा दक्षिण भारत में बीजेपी के विस्तार के लिए मोदी खुद कई बार तमिलनाडु गए हैं। कन्याकुमारी की यात्रा को इन्हीं यात्राओं के साथ जोड़ कर भी देखा जा सकता है। वैसे भी, बीजेपी और आरएसएस के लिए कन्याकुमारी और विवेकानंद रॉक मेमोरियल एक महत्वपूर्ण स्थान है।
 
यह स्मारक कन्याकुमारी के तट से करीब 500 मीटर दूर समुद्र में एक चट्टान पर स्थित है। यह चट्टान बंगाल की खाड़ी, हिंद महासागर और अरब सागर के पानी से घिरी हुई है। माना जाता है कि 1892 में स्वामी विवेकानंद तैर कर तट से इस चट्टान पर पहुंचे और यहां तीन दिनों तक ध्यान लगाया, जिसके बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई।
 
1960 के दशक में इसी स्थान पर स्वामी विवेकानंद की याद में एक स्मारक बनाने का अभियान शुरू हुआ। इसमें आरएसएस ने अग्रणी भूमिका निभाई। विवेकानंद केंद्र की वेबसाइट के मुताबिक आरएसएस नेता एकनाथ रानाडे की इस अभियान में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही।
 
स्मारकों की प्रतिस्पर्धा
करीब 10 सालों के संघर्ष के बाद 1970 में स्मारक बन कर तैयार हो गया और इसका उद्घाटन कर दिया गया। आज यह स्मारक स्वामी विवेकानंद के प्रशंसकों के साथ साथ पर्यटकों के बीच भी लोकप्रिय है। तट से फेरी में सवार हो कर आसानी से यहां पहुंचा जा सकता है।
 
लेकिन इस स्मारक से मुश्किल से 100 मीटर दूर एक और स्मारक है। यह है संत कवि तिरुवल्लुवर की 133 फुट ऊंची और करीब 7,000 टन वजनी विशालकाय प्रतिमा। इसे बनाने का आदेश तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने 1975 में दिया था।
 
करुणानिधि तिरुवल्लुवर को द्रविड़ आंदोलन की प्रेरणा के रूप में मानते थे। इसलिए कुछ लोग यह भी मानते हैं कि उन्होंने इस स्मारक की कल्पना आरएसएस द्वारा बनवाए विवेकानंद स्मारक के सामने द्रविड़ मूल्यों के एक प्रतीक को खड़ा करने की मंशा से की थी।
 
लेकिन जल्द ही राज्य की राजनीति में अस्थिरता के कारण करुणानिधि सत्ता से बाहर हो गए और इस परियोजना पर काम रुक गया। फिर करुणानिधि जब 1996 में अपने चौथे कार्यकाल में सत्ता में वापस आए तब इस स्मारक पर काम फिर से शुरू हुआ और एक जनवरी, 2000 को उन्होंने इसका उद्घाटन किया।
 
आज दूर से इन दोनों भव्य इमारतों को देखकर ऐसा लगता है जैसे इनकी पृष्ठभूमि में दो विचारधाराओं का एक शांत संघर्ष चल रहा हो।
ये भी पढ़ें
चैटजीपीटी के इस्तेमाल से 'बॉयफ़्रेंड' कैसे बना रही हैं ये चीनी महिलाएं?