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Written By DW
Last Modified: गुरुवार, 22 अक्टूबर 2020 (21:42 IST)

ताइवान को अमेरिकी हथियारों की मंजूरी पर भड़का चीन

ताइवान को अमेरिकी हथियारों की मंजूरी पर भड़का चीन - China furious over Taiwan's approval of US arms
अमेरिका ने ताइवान को 1।8 अरब अमेरिकी डॉलर की कीमत के हथियारों की बिक्री को मंजूरी दे दी है। चीन इस बात पर भड़क उठा है और चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि इस बात का चीन-अमेरिकी रिश्तों पर गहरा असर होगा।

चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने गुरुवार को रोजाना की ब्रीफिंग में इस मुद्दे पर बयान दिया। विदेश मंत्रालय का कहना है कि आने वाले समय में चीन का इसका समुचित जवाब देगा। इस बीच ताइवान ने कहा है कि वह चीन के साथ हथियारों की दौड़ में शामिल नहीं होना चाहता लेकिन उसे अपने लिए एक भरोसेमंद युद्धक क्षमता की जरूरत है। अमेरिका की तरफ से हथियारों की बिक्री को मंजूरी मिलने के बाद ताइवान के रक्षा मंत्री येन डे फा ने यह बात कही।

अमेरिका ने ताइवान को सेंसर, मिसाइल और तोपें बेचने के मंजूरी दी है। इसके साथ ही जेनरल एटोमिक्स के बनाए ड्रोन और बोइंग के बनाए लैंड बेस्ड हारपून एंटीशिप मिसाइल के लिए जल्दी ही अमेरिकी संसद से अधिसूचना आने के बात चल रही है। ताइवान अपने तटों की सुरक्षा को मजबूत करना चाहता है। हारपून एंटीशिप मिसाइल इसमें बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।

ताइवान के राष्ट्रपति त्साई इंग वेन ने चीन के बढ़ते खतरे को देखते हुए रक्षा आधुनिकीकरण को अपनी प्राथमिकता में शामिल किया है। इसमें विषम युद्धक क्षमता को बढ़ाने की बात है। इसका मतलब चीन के किसी भी हमले को मुश्किल और खर्चीला बनाना है।

ताइवानी रक्षामंत्री येन ने कहा है कि अमेरिकी हथियारों से ताइवान अपनी सुरक्षा क्षमता को मजबूत कर सकेगा और साथ ही नई परिस्थितियों में दुश्मनों के खतरे का सामना कर सकेगा।  येन का कहना है कि हथियारों के इस सौदे से, यह जाहिर है कि अमेरिका इंडो पैसिफिक और ताइवान की खाड़ी की सुरक्षा को कितनी अहमियत देता है। हम अमेरिका के साथ अपनी रक्षा साझेदारी को मजबूत बनाना जारी रखेंगे।

चीन की प्रतिक्रिया पहले से सोची जा रही लाइन पर ही हैं। चीन हमेशा से ताइवान के साथ दूसरे देशों के रिश्तों पर नाराजगी जताता रहा है। हाल ही में भारत के अखबारों में ताइवान की स्वतंत्रता दिवस पर छपे विज्ञापनों की भी उसने आलोचना की थी। लोकतांत्रिक शासन वाले ताइवान द्वीप पर चीन अपनी संप्रभुता जताता है और इसके लिए कूटनीति, अपने प्रभाव और बल का भी इस्तेमाल करता है।

हाल ही में चीन के लड़ाकू विमानों ने ताइवान खाड़ी की मध्यरेखा से उड़ान भरी। संवेदनशील माने जाने वाले इस इलाके को अनाधिकारिक रूप से बफर जोन माना जाता है। चीन हमेशा से वन चाइना की बात कहता है और इसके तहत ताइवान को अपने एक अलग हुए प्रांत का दर्जा देता है और मानता है कि एक दिन ताइवान चीन में मिल जाएगा।

चीन और ताइवान का यह द्वंद्व 1949 से चला आ रहा है जब पराजित राष्ट्रवादी ताइवान में सिमट गए और दूसरी तरफ कम्युनिस्टों ने चीन की मुख्य भूमि का शासन अपने हाथ में ले लिया। चीन ताइवान पर ताकत का  प्रयोग कर अपने साथ मिलाने की धमकी देता है हालांकि उसने एक नरम कूटनीतिक रिश्ता भी चला रखा है। रिपब्लिक ऑफ चाइना और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना दोनों पूरे चीन का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं।

चीन और अमेरिका के रिश्तों में वन चाइना पॉलिसी एक अहम पहलू है। अमेरिका वन चाइना पॉलिसी को मानते हुए भी ताइवान के साथ एक मजबूत अनाधिकारिक रिश्ते की बात कहता है। इस रिश्ते के तहत ताइवान को खुद की रक्षा के लिए हथियारों की बिक्री की भी मंजूरी दी गई है।

उधर ताइवान खुद को एक स्वतंत्र देश मानता है। रिपब्लिक ऑफ चाइना कहे जाने वाले ताइवान के साथ कूटनीतिक रिश्ता रखने वाले देशों पर चीन रिश्ते तोड़ने के लिए दबाव डालता रहा है। यही वजह है कि कूटनीतिक रूप से ताइवान दुनिया में अलग थलग पड़ गया है।

मौजूदा दौर में चीन और अमेरिका कारोबार को लेकर एक दूसरे से टकराव के रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं। ताइवान को लेकर अमेरिका की दिलचस्पी भी बहुत से विश्लेषकों की नजर में इसी टकराव और चीन पर नकेल डालने की अमेरिकी कोशिशों का नतीजा है।

अमेरिका ने चीन की सरकारी मीडिया कंपनियों पर निगरानी भी बढ़ा दी है। विदेश मंत्रालय ने बुधवार को छह चीनी मीडिया कंपनियों को विदेशी मिशन का दर्जा दे दिया। उन्हें अब चीन की कम्युनिस्ट सरकार की संस्था समझा जाएगा। इससे पहले मार्च में अमेरिकी सरकार ने चीनी मीडिया कंपनियों को विदेशी मिशन के रूप में रजिस्टर करने के लिए कहा था और अमेरिका में काम करने वाले चीनी पत्रकारों की संख्या 160 से घटाकर 100 कर दी थी।
- एनआर/एमजे (एएफपी, रॉयटर्स)
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