विवेक कुमार
ट्रांसअटलांटिक गठबंधन यानी अमेरिका और यूरोप के संबंधों में तनाव पिछले कुछ सालों से लगातार बढ़ रहा है। हालांकि डॉनल्ड ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल के पहले ही महीने में साफ कर दिया है कि यूरोप और अमेरिका के संबंध अब वैसे नहीं चल सकते, जैसे पिछले 50 साल से चल रहे थे। ट्रंप की आक्रामक भाषा और विवादास्पद नीतियां यूरोपीय नीति निर्माताओं और विशेषज्ञों को यह याद दिला रही हैं कि अमेरिका के समर्थन के बिना उनका भविष्य कितना असुरक्षित हो सकता है।
यूरोपीय संघ के इंस्टिट्यूट फॉर सिक्योरिटी स्टडीज (EUISS) की एक हालिया टिप्पणी में विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर अमेरिका यूरोप से अपनी जिम्मेदारी छोड़ देता है, तो यह "रूस के परमाणु हमले जितना विनाशकारी" हो सकता है। 400 विशेषज्ञों के साथ बातचीत के बाद इस इंस्टिट्यूट ने यूरोप के सामने 2025 में सबसे बड़े खतरों की पहचान की। सबसे बड़े खतरों में अमेरिका से अलगाव भी शामिल था। ट्रंप ने हाल के दिनों में जिस तरह का व्यवहार दिखाया है, उससे साफ है कि यह अब एक काल्पनिक स्थिति नहीं, बल्कि एक वास्तविक संभावना बनती जा रही है।
तनाव का नया दौर
ट्रंप के पिछले कार्यकाल में भी अमेरिका और यूरोपीय सहयोगियों के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया था। 2018 में, ट्रंप ने यूरोप और अमेरिका के बीच सैन्य सहयोग संगठन नाटो से बाहर निकलने की धमकी दी थी। उन्होंने चेतावनी दी थी कि अगर यूरोपीय देश अपने रक्षा खर्च को 2 फीसदी तक नहीं बढ़ाते, तो वह नाटो से बाहर हो सकते हैं।
अब 2025 में ट्रंप के फिर से राष्ट्रपति बनने के साथ, यह तनाव और भी गहरा गया है। ट्रंप ने अपनी चुनावी रैलियों में यूरोपीय सहयोगियों से साफ तौर पर कहा कि अगर वे अपने रक्षा खर्च में वृद्धि नहीं करेंगे तो अमेरिका उन्हें सुरक्षा नहीं देगा। उनके प्रशासन ने यूरोपीय संघ के खिलाफ कई मोर्चों पर संघर्ष किया है, जिसमें व्यापार, प्रौद्योगिकी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता शामिल है। अमेरिका ने यूरोपीय सामानों पर शुल्क लगाए हैं, जिससे कारोबारी संघर्ष बढ़ा है। ट्रंप ने तो यहां तक कहा है कि अमेरिका सहयोगी देशों की जमीनों को अपने कब्जे में भी ले सकता है।
ट्रंप ने ग्रीनलैंड में स्थित प्राकृतिक संसाधनों और उसकी सामरिक महत्ता का हवाला देते हुए इस आर्कटिक द्वीप को अमेरिका में शामिल करने की इच्छा जताई है। उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि हम इसे हासिल करेंगे।" ट्रंप ने यह भी कहा कि ग्रीनलैंड अमेरिका के लिए "अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा" के लिहाज से जरूरी है और उनका इरादा है कि इस पर नियंत्रण हासिल किया जाएगा, चाहे इसके लिए सैन्य कदम उठाना पड़े। यूरोप ने इसका विरोध किया और एक नॉर्डिक समिट आयोजित की। समिट के बाद डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडेरिक्सन ने कहा, "हम सभी इस स्थिति की गंभीरता को समझते हैं।"
अमेरिका के बिना एक नया यूरोप
बात सिर्फ अमेरिका की आक्रामकता की नहीं है। रूस के यूक्रेन पर हमले और उससे भी पहले क्रीमिया को कब्जा लेने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि रूस यूरोप की सीमाओं में बदलाव करने में झिझकेगा नहीं। ऐसे में अगर अमेरिका यूरोप से अपना हाथ खींच लेता है, तो इसके परिणाम खतरनाक हो सकते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिकी सेना का अहम योगदान है। यूरोप पर अमेरिकी सुरक्षा गारंटी की स्थिति में बदलाव से ना केवल रूस की आक्रामकता बढ़ेगी, बल्कि यूरोपीय गठबंधन भी कमजोर पड़ सकते हैं।
ट्रंप के सलाहकार सुमंत्र मैत्रा ने तो एक प्रस्ताव दिया जिसमें नाटो को निष्क्रिय' रूप में रखने की बात कही। उन्होंने एक मॉडल का प्रस्ताव दिया, जिसमें "यूरोप के प्रति अमेरिका की प्रतिबद्धता को कम से कम कर दिया जाएगा और गठबंधन को स्थगति रखा जाएगा और केवल संकट के समय सक्रिय किया जाएगा।"
अभी यह पूरी तरह से तय नहीं है कि अमेरिका यूरोप को छोड़ देगा, इंस्टिट्यूट फॉर सिक्योरिटी स्टडीज की रिपोर्ट कहती है कि ट्रंप की नीति दो तरह से सामने आ सकती है। पहले परिदृश्य में, अमेरिका यूरोपीय देशों से अपनी रक्षा खर्च बढ़ाने और अन्य क्षेत्रों में अमेरिकी हितों के लिए समझौते करने की शर्त पर यूरोप से अपनी जिम्मेदारी कम करने की धमकी दे सकता है। इस मामले में, यूरोप के देशों को अलग-अलग द्विपक्षीय रक्षा समझौतों पर ध्यान देना होगा। जैसे जर्मनी ने रक्षा पर 100 अरब यूरो निवेश का फैसला लिया है।
दूसरे परिदृश्य में, अमेरिका अपने सामरिक हितों को प्राथमिकता देते हुए यूरोप से पूरी तरह से पीछे हट सकता है और अपने सैनिकों को अन्य क्षेत्रों में भेज सकता है, खासकर एशिया में, जहां चीन से तनाव बढ़ रहा है। अगर ट्रंप इस नीति पर आगे बढ़ते हैं, तो यूरोपीय देशों को अपनी सुरक्षा को लेकर गंभीर कदम उठाने होंगे।
विशेषज्ञ कहते हैं कि इन दोनों ही स्थितियों में यूरोप को अपनी सुरक्षा नीति को नया रूप देना होगा। ईयूआईएसएस में सुरक्षा मामलों पर शोध करने वाले डॉ। जिसेपी स्पाटाफोरा कहते हैं कि अगर अमेरिका यूरोप से अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह हटा लेता है, तो यूरोप के सामने एक बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा।
यूरोप का रास्ता: मजबूत और आत्मनिर्भर रक्षा निर्माण
मौजूदा हालात में यूरोप के लिए यह अब और भी जरूरी हो गया है कि वह अपनी रक्षा नीति में सुधार करे और खुद को अमेरिकी सहायता के बिना सुरक्षित रखने के लिए तैयार हो। कई नेता बार-बार कह चुके हैं कि यूरोपीय संघ को अब केवल अमेरिका पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।
ग्रीस के प्रधानमंत्री कीरियासकोस मित्सोताकिस इसी बात को इस तरह कहते हैं कि यूरोप को अब जगना होगा और अपना सुरक्षा ढांचा तैयार करना होगा। एक बिजनेस कांफ्रेंस में उन्होंने कहा, "हाल में जो कुछ हुआ है और अमेरिका से भिन्न नजरिए से चीजों को देखना हमें संदेश दे रहा है कि ना सिर्फ सच्चाई का सामना करना होगा बल्कि उन फैसलों पर तेजी से आगे बढ़ना होगा, जिन पर हम लंबे समय से बात कर रहे हैं।”
यूरोप के सामने सबसे बड़ा सवाल सुरक्षा का है। वह अब तक अमेरिका पर ही निर्भर रहा है। नए परिदृश्य में यूरोप को अपनी सामूहिक रक्षा प्रणाली को मजबूत करना होगा। यही वजह है कि जर्मनी जैसे यूरोपीय संघ के बड़े देश उन सामरिक आवश्यकताओं पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जिनके लिए अमेरिका पर निर्भरता रही है, जैसे कि वायु सेना, एयर-टू-एयर रिफ्यूलिंग और इंटेलिजेंस। अगर अमेरिका इन सुविधाओं को हटाता है, तो यूरोप को इसकी कमी महसूस होगी।
इसके अलावा, यूक्रेन को लगातार समर्थन देने और रूस के आक्रमण को रोकने के लिए यूरोप को नए हथियारों की जरूरत पड़ेगी। जैसा कि यूक्रेन युद्ध ने दिखाया है, गंभीर युद्ध के लिए विशाल संख्या में आर्टिलरी और ड्रोन जैसे उपकरणों की आवश्यकता होती है। यूरोपीय देशों को इन उपकरणओं का उत्पादन बढ़ाना होगा। इसके अलावा उन्हें मजबूत और लड़ाई के लिए तैयार सेनाओं की आवश्यकता होगी। हथियार बनाने वाली जर्मन कंपनी राइनमेटाल के सीईओ आर्मिन पापेरगेर ने हाल ही में फाइनेंशियल टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में कहा, "यूरोप को यूक्रेन वार्ता से अलग इसलिए कर दिया गया है क्योंकि उसने रक्षा पर समुचित निवेश नहीं किया।"
यूरोपीय संघ को रक्षा बजट के लिए नए तरीके तलाशने होंगे, जैसे कि सामूहिक रूप से उधार लेना या रक्षा परियोजनाओं के लिए विशेष प्रयोजन का इस्तेमाल करना। अगर यूरोपीय देश अपनी रक्षा जिम्मेदारियों को निभाने में गंभीर होंगे, तो यह उन्हें ट्रंप के दबाव के सामने मजबूत बना सकता है।