• Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. डॉयचे वेले
  3. डॉयचे वेले समाचार
  4. Attitudes towards the death penalty may change
Written By DW
Last Updated : गुरुवार, 10 फ़रवरी 2022 (16:39 IST)

इस फैसले से बदल सकता है मौत की सजा के प्रति नजरिया

इस फैसले से बदल सकता है मौत की सजा के प्रति नजरिया - Attitudes towards the death penalty may change
रिपोर्ट : चारु कार्तिकेय
 
सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा के संबंध में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा है कि जुर्म कितना भी खौफनाक क्यों न हो, दोषी की मौत की सजा को कम किए जाने के कारणों पर जजों को विचार करना चाहिए।
 
अदालत का यह फैसला 7 साल की एक बच्ची के बलात्कार और हत्या के मामले में आया। पप्पू नाम के इस व्यक्ति को 2015 में उत्तरप्रदेश के कुशीनगर में 7 साल की एक बच्ची का बलात्कार और हत्या करने का दोषी पाया गया था। उस वक्त पप्पू की उम्र 33-34 साल थी। पहले निचली अदालत ने उसे अपराधी माना और सजा-ए-मौत सुनाई। फिर अक्टूबर 2017 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया।
 
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दोनों अदालतों से अलग रुख अपनाया है। न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली 3 जजों की पीठ ने पप्पू का बलात्कार और हत्या के लिए दोषी साबित होना तो सही ठहराया लेकिन यह भी कहा उसकी मौत की सजा को कम जिए जाने के कई कारण है जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
 
मानव जीवन का संरक्षण
 
98 पन्नों के इस फैसले को लिखने वाले न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी ने कहा कि मौत की सजा अपराधियों को डराने का और कई मामलों में कड़ी कार्रवाई की समाज की मांग की प्रतिक्रिया के रूप में जरूर काम करती है, लेकिन अब स्थिति बदल गई है। उन्होंने कहा कि सजा देने के सिद्धांतों का अब और विस्तार हो गया है और अब मानव जीवन के संरक्षण के सिद्धांत को भी अहमियत दी जाती है।
 
न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने कहा कि मानव जीवन का संरक्षण भी समाज का एक दायित्व है और अदालत के सामने भी आज मौत की सजा के विकल्प मौजूद हैं। जघन्य अपराध के दोषियों को मौत की सजा की जगह बिना किसी छूट के आजीवन कारावास की सजा भी दी जा सकती है।
 
उन्होंने बताया कि इस मामले में भी दोषी की मौत की सजा को कम करने के लिए प्रेरित करने वाले कई कारण हैं जो अदालतें देख नहीं सकीं। सुप्रीम कोर्ट ने गिनाया कि पप्पू ने इसके पहले कोई अपराध नहीं किया, वो अभी भी एक कठोर हो चुका अपराधी नहीं बना है, जेल में उसका व्यवहार बेदाग रहा है, उसकी एक पत्नी है, बच्चे हैं और बूढ़े पिता भी हैं।
 
भारत में मौत की सजा
 
अदालत ने कहा कि इन सभी कारणों की वजह से दोषी के सुधार की उम्मीद बरकरार है और इसलिए उसकी मौत की सजा को माफ कर दिया जाना चाहिए। अदालत ने पप्पू की मौत की सजा को रद्द करते हुए उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई और कहा कि यह सजा 30 साल कारावास की होगी। इसके अलावा इन 30 सालों में भी उसे समय से पहले न तो जेल से रिहा किया जाएगा न कोई छूट दी जाएगी।
 
इस फैसले को मौत की सजा के संबंध में एक बेहद महत्वपूर्ण फैसला माना जा रहा है। दुनिया के कम से कम 100 देशों ने इसे अपनी न्यायिक व्यवस्था से पूरी तरह से हटा दिया है। करीब 50 देशों में अभी भी यह सजा मौजूद है। इनमें भारत के अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश, चीन, अमेरिका, सऊदी अरब और जापान जैसे देश शामिल हैं।
 
एक रिपोर्ट के मुताबिक इस समय भारत में 350 से ज्यादा ऐसे अपराधी हैं जिन्हें मौत की सजा सुना दी गई है। मार्च 2020 में सामूहिक बलात्कार और हत्या के दोषी पाए गए 4 लोगों को दिल्ली की तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई थी।
ये भी पढ़ें
कर्नाटक हिजाब विवाद: क्या कहता है संविधान और क्या हैं इससे जुड़े अहम सवाल