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Last Modified: गुरुवार, 4 जुलाई 2019 (11:41 IST)

शौक पूरा करने के लिए जानवरों के साथ अमानवीयता

शौक पूरा करने के लिए जानवरों के साथ अमानवीयता | Hobby
पशुओं के अधिकारों के लिए काम करने वाले एक्टिविस्टों ने फैशन घरानों और फैशन करने वालों को फर का इस्तेमाल नहीं करने के लिए प्रेरित किया है लेकिन सांप, मगरमच्छ और छिपकली के चमड़े से बने वस्तुओं की अभी भी काफी डिमांड है।
 
पिछले कुछ समय में कई बार इन वस्तुओं को लंदन, पेरिस और न्यूयॉर्क के एयरपोर्ट पर देखा गया। लक्जरी ब्रांड्स के लिए ये सामान काफी ज्यादा मुनाफा कमाने वाले बने हुए हैं। गाय के चमड़े से बने एक सामान की कीमत की तुलना में सांप के चमड़े से बने सामान की कीमत तीन गुणा तक अधिक होती है। फिर भी शनेल और विक्टोरिया बेकहम ने अपने पसंदीदा कलेक्शन से इन सामानों को बाहर कर दिया है। सेल्फ्रिड्स जैसे खुदरा विक्रेताओं ने कहा है कि वे अब विदेशी खाल से बने उत्पादों को स्टॉक नहीं करेंगे।
 
पशुओं के संरक्षण की बात करने वाले समूह जैसे कि पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) और प्रोटेक्शन ग्रुप प्रो वाइल्डलाइफ सहित कई अन्य समूह चाहते हैं कि अधिक से अधिक फैशन हाउस ऐसा ही कदम उठाएं। प्रो वाइल्डलाइफ के बॉयोलॉजिस्ट सैंड्रा अल्थर ने डीडब्ल्यू को बताया, "हमें लक्जरी फैशन के लिए जंगलों में रहने वाले जानवरों से बने सामान की जरूरत नहीं है। इससे जंगल की जैविक संतुलन को नुकसान पहुंचता है और इसके अलावा जानवरों को काफी दर्द होता है।"
 
इसके विपरीत जानवरों की कम होती स्थिति की रैंकिंग तैयार करने वाले अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) जैसे संगठनों का कहना है कि लक्जरी ब्रांडों को अपने संग्रह से विदेशी खाल के प्रोडक्ट इतनी जल्दी नहीं हटाना चाहिए। उनका तर्क है कि यदि सांप, मगरमच्छ और अन्य विदेशी जानवरों का उपयोग टिकाऊ तरीके से किुया जाए तो वास्तव में अन्य प्रजातियों की रक्षा की जा सकती है। विदेशी जानवरों के चमड़े की काफी ज्यादा मांग है। CITES व्यापार डेटाबेस से प्रो वाइल्डलाइफ द्वारा कराए गए सर्वे के अनुसार 2008 से 2017 तक यूरोपियन यूनियन ने चमड़े या उससे बने सामान जैसे बेल्ट या बैग के 1 करोड़ नग का आयात किया। ये छिपकली, सांप और घड़ियाल के चमड़ों से बने थे।
 
खौफनाक मगरमच्छ और सांप
सीआईटीईएस विलुप्त होने की कगार पर पहुंची प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक व्यापार को प्रतिबंधित करता है। हालांकि, जिन प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा नहीं है, उनके लिए एक परमिट के साथ गहन निगरानी में व्यापार की अनुमति देता है। आईयूसीएन के डैनियल नाटूश के अनुसार व्यापार को सुनिश्चित करने का सबसे अच्छा तरीका बेहतर प्रबंधन और निगरानी करना तथा समुदायों के साथ काम करना है ताकि जानवरों की रक्षा करने में उनकी हिस्सेदारी हो, साथ ही लक्जरी फैशन ब्रांड़ जिम्मेदारी पूर्वक चमड़़े मंगवा सकें।
 
अक्सर गरीब क्षेत्रों में खाल के लिए सरीसृपों का शिकार किया जाता है जहां आय के बहुत सीमित विकल्प हैं। नाटूश का कहना है कि इन जानवरों के सीमित शिकार की अनुमति देने का मतलब है कि वे उनके लिए कीमती हो जाते हैं, जिनकी रुचि इन्हें जिंदा रखने में काफी कम होती है। बॉयोलॉजिस्ट कहते हैं, "मगरमच्छों को उन जगहों पर रखना मुश्किल है, जहां आम लोगों के बच्चे तैरना चाहते हैं या सांप मारते हैं। और ऐसे में कुछ लोग गरीबों को इनके बदले कुछ पैसे या अन्य सहायता प्रदान करते हैं।"
 
ऑस्ट्रेलिया में खारे पानी के मगरमच्छों के संरक्षण के इस मॉडल का प्रस्ताव देने वाले इसे एक बड़ी सफलता मानते हैं। 1970 के दशक से उनकी संख्या में सुधार हुआ है। भूस्वामी अंडे जमा करते हैं और फिर उन्हें बढने के लिए फार्म में भेजा जाता है। ऑस्ट्रेलिया में एक औसत बिलबोंग में लगभग 20 मगरमच्छ हो सकते हैं और प्रत्येक घोंसले में 50 या 60 अंडे हो सकते हैं। 2019 में, ऑस्ट्रेलिया में प्रति अंडे की कीमत 26।50 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर थी। नाटूश कहते हैं कि अगर लोग मगरमच्छ और सांपों से पैसे कमा सकते हैं, तो व्यापक जैविक तंत्र की रक्षा भी की जा सकेगी, क्योंकि इसके लिए कृषि की तुलना में कम जगह की जरूरत होती है।
 
जानवरों की देखरेख
प्रो. वाइल्डलाइफ टिकाऊ उपयोग के तर्क को नहीं मानते हैं। उनका मानना है कि ज्यादा पैसा शिकार और पालन करने वाले लोगों द्वारा नहीं, बल्कि लक्जरी ब्रांडों द्वारा कमाया जाता है। अलथर कहते हैं, "सैद्धांतिक रूप से मैं इस बात से सहमत हूं कि कई स्थानीय लोगों के लिए पैसा कमाने और जंगली जानवरों के संरक्षण को आकर्षक बनाने के लिए टिकाऊ पालन एक अच्छा विकल्प हो सकता है। लेकिन उन्हें ऐसा कोई उदाहरण इस क्षेत्र में काम करने वालों के बीच नहीं मिला।"
 
सटीक निगरानी भी एक चुनौती है। उदाहरण के लिए CITES परमिट में यह बताना होता है कि ये जानवर पालने वाली जगह से आए हैं या फिर जंगल से पकडे गए हैं। हालांकि यह सत्यापित करना आसान नहीं है। कारोबार में खाल की संख्या और बड़े जानवरों की पसंद के कारण, अल्थर का मानना है कि जंगल में पकड़े गए जानवरों की संख्या वास्तव में दर्ज की गई तुलना में अधिक है और जानवरों के लिए आधिकारिक कोटा से अधिक है जिसे सालाना पकड़ा जा सकता है।
 
कल्याण के मुद्दे
एक तरफ संरक्षण का तर्क है तो दूसरी तरफ उनके रखरखाव को लेकर सवाल हैं। पशु अधिकार कार्यकर्ताओं का मानना है कि विदेशी खाल के व्यापार में कई गंभीर मुद्दे हैं। वर्ष 2016 में पेटा ने वियतनाम का एक वीडियो शेयर किया था, जहां काफी संख्या में मगरमच्छ थे। यहां जानवरों को बुरी परिस्थितियों में रखा गया था। वे कहते हैं कि यहां से यूरोपीय लक्जरी ब्रांडों के लिए आपूर्ति होती है। संगठन का यह भी कहना है कि सांपों को पेड़ों से चिपका दिया जाता है और जिंदा ही उनकी चमड़ी को निकाल दिया जाता है। माना जाता है कि ऐसा करने से त्वचा कोमल रहती है। कुछ सांपों को मरने में घंटों लग जाते हैं।
 
पेटा जर्मनी की जोहाना फूओ का कहना है कि लोग विदेशी त्वचा के व्यापार को लेकर अंधेरे में हैं। वे कहती हैं, लोग वैसे जानवरों की पीड़ा के बारे में बहुत जानते हैं, जिनके फर होते हैं लेकिन वे विदेशी खाल के बारे में बहुत नहीं जानते हैं। लोगों को यह दिखाना मुश्किल है कि इन जानवरों के साथ अच्छे से व्यवहार करना चाहिए क्योंकि वे काफी अलग होते हैं। सरीसृप बॉयोलॉजिस्ट नैटुश ने फर्म और प्रसंस्करण सुविधाओं में पाया है कि वहां जानवरों के साथ उचित व्यवहार नहीं किया जाता था। यह सब बड़े पैमाने पर शिक्षा की कमी के कारण होता है।
 
जेनिफर कोलिन्स
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