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Written By DW
Last Modified: सोमवार, 1 जून 2020 (22:05 IST)

डेनमार्क में बना कोरोना का टेस्ट करने वाला रोबोट

डेनमार्क में बना कोरोना का टेस्ट करने वाला रोबोट - A robot to test Corona made in Denmark
भारत में बड़ी संख्या में स्वास्थ्यकर्मियों के कोरोना से संक्रमित होने की खबर आ रही है। इस बीच डेनमार्क में ऐसा रोबोट तैयार किया गया है, जो लोगों के कोविड-19 संक्रमण का टेस्ट खुद ही कर लेगा।

कोई व्यक्ति कोरोना वायरस से संक्रमित हुआ है या नहीं, इसका पता लगाने के लिए अलग अलग तरह के टेस्ट उपलब्ध हैं। कुछ मामलों में खून की जांच की जाती है। लेकिन सबसे सटीक होता है 'स्वॉब टेस्ट'। नाक या गले के अंदर एक लंबा-सा ईयरबड जैसा दिखने वाला स्वॉब डालकर सैंपल लिया जाता है। इसमें सैंपल लेने वाले के संक्रमित होने का खतरा रहता है।

यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न डेनमार्क का कहना है कि वहां रिसर्चरों ने दुनिया का पहला पूरी तरह ऑटोमेटिक रोबोट तैयार कर लिया है, जो अकेले ही कोविड-19 का टेस्ट करने में सक्षम है। उम्मीद की जा रही है कि जून से इसे काम में लगाया जा सकता है। इसे 3डी प्रिंटर की मदद से तैयार किया गया है। मरीज रोबोट के सामने बैठकर मुंह खोलता है और रोबोट उसके मुंह में स्वॉब डालता था। सैंपल लेकर रोबोट ही स्वॉब को टेस्ट ट्यूब में डालकर उस पर ढक्कन भी लगा देता है।

इस रोबोट को बनाने वाले थियुसियुस रजीत सवारीमुथु बताते हैं कि मैं उन लोगों में था जिन्हें रोबोट ने सबसे पहले टेस्ट किया था। मैं हैरान था कि रोबोट ने कितनी आराम से गले में उस जगह पर स्वॉब को पहुंचाया, जहां उसे पहुंचाना था। यह एक बड़ी सफलता है। पिछले 1 महीने से प्रोफेसर सवारीमुथु 10 लोगों की टीम के साथ मिलकर यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न डेनमार्क की इंडस्ट्री 4.0 प्रयोगशाला में रोबोट विकसित करने में लगे थे।

महामारी की शुरुआत से ही विश्व स्वास्थ्य संगठन का ज्यादा से ज्यादा टेस्ट करने पर जोर रहा है लेकिन जितने ज्यादा टेस्ट हो रहे हैं, स्वास्थ्यकर्मियों पर खतरा भी उतना ही बढ़ता जा रहा है। ऐसे में रोबोट काफी मददगार साबित हो सकता है। प्रोफेसर सवारीमुथु का कहना है कि न केवल कोरोना वायरस के मामले में, बल्कि भविष्य में होने वाली ऐसी दूसरी बीमारियों में भी इस रोबोट से फायदा मिल सकेगा। इसे सामान्य फ्लू की टेस्टिंग के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

इस रोबोट का एक फायदा यह भी है कि न ही यह थकेगा और न ही एक तरह के काम को लगातार करके ऊबेगा। फिलहाल सैंपल लेने के दौरान स्वास्थ्यकर्मियों को पीपीई पहनकर रखना होता है, क्योंकि इन्हें दोबारा इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, इसलिए स्वास्थ्यकर्मियों से उम्मीद की जाती है कि वे कम से कम 8-9 घंटों तक इन्हें पहनकर रखें। ऐसे में न वे टॉयलेट जा सकते हैं और न ही कुछ खा-पी सकते हैं।

उम्मीद की जा रही है कि हवाई अड्डों पर इस तरह के रोबोट लगाए जा सकेंगे ताकि बड़ी संख्या में एकसाथ टेस्ट मुमकिन हो सकें। लैब में तैयार हुए इस रोबोट को अब खरीदारों का इंतजार है। इस प्रोटोटाइप का बड़े पैमाने पर निर्माण होने में 3 से 4 महीने लग सकते हैं।
रिपोर्ट : ईशा भाटिया सानन
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