मंगलवार, 22 जुलाई 2025
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Written By ND

चलना ही जिंदगी है

चलना ही जिंदगी है
- डॉ. विजय अग्रवा

ND
तालाब का पानी गंदा हो जाता है, क्योंकि वह बहता नहीं। चूँकि वह बहता नहीं, इसलिए उसका पानी जहाँ का तहाँ ही बना रहता है। जबकि नदी का पानी साफ रहता है और न जाने कहाँ से चलकर कहाँ पहुँच जाता है, क्योंकि वह बहता है। बहाव में ही शुद्धता है, बहाव में ही जीवन है और बहने में ही नदी के कल-कल का संगीत भी। मतलब यह कि यदि गति है, तो जीवन है और गति नहीं है तो वह जड़ है, मृत है।

निश्चित रूप से गतिशील होने में तकलीफ तो होगी। लेकिन मैं समझता हूँ कि गतिशील न रहने में शायद उससे भी अधिक तकलीफ हो जाती है। इसके बावजूद ज्यादातर विद्यार्थी गतिहीनता को ही पसंद करते हैं। वे अपने स्थान से हिलना नहीं चाहते। वे अपने स्थान से दूसरी जगह जानानहीं चाहते। वे अपने आसपास के वातावरण के अपनी चल रही जीवन पद्धति के चाहे वह कितनी ही बेकार क्यों न हो, इतने अधिक अभ्यस्त हो जाते हैं कि उससे निकलने में उन्हें बहुत तकलीफ होने लगती है। और बस यही जीवन के सारे अवसर और सारा समय उन्हें छोड़कर किसी और के पास चला जाता है।

'होम सिकनेस' इसी तरह की गतिहीनता का सबसे अच्छा, किंतु सबसे बुरा उदाहरण है, जिसके शिकार होकर न जाने कितने विद्यार्थियों ने अपने अच्छे भविष्य के साथ गलत सौदेबाजी कर ली है। मैंने एक विद्यार्थी के माँ-बाप से बात करके उसे सीए के लिए जबर्दस्ती दिल्ली भेजा। वह गया, लेकिन दो महीने बाद लौट आया, क्योंकि उसका वहाँ मन नहीं लगा। आज वह पछताता है। लेकिन अब पछताने से क्या होगा।

अमेरिका के महान कहानीकार ओ' हेनरी ने इस बात को स्वीकार किया है कि न्यूयॉर्क की गलियों ने मुझे कहानीकार बनाया। हेनरी फोर्ड एक बैलगाड़ी में अपना सारा सामान और हाँ, परिवार को भी लादकर अपना गाँव छोड़कर शहर आ गए, तभी वे एक समय दुनिया के सबसे धनी आदमी (फोर्ड कार के निर्माता) बन सके। एडीसन तो डेट्रायट शहर में अकेले उस समय आ गए थे, जब वे केवल बारह साल के ही थे।

मेरे कहने का मतलब यह नहीं है कि आप भी अपने गाँव को छोड़कर शहर आ जाइए। मेरे कहने का मतलब केवल इतना ही है कि आप जो काम कर रहे हैं, उसके लिए जहाँ भी जाना हो, खुले और प्रसन्ना मन से जाएँ, क्योंकि तभी आप उस काम को अच्छी तरह से कर सकेंगे। तभी आपके समय का सही उपयोग हो सकेगा। घर के प्रति मोह होना गलत बात नहीं है। लेकिन उसे अपनी कमजोरी बना लेना गलत है।

वह आपकी शक्ति होनी चाहिए। मैंने देखा है कि गाँव से शहर में आकर पढ़ने वाले विद्यार्थी हर एक-दो महीने बाद किसी न किसी बहाने अपने घर जाते रहते हैं। मुझे लगता है कि ऐसा करके वे न केवल अपनी कमजोरी का प्रमाण प्रस्तुत कर रहे होते हैं, बल्कि उससे कहीं अधिक अपना समय भी नष्ट कर रहे होते हैं। आपको चाहिए कि यदि आपके संस्थान ने छुट्टी भी घोषित की है, तो उसका कोई सार्थक उपयोग करें।बार-बार घर जाने को मैं सार्थक उपयोग नहीं मानता। यह तो आप जानते ही हैं समय निरंतर बहने वाला तत्व है।

वह एक क्षण के लिए भी कही नहीं टिकता। तो स्वाभाविक है कि ऐसे में भला वह जड़ लोगों के साथ अपनी दोस्ती कैसे निभा सकेगा। गति की तो दोस्ती गति के साथ ही होगी। कछुआ और खरगोश दोस्त नहीं हो सकते। यदि आपको समय के साथ मित्रता निभानी है तो स्वयं को गतिशील करना होगा।

शारीरिक और मानसिक रूप से हमेशा गतिशील रहिए। जहाँ आप हैं और अपनी पढ़ाई कर रहे हैं, वहाँ की गतिविधियों में भी भाग लेना गतिशील होना है। अपने कमरा, कुर्सी, टेबल और बिस्तर तक सीमित मत कीजिए। इससे आप जीवन के बहुत से खूबसूरत अवसरों को खो देंगे।

(लेखक पत्र सूचना कार्यालय, भोपाल के अपर महानिदेशक हैं)