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Written By शरद जैन
Last Updated : बुधवार, 1 अक्टूबर 2014 (19:22 IST)

सटोरिए घटा-बढ़ा रहे हैं बाजार भाव?

सटोरिए घटा-बढ़ा रहे हैं बाजार भाव? -
नब्बे के दशक तक विद्यमान बंद अर्थव्यवस्था के अंतर्गत स्मगलर्स मूल्यवान वस्तुओं को चोरी-छिपे अनधिकृत रूप से समुद्र या सड़क के रास्ते देश में लाते थे तथा स्थानीय सस्ते उत्पाद को, जो विश्व बाजारों में कई गुना महँगे होते थे, देश के बाहर ले जाते थे।

अत्यंत ही बड़े पैमाने पर स्मगलिंग का व्यापार-व्यवसाय करने वाले उनके दायरे में आई सभी वस्तुओं के बाजार भावों पर पूरी तरह अपना अधिकार स्थापित कर लेते थे। उस समय स्मगलिंग के अंतर्गत देश में आने वाली मुख्य वस्तुओं में सोना, सिंथेटिक कपड़ा, विद्युत उपकरण आदि प्रमुख थे, जो अधिक मात्रा में आने पर स्थानीय भावों को बढ़ने से रोक देते थे। स्मगलिंग के अंतर्गत देश के बाहर जाने वाली वे ही वस्तुएँ होती थीं जिनके भाव अंतरराष्ट्रीय बाजारों में उच्च आसमान को छू रहे हों। अस्सी के दशक में विश्व बाजारों में हल्दी के भाव हमारे यहाँ से दुगुने हो गए थे।

भारत और नेपाल के स्मगलरों ने साँठगाँठ कर प्रचुर मात्रा में भारतीय हल्दी नेपाल निर्यात करा दी तथा 'प्रॉडक्ट ऑफ नेपाल' के बारदानों में डालकर यह हल्दी नेपाल से कोलकाता पोर्ट भिजवा दी गई, जहाँ से यह सिंगापुर निर्यात कर दी गई। यह सारा ड्रामा एक महीने में समाप्त होने पर उस समय देश में यकायक हल्दी की भारी कमी महसूस की गई थी एवं इसके भाव पूर्व से दुगुने हो गए थे। जब तक कि तत्कालीन केंद्र सरकार इस षड्यंत्र की तहकीकात कर पाती, तब तक लगभग पाँच हजार टन भारतीय हल्दी नेपाल के रास्ते विदेशी बाजारों में पहुँच चुकी थी।

इसके विपरीत खुली अर्थव्यवस्था के लागू होते ही स्मगलर्स बाजार से अचानक विलुप्त हो गए तथा बाजार भाव घटाने-बढ़ाने की सारी जिम्मेदारी सरकारी नियंत्रण में चल रहे एनसीडीईएक्स (नेशनल कमोडिटी एक्सचेंज) के अंतर्गत कार्यरत सटोरियों के जिम्मे आ गई। वर्तमान में जिस प्रकार निरंतर महँगाई बढ़ती जा रही है, इसके लिए सटोरिए भी काफी हद तक जिम्मेदार हैं।

अप्रैल 2007 के प्रारंभिक दौर में ही महँगाई दर 6.09 प्रतिशत पर पहुँच गई, जो मार्च 2007 के अंतिम सप्ताह में 5.74 प्रतिशत पर थी। केंद्र सरकार की ओर से इसका मुख्य कारण यह बताया गया है कि मौसमी फलों, सब्जियों तथा कुछ प्रकार के अनाज (जौ, मसूर, बाजरा), मसाले, दालें, उड़द तथा खाने के आयातित तेल में 10 से 23 प्रतिशत तक की तेजी का आ जाना। इससे वित्तमंत्री एवं रिजर्व बैंक दोनों ही चिंतित और विचलित हो गए हैं, क्योंकि उनके द्वारा अभी तक अपनाए गए सभी मौद्रिक एवं वित्तीय उपाय, जिनमें केश रिजर्व रेशो (सीआरआर) में दो बार बढ़ोतरी करना शामिल है, सर्वथा असफल होते नजर आ रहे हैं।

बैंकर्स तथा अर्थशास्त्री रिजर्व बैंक द्वारा पुनः कुछ कड़े उपाय आरोपित करने की प्रतीक्षा में हैं, जिनमें सीआआर के साथ-साथ ब्याज दरों का बढ़ाया जाना भी शामिल है। लेकिन निरंतर बढ़ रही इस भारी महँगाई का एक अतिमहत्वपूर्ण अंग है 'कमोडिटी एक्सचेंज के खिलाड़ी सटोरिए' जो कि महँगाई की लपटों में सदा-सर्वदा घी डालने का ही कार्य करते हुए उसे और अधिक प्रज्वलित करते आ रहे हैं, परंतु इन पर अभी तक एफसीए (फॉरवार्ड मार्केट कमीशन) नकेल डालकर अपने नियंत्रण में नहीं ले पा रहा है।

हालाँकि पूर्व में गेहूँ और कुछ दालों को कमोडिटी एक्सचेंज के दायरे से बाहर कर दिया गया था। हाल ही के दिनों में कमोडिटी एक्सचेंज के अंतर्गत आने वाले दो मसाले जीरा तथा कालीमिर्च के भावों के अगाऊ सौदे कर सटोरियों ने इतना ऊपर ला दिया कि इससे आम उपभोक्ता सकते में आकर इसकी खरीदी करने का सामर्थ्य न रखने के कारण परेशान हो गया। शायद अभी कुछ ही लोगों को पता चला होगा कि जीरा, जिसके थोक बाजार भाव पिछले वर्ष 90 रुपए प्रति किलोग्राम थे, आज वही जीरा थोक में 165 रुपए प्रति किग्रा तथा खुदरा में 190 रुपए प्रति किग्रा पर बिक रहा है। यानी थोक भावों में 83 प्रतिशत तथा खुदरा भावों में 111 प्रतिशत की बढ़त दर्ज हुई है।

इसी प्रकार कालीमिर्च जो पिछले वर्ष 110 रुपए प्रति किलोग्राम थोक में उपलब्ध थी, वही आज थोक में 165 प्रति किग्रा तथा खुदरा में 180 रुपए प्रति किग्रा पर उपलब्ध है जो क्रमशः 50 प्रतिशत और 64 प्रतिशत की तेजी दर्शाती है। इसी तरह छोटी हरी इलायची के भावों में भी 100 से 125 रुपए प्रति किलोग्राम या 20 से 25 प्रतिशत उछाल आ गया है।

सीधा-सीधा प्रश्न उठता है कि यदि 'महँगाई इंडेक्स' की गणना करते समय इन वस्तुओं के साथ अन्य खाद्य वस्तुओं के थोक भावों के बजाय प्रचलित खुदरा भावों को प्रॉपर वेटेज दिया जाता, तो उपभोक्ताओं द्वारा खरीद किए जाने वाले भावों का प्रतिबिम्ब महँगाई सूचकांक को अवश्य ही प्रभावित कर देता। परिणामतः यह मँहगाई इंडेक्स 6.09 की बजाय 6.50 प्रश पर अपना रिकॉर्ड दर्ज करा देती। वस्तुतः इस ओर सरकार अद्यतन निद्रामग्न है, दूसरी ओर कमोडिटी एक्सचेंज के सटोरियों ने इन मसालों के ऊँचे भावों पर अगाऊ सौदे कर वर्तमान में इनके इतने अधिक भाव बढ़ा दिए हैं कि अब आमजन अपने दैनिक भोजन में मसालों का पूरा जायका लेने में अपने आपको असमर्थ पाएगा।

पिछले पखवाड़े ही सरकार ने आयातित पाम तेलों पर 10 प्रतिशत तटकर घटा दिया था ताकि खाद्य तेलों के बाजार भावों में कुछ नरमी का वातावरण बने। किन्तु इससे भाव तो घटे नहीं, उल्टे उसी दिन स्थानीय एनबोट के सटोरियों ने सोया तेल के हाजर भावों पाँच से सात रुपए (प्रति दस किग्रा) तक की तेजी ला दी, जो आज भी जारी है जबकि इनके भावों में इतने ही रुपए से मंदी आ जाना चाहिए थी। इन सभी बिन्दुओं से यह स्पष्ट होता है कि जो-जो वस्तुएँ कमोडिटी एक्सचेंज के अंतर्गत लिस्टेड हैं, उनमें से लगभग 90 प्रतिशत वस्तुओं के भावों में सटोरियों द्वारा तेजी लाया जाना इनकी नियति बन गई है।

इस प्रकार कमोडिटी एक्सचेंज जिसका मूल्य नियंत्रण करने हेतु एक प्रभावशाली अस्त्र के रूप में प्रयोग किया जाना था, उसका आज तक मुद्रास्फीति को बढ़ाने के लिए ही उपयोग किया जाता रहा है। अब समय आ गया है जब सरकार वर्तमान वायदा बाजार की अनुपयोगिता पर गहन चिंतन करे तथा यथाशीघ्र इसे उस समय की स्थिति में ले आए जबकि कुछेक वस्तुएँ ही इसके नियंत्रण में आती थीं।

ऐसा कर दिए जाने पर कई वस्तुओं के मूल्यों में गिरावट दर्ज की जा सकेगी, जिससे कि मुद्रास्फीति की दर कम करने में सहायता प्राप्त हो सकेगी। यथार्थ में कमोडिटी एक्सचेंज वह मेकेनिज्म है, जहाँ वस्तुओं की खरीदी-बिक्री वायदा सट्टे के रूप में होती है। कमोडिटी एक्सचेंज के अंतर्गत सभी वस्तुओं को उसकी वास्तविक उपलब्धता के बिना खरीदा-बेचा जा सकता है तथा इसका फैलाव वास्तविक उत्पादन से कई गुना अधिक हो जाता है।

मात्र एक्सचेंज में ही खरीदी-बिक्री दर्ज कराने के साथ-साथ मार्जिन मनी की रकम भी जमा कराना होती है। इसके विपरीत प्रचलित बाजारों में स्टॉकिस्ट्स कम भावों पर माल खरीदकर जमा कर लेते हैं तथा भाव बढ़ने पर उसे बेचकर मनचाहा मुनाफा वसूल करते हैं। कमोडिटी एक्सचेंज वास्तव में बाजार व्यापारियों की जमाखोरी पर हाजर-वायदा सौदों माध्यम से पूरी तरह नियंत्रण करने हेतु ही स्थापित किया गया था, परंतु यह अपने उद्देश्य में सर्वथा भटककर पूर्णरूपेण सटोरियों के नियंत्रण में आ गया है।

हाजर भाव बढ़ने पर किसी भी वस्तु का स्टॉक तो व्यापारियों से सरकार निकलवाकर उचित मूल्य पर बिकवा सकती है, परंतु वायदा बाजारों में भाव बढ़ने पर उनका नियंत्रण नहीं कर पाती है। परिणामतः मुद्रास्फीति को पूरी तरह रोकने के लिए सरकार को वायदा बाजारों पर अपना तीव्र अंकुश लगाना ही होगा।