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Written By Author सीए भरत नीमा
Last Updated : शनिवार, 23 जुलाई 2022 (14:18 IST)

किराए के घर पर किसे देना होगा टैक्स? क्या है GST रजिस्ट्रेशन की भूमिका?

Ghar
मोदी सरकार के किराए के घर पर टैक्स के फैसले से किराएदारों में हडंकप मच गया। लोगों ने समझा कि सभी किराएदारों को जीएसटी के दायरे में लाया गया है। सरकार ने नोटिफिकेशन जारी कर स्थिति स्पष्ट करने का प्रयास किया। जानिए किन लोगों को किराए के घर पर टैक्स देना होगा?  
 
रहवासी मकान को कमर्शियल उपयोग पर देने पर टैक्स लगाने का प्रस्ताव था। नोटिफिकेशन में क्लियर नहीं होने से किसी भी GST रजिस्टर्ड व्यक्ति ने मकान किराये पर लिया तो टैक्स लगेगा और टैक्स रिवर्स चार्ज में भरना पड़ेगा।
 
अभी तक घरेलू मकान के किराए पर GST टैक्स नहीं था लेकिन लोग अपने घर को वाणिज्यिक उपयोग के लिए देते थे और रेसिडेन्सिअल हाउस से प्राप्त किराया बताते थे। वाणिज्यिक उपयोग पर टैक्स लगाने के लिए सरकार ने जीएसटी कॉन्सिल की बैठक में कहा था कि यदि किसी व्यावसायिक संस्थान ने किराए पर रहवासी मकान लिया है तो रिवर्स चार्ज में टैक्स देना पड़ेगा।
 
जीएसटी कॉन्सिल की मूल भावना के विपरीत नोटिफिकेशन में सिर्फ लिखा है कि यदि किसी GST रजिस्टर्ड व्यक्ति ने किराये पर रहवासी मकान लिया है तो टैक्स लगेगा। यहां व्यावसायिक संस्थान लिखना था। किराए से देनेवाले, जीएसटी अनरजिस्टर्ड हो या रजिस्टर्ड हो यह महत्वपूर्ण नहीं है।
 
यहां टैक्स भरने की लायबिलिटी रिवर्स चार्ज किरायेदार पर होने से यह महत्वपूर्ण हो गया है कि किरायेदार व्यक्ति रजिस्टर्ड है या नहीं। यदि किरायेदार GST में रजिस्टर्ड नहीं है तो कोई लायबिलिटी नहीं आएगी।
 
समस्या यह है की GST रजिस्ट्रेशन व्यक्ति के पैन नंबर के आधार पर होने से यदि वह व्यवसाय कही और से करता है तथा किराए के मकान में रहता है। घर का व्यवसाय से कोई संबंध नहीं है फिर भी उसे नोटिफिकेशन के अनुसार, रिवर्स चार्जेस में टैक्स भरना पड़ेगा। इस विसंगति को विभाग को हाथो-हाथ दूर करना चाहिए।
 
यदि मकान किराए पर देने वाला और लेने वाला दोनों अनरजिस्टर्ड है तो कोई टैक्स नहीं लगेगा। भले ही किरायेदार इसका व्यावसायिक उपयोग कर रहा है लेकिन लेने वाला रजिस्टर्ड है तो टैक्स लगेगा। 
 
लोग अभी से किरायाचिठ्ठी परिवार के अन्य अनरजिस्टर्ड व्यक्ति के नाम से करवाने हेतु तत्पर हो गए हैं। यदि किसी व्यक्ति को रिवर्स चार्ज की लायबिलिटी आती है तो उसे रजिस्ट्रेशन लेना जरुरी होता है। भले ही उसका टर्नओवर 20 लाख से कम हो। सरकार को यदि व्यावसायिक किराए पर टैक्स लगाना है तो उसे इसमें भी संशोधन करना पड़ेगा। 
 
क्यों महत्वपूर्ण हो गया है 3B रिटर्न? 
फॉर्म 3B में ई-कॉमर्स कंपनी के माध्यम से मॉल बेचा है तो दो कंडीशन हो सकती है। पहली ई-कॉमर्स ऑपरेटर खरीदार को टैक्स लगाकर डायरेक्ट पैसा ले मतलब बिल ई-कॉमर्स वाला बनाए और टैक्स भरे। दूसरी : सिर्फ बुकिंग करके छोड़ दें व खरीदार डायरेक्ट विक्रेता को पैसा और टैक्स दें। पहले केस में ई-कॉमर्स टैक्स चुकाएगा और 3B के नए फॉर्मेट के नई टेबल 3.1.1(i) में दर्शाएगा व टैक्स भरेगा उसे पहली वाली 3.1(अ) टेबल में यह विक्रय नहीं बताना है।
 
इसी प्रकार जिसने ई कॉमर्स के माध्यम से बेचा है और टैक्स भी ई-कॉमर्स का ही भरा है। उसे नई टेबल 3.1.1(ii) में बताना है लेकिन टैक्स नहीं भरना है। डायरेक्ट विक्रय पहलेवाली टेबल 3.1(अ) में ही जाएगी। टेबल 3.2 में सिर्फ इनफार्मेशन कॉम्पलसरी मांगी है, जो की ऑटो पॉप्युलेट GSTR-1 से होगी। इसका टैक्स लायबिलिटी पर कोई प्रभाव नहीं होता है क्योंकि टेबल 3.1 में दी गई सेल में से ही आपको बताना होता है की किस प्रदेश के व्यक्ति को विक्रय किया है ताकि सरकार उपरोक्त टैक्स संबंधित प्रदेश को दे सके। इसमें कम्पोजीशन वाले को विक्रय भी बताना है।
 
अब रिस्ट्रिक्टेड ब्लॉक्ड ITC सेक्शन 17(5) के अंतर्गत जैसे मोटर कार वगैरह का अलग से बताना ही है। मतलब पहले ब्लाक ITC 4A टेबल में दिखाना और 4B टेबल से रिवर्स करना रहेगा। 3B वर्त्तमान में 2B के माध्यम से ऑटो पोपुलेट ITC ले ली जाती है लेकिन इसमें वे ITC भी शामिल रहती है जो की हमें लेना नहीं होती है। जैसे 17(5) के अंतर्गत कार खरीदी, क्लब खर्चे, स्वयं के लिए बिल्डिंग पर खर्च, होटल के खर्चे आदि।
 
वर्तमान में हम इसे टेबल 4(D) में बताना होता था लेकिन साथ में 4(A) ‘OTHER ITC’ में से भी घटाना होता था क्योकि 4(D) सिर्फ इनफार्मेशन के लिए था इसको टैक्स लायबिलिटी में से घटाया नहीं जाता था। अब आपको 17(5) की BLOCK ITC टेबल 4(A) में लेना है तथा टेबल 4(B) में से रिवर्स करना है। इससे सरकार उपरोक्त टैक्स प्रदेश सरकार को दे सकेगी। मतलब अकाउंटेंट को अब 2B के फिगर को देखकर रिटर्न नहीं भरना है। उसे बुक्स में कौन सी आइटम्स की खरीदी की है, इसकी जानकारी भी रखना है।
 
अब टेबल नंबर 4(D)- इसका हैडिंग ‘INELIGIBLE ITC” की जगह ‘OTHER DETAILS’ किया है। टेबल 4(D) एक इनफार्मेशन टेबल है। इसका प्रभाव ITC क्रेडिट लेजर में नहीं जाता है। 4(D)(1) में 180 दिन में पेमेंट नहीं आने पर हमने पहले ITC रिवर्स की थी लेकिन अब पेमेंट आ गया होने से वह 2B में तो नहीं दिखेगी इसलिए इसे 4(A)(5) से री-क्लेम करना है और वहां के अलावा आपके 4(D) में सिर्फ इनफार्मेशन के तौर पर बताना है कि कितनी राशी री-क्लेम की है?
 
BLOCK क्रेडिट 17(5) को 4D से हटाकर टेबल 4(B) में शिफ्ट किया गया है। यहां एक जानकारी और मांगी है जो की धारा 16(4) के अंतर्गत जो पिछले वर्ष से संबंधित सितंबर तक ITC ले सकते हैं। यदि प्लेस ऑफ सप्लाई दूसरे प्रदेश में होने से यदि आप ITC लेने के हकदार नहीं है तो टेबल 4 में दर्शाए। उपरोक्त राशी 2B से ऑटो मेटिक 3B में नहीं देखेगी। इससे सरकार उपरोक्त पैसे का प्रदेश के साथ सेटलमेंट कर सकेगी।
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