Last Modified: इंदौर ,
गुरुवार, 28 अप्रैल 2011 (08:31 IST)
मवेशियों की जुगाली से तैयार होगा ईंधन
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वैज्ञानिकों का यह नया अध्ययन यदि व्यावहारिक पैमानों पर खरा उतरा तो देश के डेयरी फार्मों के लाखों मवेशी दूध और मांस के उत्पादन के साथ ईंधन बनाने में भी मददगार साबित होंगे।
शोधकर्ताओं का दावा है इससे वातावरण की हिफाजत भी होगी। इंदौर जिले के गवर्नमेंट वेटरनेरी डॉक्टर महाविद्यालय से पीजी स्तर पर अनुसंधान कर रहे जुल्फकार-उल-हक ने मवेशियों की जुगाली के दौरान निकलने वाली मिथेन गैस इकट्ठी करके इसे तरल ईंधन में बदलने की परियोजना का खाका तैयार किया है।
उन्होंने बताया कि वह जिस डेयरी फार्म की परिकल्पना को आकार देने की कोशिश में जुटे हैं उसमें मवेशियों को आहार दिए जाने के बाद उनके मुँह पर विशेष नलियाँ लगा दी जाएँगी।
हक ने बताया कि ये नलियाँ पशुओं की जुगाली और डकार के दौरान निकलने वाली मिथेन गैस को जमा करेगी, जिसे एक चैंबर में पहुँचाकर तरल ईंधन में बदल दिया जाएगा। मिथेन उन ग्रीनहाउस गैसों में शामिल है जिनकी ग्लोबल वॉर्मिंग ब़ढ़ाने में अहम भूमिका मानी जाती है।
उन्होंने कहा कि मिथेन को ईंधन के रूप में वाहनों और खाना पकाने में इस्तेमाल किया जा सकता है। देश में मवेशियों की संख्या दुनिया के दूसरे मुल्कों के मुकाबले बेहद ज्यादा है। इस तरह की परियोजना से ग्लोबल वॉर्मिंग पर नियंत्रण में भी मदद मिलेगी।
हक ने बताया कि एक अनुमान है कि जुगाली करने वाला मवेशी आमतौर पर दिन भर में 250 से 500 लीटर मिथेन वातावरण में छो़ड़ सकता है। लिहाजा इस बारे में अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय खासा चिंतित है। (एजेंसियाँ)