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Written By राम यादव
Last Updated : बुधवार, 1 अक्टूबर 2014 (19:32 IST)

अंतरिक्ष में होगी दो भीमों की भिड़ंत

अंतरिक्ष में होगी दो भीमों की भिड़ंत -
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हमारे ब्रह्मांड में एक से एक अनोखी घटनाएं होती रहती हैं। हर पिंड और हर गैसीय बादल हर समय अकल्पनीय गति से दौड़ रहा है। इस भाग-दौड़ में उनके बीच टक्कर भी हो जाती है। ग्रहों और उल्काओं के ही बीच टक्कर नहीं होती, लाखों-करोड़ों प्रकाशवर्ष लंबी-चौड़ी ज्योतिर्मालाओं (गैलेक्सियों/निहारिकाओं ) के बीच भी टक्कर होती रहती है।

अमेरिकी खगोलविदों की मानें, तो ऐसी ही एक टक्कर हमारे सौरमंडल वाली ज्योतिर्माला- जिसे हम आकाशगंगा कहते हैं- और उसकी एक पड़ोसी ज्योतिर्माला एन्ड्रोमेडा के बीच होना सुनिश्चित है। गनीमत है कि दोनो पड़ोसियों के बीच यह टकराव आज या कल या अगले कुछ वर्षों में नहीं, चार अरब वर्ष बाद होने जा रहा है। अमेरिकी अंतरिक्ष अधिकरण नासा के इन वैज्ञानिकों की यह भविष्यवाणी अंतरिक्ष में घूम रहे अमेरिकी दूरदर्शी (टेलिस्कोप) "हबल" से मिले चित्रों और आँकड़ों पर आधारित है।

यह भविष्यवाणी सर्वनाशी प्रलय जैसी भले ही लगती है, पर है लगभग निरापद। हमारी आकाशगंगा में अनुमानतः तीन खरब तारे और एन्ड्रोमेडा ज्योतिर्माला में दस खरब तारे भले ही भरे पड़े हैं, उनके बीच की दूरियाँ इतनी अधिक हैं कि अपवादस्वरूप ही शायद दो तारों या उनके ग्रहमंडलों के बीच आमने-सामने भिडंत होगी।

उदाहरण के लिए, हमारे सौरमंडल का सबसे निकटस्थ तारा प्रॉक्सीमा सेन्टाउरी हमारे सूर्य से 4.2 प्रकाशवर्ष (4x10 घाते13 किलोमीटर) दूर है। तारे अपनी ज्योतिर्माला के केंद्र से जितना अधिक दूर होते हैं, उनके बीच की दूरी भी उतनी ही बढ़ती जाती है। अतः होगा यह कि दोनो ज्योतिर्मालाओं के तारे एक-दूसरे के पास आते हुए, आपस में टकराने के, बदले एक-दूसरे के ऊपर-नीचे या अगल-बगल से गुज़र जाएंगे। एक ज्योतिर्माला के तारे दूसरी ज्योतिर्माला के बीच से बिना टकराए उसी तरह गुज़र जाएंगे, जिस तरह अतिसूक्ष्म रहस्यमय कण न्यूट्रीनो हमारे शरीर ही नहीं, हमारी धरती के भी आर-पार बिना कहीं टकराए निकल जाते हैं।

खगोलविद काफ़ी समय से जानते हैं कि हमारी आकाशगंगा और एन्ड्रोमेडा के बीच की दूरी घट रही है। दोनो ज्योतिर्मालाएं चार लाख किलोमीटर प्रतिघंटे (120 किलोमीटर प्रतिसेकंड) की गति से एक-दूसरे की तरफ़ बढ़ रही हैं। पर, यह स्पष्ट नहीं था कि वे अरबों-खरबों किलोमीटर तक फैले अपने सारे तामझाम के साथ एक-दूसरे के आड़े आयेंगी या अगल-बगल से निकल जाएंगी। लगता यही है कि बहुत हुआ तो दोनो के केंद्र में बैठे कृष्णविवर (ब्लैक होल) आपस में भले टकराएँ, बाक़ी पिंडों के बीच अपवादस्वरूप ही टक्कर हो सकती है।

खगोलविदों का यह भी कहना है कि ज्योतिर्मालओं के बीच ऐसा मिलन न तो अनहोना है और न ही हमारी आकाशगंगा और एन्ड्रोमेडा को अपने जीवनकाल में ऐसा पहली बार झेलना पड़ेगा। एन्ड्रोमेडा को अतीत में कम से कम एक बार पहले भी ऐसा टकराव झेलना पड़ा था और हमारी आकाशगंगा भी इस समय कुछेक छोटी-मोटी ज्योतिर्मालाओं को अपने भीतर समेट रही है।

पिछले सात वर्षों से एन्ड्रोमेडा की गति और दिशा पर नज़र रखी जा रही है। सारे संकेत यही हैं कि उसका और हमारी आकाशगंगा का अगले चार अरब वर्षों में जब आमना-सामना होगा, तब दोनो के बीच के पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण बल के कारण वह एक ऐसा महामिलन सिद्ध होगा, जिसके दौरान पहले तो दोनो ज्योतिर्मालाएँ एक-दूसरे के बीच से होते हुए आर-पार गुज़र जाएंगी। लेकिन, कोई दो अरब साल और बाद वे पुनः निकट आएंगी और आपस में मिलकर एकाकार हो जाएंगी। 50 प्रतिशत संभावना यह भी है कि हमारा सौरमंडल यदि तब तक मिट नहीं गया होगा, तो वह नई एकीकृत ज्योतिर्माला के कंद्र से- आकाशगंगा में इस समय की अपनी स्थिति की तुलना में- तीन गुना परे हटा दिया जाएगा।

लेकिन, हमें इस सबसे चिंतित होने की कोई ज़रूरत नहीं है। जर्मन अंतरिक्ष अधिकरण DLR के वैज्ञानिक भी हबल के चित्रों और आंकड़ों से सुपरिचित हैं। उनका कहना है कि यह प्रघटना अभी अरबों वर्ष दूर है। दूसरी बात, हमारी आकाशगंगा और एन्ड्रोमेडा के महामिलन से कहीं पहले ही हमारी पृथ्वी अपने सूर्य की बढ़ती हुई गर्मी से भस्म हो चुकी होगी।

स्मरणीय है कि एक भविष्यवाणी यह भी है कि हमारा सूर्य अगले चार से पांच अरब वर्षों में अंतिम सांस लेने से पहले सुपरनोवा का रूप धारण करेगा, यानी किसी गुब्बारे की तरह फूल कर और भी चमकीला एवं विराटकाय बन जाएगा। उसकी ऊर्जा चुकने और उसमें विस्फोट होने से पहले उसका आकार क्रमशः इतना बढ़ जएगा कि पहले तो वह अपनी बढ़ती हुई गर्मी से पृथ्वी को झुलसा देगा और बाद में उसे शायद निगल भी जाएगा। पृथ्वी इससे पहले ही अगले कुछेक लाख या करोड़ वर्षों में किसी प्रकार के जीवन के उपयुक्त नहीं रह जाएगी।

सूर्य का जिवनकाल समाप्त होने के साथ ही पृत्वी सहित उसके सौरमंडल का भी अंत होना निश्चित समझना चाहिये। लगभग उसी समय हमारी आकाशगंगा और एन्ड्रोमेडा का भी मिलन होगा। यदि पृथ्वी का तब तक अस्तित्व रहा और उस पर मनुष्य का निवास भी रहा, तो उसे रात्रिकालीन आकाश में भारी परिवर्तन नजर आएंगे। आकाश जगमग तारों से भरा और भी चमकीला दिखने लगेगा। दोनों ज्योतिर्मालाओं के गैसीय बादलों के बीच से अनेक नए तारों का जन्म होगा। लेकिन, विडंबना यह होगी कि इस नयनाभिराम छटा पर चकित होने के लिए इस धरती पर मनुष्य तो क्या, कोई प्रकृति शेष नहीं बची होगी।