शिक्षाप्रद कहानी : मिलो और मुस्कुराओ
आखिर जिस बात का अंदेशा था वही हुआ। रमाकांत की म्रृत्यु के बाद उनके दोनों बेटों में ठन गई। मां रेवती के लाख समझाने पर भी राधाकांत पिताजी की जायदाद के बंटवारे की बात करने लगा। छोटा बेटा कृष्णकांत वैसे तो खुलकर कुछ नहीं कह रहा था, परंतु बड़े भाई के व्यवहार से दुखी होकर उसने भी बंटवारे के लिए हामी भर दी। मकान का बंटवारा हो गया।
चार-चार कमरे दोनों के हिस्से में आए। पीछे के आंगन के बीचों-बीच दीवाल खड़ी होने लगी। सामने के बरामदे को भी दो हिस्सों में बांटने के लिए मिस्त्री काम पर लगा दिया गया। ऊपर का एक कमरा जो रमाकांत का स्टडी रूम था, बंटने के लिए शेष रह गया था। दोनों भाई ऊपर पहुंचे, जहां दो अलमारियां रखी थीं। अलमारियों और उस कमरे का बंटवारा कैसे हो, इस पर विचार हो रहा था। कृष्णकांत ने देखा कि पिताजी की एक अलमारी पर लिखा था 'मिलो' और दूसरी पर लिखा था 'मुस्कुराओ'।