आखिर कहां गई भालू की पूंछ?
भालू और लोमड़ी की मजेदार कहानी
कभी भालू की चमकीली लंबी पूंछ हुआ करती थी, पर अब नहीं है। बेचारा भालू। किसी की बात में आकर काम करने से काम का बिगाड़ा ही होता है। अगर भालू लोमड़ी की बात में नहीं आता तो क्या यह होता भला। इस बारे में जो कहानी है वह आज भी जर्मनी और उत्तरी अमेरिका में सुनाई जाती है। आओ हम भी सुनते हैं।बहुत समय पहले भालू की लंबी एवं चमकदार पूंछ हुआ करती थी। भालू भाई को इस पर बड़ा गर्व था। वह सभी से पूछता था कि आज मेरी पूंछ कैसी लग रही है?
अब कोई भालू से पंगा लेता क्या भला? उसकी बड़ी कद-काठी और पंजे देखकर हर कोई कहता- बहुत सुंदर, बहुत सुंदर। भालू इस पर फूला नहीं समाता। कहने वाले यह भी कह देते कि भालू की पूंछ से सुंदर किसी की पूंछ नहीं। बस, भालू दिनभर अपनी पूंछ-प्रशंसा सुनता रहता। एक बार ठंड के दिनों में कुछ ज्यादा ही ठंड पड़ी। इतनी कि झील और पोखर सब जम गए। शिकार ढूंढना भी मुश्किल हो गया। ऐसे में भालू अपनी सुंदर पूंछ लिए एक झील के पास से जा रहा था, तभी उसकी नजर वहां बैठी एक लोमड़ी पर पड़ी। लोमड़ी के पास मछलियों का ढेर लगा था। यह देखकर भालू के मुंह में पानी आ गया।