हर प्रकार से नादान थे तुम,
गीली मिट्टी के समान थे तुम।
आकार देकर तुम्हें घड़ा बना दिया,
अपने पैरों पर खड़ा कर दिया।
गुरु बिना ज्ञान कहां,
उसके ज्ञान का आदि न अंत यहां।
गुरु ने दी शिक्षा जहां,
उठी शिष्टाचार की मूरत वहां।
अपने संसार से तुम्हारा परिचय कराया,
उसने तुम्हें भले-बुरे का आभास कराया।
अथाह संसार में तुम्हें अस्तित्व दिलाया,
दोष निकालकर सुदृढ़ व्यक्तित्व बनाया।
अपनी शिक्षा के तेज से,
तुम्हें आभा मंडित कर दिया।
अपने ज्ञान के वेग से,
तुम्हारे उपवन को पुष्पित कर दिया।
जिसने बनाया तुम्हें ईश्वर,
गुरु का करो सदा आदर।
जिसमें स्वयं है परमेश्वर,
उस गुरु को मेरा प्रणाम सादर।
सौजन्य से - साभार- छोटी-सी उमर (कविता संग्रह)