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Written By WD Feature Desk
Last Updated : शनिवार, 26 अप्रैल 2025 (16:25 IST)

जैन धर्म में अक्षय तृतीया का क्या है महत्व, जानें इसके बारे में

Jain Akshaya Tritiya 2025
Akshaya Tritiya fasting in Jainism: इस बार अक्षय तृतीया का पावन पर्व 30 अप्रैल 2025, दिन बुधवार को मनाया जा रहा है। इसके बारे में जानने के लिए यहां जैन धर्म के अनुसार अक्षय तृतीया के महत्व के बारे में खास जानकारी दी जा रही है। जैन धर्मावलंबी इस दिन उपवास रखते हैं और जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभनाथ की पूजा करते हैं। आइए जानते हैं इस बारे में...ALSO READ: अक्षय तृतीया पर बनेंगे 3 अद्भुत संयोग, धन और सुख की प्राप्ति के लिए जरूर करें ये उपाय
 
अक्षय तृतीया का महत्व जैन धर्म में : 

राजा श्रेयांश द्वारा प्रथम आहार दान:
जैन धर्म की मान्यतानुसार जैन धर्म में अक्षय तृतीया का एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह मुख्य रूप से प्रथम तीर्थंकर, भगवान ऋषभनाथ/ आदिनाथ से जुड़ा हुआ है। इस दिन को इसलिए महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह उस दिन का स्मरण कराता है जब भगवान ऋषभनाथ ने पूरे एक वर्ष के लंबे उपवास के बाद पहली बार भोजन ग्रहण किया था। 
 
हस्तिनापुर के राजा श्रेयांश कुमार ने अपने पूर्व जन्म के स्मरण के कारण भगवान ऋषभनाथ की आवश्यकता को समझा और उन्हें इक्षु रस/ गन्ने का रस अर्पित किया। भगवान ऋषभनाथ ने अपने हाथों को पात्र बनाकर उस रस को ग्रहण किया और अपना लम्बा उपवास तोड़ा। अत: जैन धर्म में आहार दान और इस दिन का विशेष महत्व है। यह दिन आज भी 'अक्षय तृतीया' के नाम से प्रसिद्ध है। आज भी हस्तिनापुर में जैन धर्मावलंबी इस दिन गन्ने का रस पीकर अपना उपवास तोड़ते हैं। 
 
और इस प्रकार, एक हजार वर्ष तक कठोर तप करके ऋषभनाथ को कैवल्य ज्ञान/ भूत, भविष्य और वर्तमान का संपूर्ण ज्ञान प्राप्त हुआ और वे जिनेन्द्र बन गए। पूर्णता प्राप्त करके उन्होंने अपना मौन व्रत तोड़ा और संपूर्ण आर्यखंड में लगभग 99 हजार वर्ष तक धर्म-विहार किया और लोगों को उनके कर्तव्य और जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति पाने के उपाय बताए। इस घटना के बाद से, जैन धर्म में अक्षय तृतीया को दान देने का एक अत्यंत शुभ दिन माना जाता है। यह माना जाता है कि इस दिन किए गए धार्मिक दान का फल 'अक्षय' होता है, अर्थात् वह कभी कम नहीं होता।ALSO READ: अक्षय तृतीया पर बन रहे हैं 3 शुभ योग, कर लें 5 उपाय, होगी धन की वर्षा
 
अक्षय का अर्थ है 'कभी न क्षय होने वाला' और तृतीया का अर्थ है 'तीसरा'। यह वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तीसरी तिथि को पड़ता है। इसके साथ ही अक्षय तृतीया को आध्यात्मिक चिंतन और धार्मिक कार्यों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन दान, पूजा और उपवास करने से आत्मा को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। यह दिन सभी को भगवान ऋषभनाथ के त्याग और उनकी कठोर तपस्या का स्मरण कराता है, जो जैन धर्म के अनुयायियों को त्याग, तपस्या और संयम के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

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