अनंत चर्तुदशी पर करें अनंतनाथ की पूजा
जैन धर्म में अनंत चतुर्दशी का महत्व
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राजश्री कासलीवाल अर्घ्य शुचि नीर चंदन शालिशंदन, सुमन चरु दीवा धरो। अरु धूप जुत में अरघ करि, करजोर जुग विनती करों।। जगपूज परमपुनीत मीत, अनंत संत सुहावनों। शिवकंतवंत महंत ध्यावों, भ्रन्ततंत नशावनों।। ॐ ह्रीं श्री अनंतनाथ जिनेंद्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। उपरोक्त मंत्र द्वारा अनंत चर्तुदशी के दिन चौदहवें तीर्थंकर भगवान अनंतनाथ का पूजन करें। अनंत चतुर्दशी व्रत कब और कैसे करें :- अनंत चर्तुदशी व्रत करने के लिए भाद्रपद शुक्ल पक्ष की ग्यारस (एकादशी) से यह व्रत शुरू किया जाता है। इसलिए 11, 12, 13 का एकाशन, चौदस का उपवास और पूर्णिमा के दिन एकाशन, इस तरह पांच दिन में यह पूर्ण किया जाता है।
यह व्रत चौदह वर्ष में पूर्ण होता है। जो भी व्रतधारी अनंत चर्तुदशी का यह व्रत करते है। वह प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ला चर्तुदशी के दिन उपवास करें। इस दिन भगवान अनंतनाथ की पूजा करें। साथ ही 'ॐ ह्रीं अर्हं हं स: अनंत केवलिभ्यो नम:' इस मंत्र का त्रिकाल जप करें। चौदह वर्ष के पूर्ण व्रत होने पर इसका उद्यापन करें। उद्यापन स्वयं की शक्ति के अनुसार करें। उद्यापन के दिन मंदिर में पूजा करवाएं। चाहे तो मंदिर निर्माण करवाएं। घंटा, झालर या छत्र, सिंहासन आदि कुछ भी भेंट दें। आहार व शास्त्र का दान दें। साथ ही प्रभावना बांटकर उद्यापन विधि पूर्ण करें। अंनत चर्तुदशी व्रत के अन्य जाप्य मंत्र : ॐ ह्रीं अर्हं हं स: अनंत केवलिने नम:। अथवा ॐ नमो~र्हते भगवते अणंताणंतसिज्झधम्मे भगवतो महाविज्जा-महाविज्जा अणंताणंतकेवलिए अणंतकेवलणाणे अणंतकेवलदंसणेअणुपुज्जवासणे अणंते अणंतागमकेवली स्वाहा। उपरोक्त मंत्रों का जाप करके पुण्य की प्राप्ति करें।