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  4. What is the connection of Jagannath Puri with Ujjain
Written By WD Feature Desk
Last Updated : शनिवार, 22 जून 2024 (10:17 IST)

ओडिशा के जगन्नाथ पुरी का मध्यप्रदेश के उज्जैन से क्या है कनेक्शन?

Jagannath Rath Yatra 2024
Jagannath Rath Yatra Katha 2024: ओडिशा के जगन्नाथ मंदिर का संबंध महाकाल की नगरी उज्जैन से आखिर कैसे है। क्या आप इस बारे में जानते हैं? प्राचीन काल में पुरी सबर जाति के लोगों का क्षेत्र और वहां चारों ओर जंगल ही जंगल थे। उस क्षेत्र में बाहरी लोग जाने से डरते थे। आओ जानते हैं कि क्या है पुरी और उज्जैन का कनेक्शन।
 
सतयुग के समय मालवा प्रदेश में इंद्रद्युम्न नाम के एक चक्रवर्ती राजा थे। चक्रवर्ती अर्थात जिसका संपूर्ण भूखंड पर राजा हो। उनकी राजधानी उज्जैन थी। इनके पिता का नाम भरत और माता सुमति था। राजा विष्णुजी के परम भक्त थे। उन्होंने अपने मंत्री को बोला कि मैंने अपने जीवन में सबकुछ कर लिया और अब मुझे भगवान के साक्षात दर्शन करना है, उन्हीं की सेवा करना है।
 
राजा का जो मंत्री था वो जगन्नाथ जी के बारे में जानता था। तब उन्हें नीलमाधव कहा जाता था। मंत्री को पता था कि नीलमाधव वहां पर साक्षात विराजमान हैं। उन्होंने राजा से कहा कि उद्रदेश (ओडिशा) में शंखक्षेत्र (पुरी) में एक जगह है, वहां पर श्री हरि विष्णु नीलमाधव रूप में एक मूर्ति में खुद विराजमान हैं। यह सुनकर राजा ने कहा कि ठीक है तब तुम वहां जाओ और उसे लेकर आ जाओ। 
 
यह सुनकर मंत्री ने कहा कि नहीं मैं तो नहीं जाऊंगा, लेकिन मेरा छोटा भाई जो विष्णु भक्त है वह जाकर ले आएगा। मंत्री जानता था कि जो शंखक्षेत्र है वह आदिवासी इलाका है और यदि मैं वहां गया तो वे लोग मुझे मार देंगे।...तब मंत्री ने चालाकी से अपने भाई विद्यापति को भेज दिया।

विद्यापति को वहां पर सबर जाति के मुखिया विश्वावसु मिले। विश्वावसु ने जब देखा कि एक विष्णु भक्त आए हैं और वेद का उच्चारण करते हैं तो विश्वावसु ने विद्यापति का स्वागत किया और बाद में उन्होंने पहाड़ी की एक गुफा में नीलमाधव के दर्शन भी कराए। उनके दर्शन करके विद्यापति तो धन्य हो गया परंतु वह चमत्कारी मूर्ति को वहां ले ले नहीं पाया। 
 
कुछ दिनों के बाद उसने उज्जैन लौटकर राजा को कहा कि वहां पर साक्षात भगवान विराजमान है और सबर जाति के लोग उनकी पूजा करते हैं। मैं अकेला उन्हें लाने में सक्षम नहीं हूं।

यह सुनकर तब सम्राट इंद्रद्युम्न खुद अपने सैनिकों की एक टुकड़ी के साथ ओडिशा पहुंच गए। ओडिशा के राजा ने चक्रवर्ती सम्राट को देखकर कहा कि क्या हुआ सम्राट,अचानक सेना सहित आप आए हैं? हमसे कोई भूल हुई है क्या? सम्राट इंद्रद्युम्न ने कहा कि नहीं ऐसी बात नहीं है। हमने सुना है कि यहां पर शंख क्षेत्र में साक्षात भगवान विराजमान है।
 
यह सुनकर ओडिशा के राजा ने कहा कि हमने भी सुना है सम्राट लेकिन हमने देखा नहीं है। चलो हम भी आपके साथ चलते हैं उन्हें लाने के लिए।

सबर जाति के लोग तो कुछ ही संख्या में थे लेकिन सम्राट के साथ सैकड़ों की सेना थी। मजबूरन सबर जाति के लोग उन्हें नीलमाधव की गुफा में ले गए लेकिन वहां पहुंकर सम्राट के सामने ही नीलमाधव की चमत्कारी मूर्ति जिसमें से प्रकाश निकलता था, अचानक ही  उनके सामने ही गायब हो गई। यह देखकर सभी दंग रह गए और विष्णु भक्त सम्राट रोने लगे और कहा कि अबसे में अन्न-जल छोड़ता हूं और अब मुझे नहीं जीना है। तब आकाशवाणी हुई कि हे राजन! यदि तू मेरी भक्ति और सेवा करना चाहता है तो तुझे यहीं रहकर यह कार्य करना होगा। यह सुनकर राजा खुश हो गया।