35 साल बाद सऊदी अरब में दिखाई गई फिल्म
रियाद। पैंतीस वर्षों के इंतजार के बाद 18 अप्रैल 2018 को सऊदी अरब में पहली बार किसी सिनेमाघर में कोई फिल्म दिखाई गई और इसी के साथ 18 अप्रैल का दिन वहां के हर नागरिक के लिए एक ऐतिहासिक तारीख बन गया।
उल्लेखनीय है कि इस क्रांतिकारी कदम को समझना सबके लिए जरूरी है क्योंकि अब सऊदी अरब, आगे बढ़ने के लिए अब सॉफ्ट इस्लाम का सहारा ले रहा है। ये पूरी दुनिया के लिए एक बहुत सकारात्मक बात है और इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह है, वहां के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान।
विदित हो कि प्रिंस की उम्र सिर्फ 32 साल है और वह अपने देश की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को सुधारना चाहते हैं।
सऊदी अरब की कुल आबादी लगभग सवा 3 करोड़ है और इसमें से डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोगों की उम्र 30 वर्ष से कम है। इसलिए यह कहा जा रहा है कि मोहम्मद बिन सलमान अपने विजन 2030 के तहत सऊदी अरब के युवाओं को सशक्त बनाना चाहते हैं।
प्रिंस सलमान अपने देश के युवाओं को बदलती दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने का संदेश देना चाहते हैं। ऐसे में सिनेमा को प्रतिबंध से मुक्त करना एक बड़ा सांस्कृतिक फैसला है। इस फैसले की शुरुआत 'ब्लैक पैंथर' फिल्म से की गई।
विदित हो कि वर्ष 1980 के आसपास वहाबी कट्टरपंथियों के दबाव में सऊदी अरब में सिनेमा घरों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और तब से लेकर अब तक सऊदी अरब के तमाम लोग मनोरंजन के लिए UAE, Bahrain और कई दूसरे देशों की यात्रा करते थे।
कई दशकों तक सऊदी के लोग रूढिवादी रहे हैं लेकिन अब ऐसा लगता है कि वहां की सत्ता और वहां का समाज दोनों पहले की अपेक्षा ज्यादा उदारवादी हो गए हैं और यही उदारवाद ही सऊदी अरब के भविष्य की कुंजी है। एक और जहां सऊदी अरब है वहीं भारत में कश्मीर है जहां श्रीनगर समेत पूरी कश्मीर घाटी में वर्ष 1990 से सिनेमाघर बंद पड़े हुए हैं।
वो कश्मीर जिसे दुनिया का स्वर्ग कहा जाता है भी वहाबी कट्टरपंथ की वजह से अपने सिनेमा सिनेमा घरों पर ताला लगा चुका है। यह भारत के लिए शर्म की बात है कि एक आजाद देश होने के बावजूद देश के एक हिस्से में भारत के कानून नहीं चलते और अभिव्यक्ति की आजादी के होने के बावजूद देश के एक हिस्से में आप फिल्में नहीं देख सकते हैं।