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Written By Author राम यादव
Last Modified: गुरुवार, 1 जून 2023 (16:16 IST)

न्यूयॉर्क धंस रहा है

न्यूयॉर्क धंस रहा है - New York is Sinking
85 लाख की जनसंख्या वाला न्यूयॉर्क अमेरिका का सबसे बड़ा, सबसे धनी और सबसे वैभावशाली शहर माना जाता है। दुनिया के अनिगनत लोग अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार उसे देखने के सपने सजाते हैं। जिन लोगों के ऐसे सपने हैं, उन्हें अब ज़रा फुर्ती दिखानी होगी।   
 
विशेषज्ञों का कहना है कि अटलांटिक महासागर के तट और हडसन नदी के मुहाने पर बसा, एक से एक गगनचुंबी अट्टालिकाओं वाला न्यूयॉर्क अपनी 10 लाख से अधिक इमारतों के भार से धंस रहा है। इस धंसाव के लिए केवल जलवायु परिवर्तन को ही कोसा नहीं जा सकता। तापमान बढ़ने और जलवायु परिवर्तन से समुद्री जलस्तर का निरंतर ऊपर उठना भी एक तथ्य अवश्य है, लेकिन इससे तो सारी दुनिया प्रभावित हो रही है।
 
न्यूयॉर्क की समस्या यह है कि उसे उसकी विपुल संपन्नता का भार एक से दो मिलीमीटर वार्षिक की दर से धंसा रहा है। यह दर बहुत कम लग सकती है, लेकिन अन्य तटवर्ती शहरों की तुलना में न्यूयॉर्क समुद्री जलस्तर के उठाव से भी भविष्य में अपेक्षाकृत अधिक प्रभावित हुआ करेगा। अनुमान है कि समुद्री जलस्तर 2050 तक आज की अपेक्षा पूरी दुनिया में 20 से 60 सेंटीमीटर तक ऊपर उठ जाएगा। 
 
न्यूयॉर्क में आई बाढ़ : चट्टानी ज़मीन पर बनी गगनचुंबी इमारतें शायद ही कभी धंसती हैं। किंतु न्यूयॉर्क क्योंकि अटलांटिक महासागर के तट और हडसन नदी के मुहाने पर बसा है, इसलिए उसके नीचे की ज़मीन चट्टानी नहीं, बल्कि अपेक्षाकृत नरम मिट्टी की बनी है। एक अमेरिकी विशेषज्ञ टीम ने अपने सर्वे में यही पाया है। 2012 में आए तूफ़ान सैंडी के कारण उठी लहरों ने कई तटवर्ती इलाकों को समुद्री पानी से भर दिया था।
 
2021 में इडा नाम का एक चक्रवाती तूफ़ान आया। उसकी मूसलाधार वर्षा से न्यूयॉर्क की सड़कों के नीचे की जलनिकासी प्रणाली फ़ेल हो गई। शहर के कई हिस्सों में बाढ़ आ गई। अमेरिकी भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण कार्यालय के टॉम पार्सन्स की देखरेख में करवाए गए एक अध्ययन का तो यह भी कहना है कि जलवायु परिवर्तन से न्यूय़ॉर्क वाले पूरे क्षेत्र में तूफ़ानों की संख्या बढ़ेगी। यही नहीं, अमेरिका के अटलांटिक महासागर वाले पूर्वी तट पर समुद्री जलस्तर में उठाव, दुनिया में और कहीं की तुलना में, तीन-चार गुना अधिक हो सकता है।
 
इमारतों का वज़न 76 अरब 40 करोड़ टन : न्यूयॉर्क की अत्यंत भारी गगनचुंबी अट्टालिकाओं के कारण भी वहां ज़मीन धंसने से बाढ़ का ख़तरा बढ़ रहा है। नवीनतम मॉडलिंग और आकलन विधियों से की गई गणनाओं के आधार पर भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण टीम इस निष्कर्ष पर पहुंची कि लगभग 800 वर्ग किलोमीटर पर बनी न्यूयॉर्क शहर की सभी इमारतों का कुल वज़न 76 अरब 40 रोड़ टन है। सड़कें, पुल और रेलवे लाइनें तथा वाहनों का भार इस गणना में शामिल नहीं है। 
 
भारत के तटवर्ती महानगरों में भी गगनचुंबी अट्टालिकाओं का शौक बहुत बढ़ रहा है। देर-सवेर भारत के महानगरों में भी न्यूयॉर्क जैसा हाल हो सकता है।
 
कहां ज़मीन कितनी धंस रही है, यह इमारतों के वज़न के साथ-साथ इस पर भी निर्भर करता है कि वहां की ज़मीन किस प्रकार की मिट्टी की बनी है। चिकनी मिट्टी वाली ज़मीन तथा कहीं और से लाकर भराई की गई ज़मीन पर भारी इमारतों के निर्माण से उनके नीचे की ज़मीन, समय के साथ 7.5  से लेकर 60 सेंटीमीटर तक, यानी औसतन 29 सेंटीमीटर तक धंस सकती है। जहां ज़मीन जितनी अधिक धंसेगी, वहां बाढ़ के पानी की गहराई भी उतनी ही अधिक होना स्वाभाविक है। अन्य प्रकार की मिट्टियों वाली ज़मीन इतना अधिक नहीं, बल्कि 6 से 12 सेंटिमीटर तक ही धंसती पाई गई है। 
 
ज़मीन की बनावट भी महत्व है : वैज्ञानिकों ने पाया है कि चट्टानी ज़मीन के प्रसंग में यह धंसाव केवल 0 से 5 मिलीमीटर के बराबर होता है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि चट्टानी ज़मीन में जो भी बदलाव होता है, वह कोई इमारत बन कर तैयार होने तक हो जाता है, उसके बाद शायद ही कभी। न्यूयॉर्क और उसके आस-पास वाले क्षेत्र के साथ एक समस्या यह भी है कि वहां पिछले हिमयुग के समय से ही कुछ न कुछ धंसाव होता रहा है। जहां भारी-भरकम ऊंची-ऊंची इमारतें नहीं भी हैं, वहां भी जमीन कुछ न कुछ धंसती पाई गई है। वहां के स्टेटन द्वीप के उत्तर में भारी धंसाव भी देखा गया है।  
 
तूफ़ान सैंडी के बाद के एक सर्वेक्षण से पता चला कि बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में 90 प्रतिशत इमारतें ऐसे क्षेत्रों के लिेए निर्धारित मानकों के अनुसार नहीं बनी थीं। भविष्य में न्यूयॉर्क के सबसे महंगे और जगप्रसिद्ध मैनहटन क्षेत्र के बाढ़ से प्रभावित होते रहने की विशेष संभावना बताई जा रही है। न्यूयॉर्क के हृदय के समान इस केंद्रीय हिस्से का दक्षिणी सिरा समुद्रतल से मात्र दो मीटर ऊपर है। पूरा न्यूयॉर्क शहर भी समुद्रतल से इस ससमय औसतन केवल 10 मीटर ऊपर है। अमेरिकी विशेषज्ञ टीम का अनुमान है कि अगले 80 वर्षों में अमेरिका के पूर्वी तट वाले महानगर डेढ़ मीटर तक धंस जाएंगे। 
 
हमारे लिए क्या परिणाम होने वाले हैं : वैश्विक तापमान बढ़ने के साथ न केवल वैश्विक जलवायु भी बदल रही है, सागरों-महासागरों का पानी भी तापमान बढ़ने के साथ गरम हो कर फैल रहा है। पृथ्वी पर के दोनों ध्रुवों और बर्फ से ढके पहाड़ों पर की बर्फ भी पिघल कर नदियों के रास्ते से समुद्रों में पहुंच रही है। इससे समुद्रों के अब तक सूखे रहे तटवर्ती इलाके डूबने लगेंगे। अमेरिकी संस्था 'क्लाइमेट सेंट्रल' ने इन्हीं दिनों एक नक्शे के द्वारा दिखाने का प्रयास किया है कि इन परिवर्तनों के हमारे लिए क्या परिणाम होने वाले हैं। 
 
'क्लाइमेट सेंट्रल' का नक्शा दिखाता है कि भविष्य में किन जगहों का स्वरूप बदलेगा और कौन-सी जगहें संभवतः जल्द ही डूबने वाली हैं। इन नक्शों के अनुसार 2100 तक 64 करोड़ लोग अपने घरबार गंवा सकते हैं। अनुमान है कि तब तक समुद्री जलस्तर 2 मीटर तक ऊपर उठ सकता है। शंघाई, मुंबई और कोलकता जैसे शहर तथा बांग्लादेश, वियतनाम, थाइलैंड और इंडोनेशिया जैसे देशों के बहुत से हिस्से पानी में डूब चुके होंगे। यूरोप भी इस विपदा से अछूता नहीं रह पाएगा। 2100 तक वेनिस, लिस्बन, एम्सटरडम, हैम्बर्ग और लंदन जैसे यूरोपीय तटवर्ती शहरों में भी समुद्री लहरें ठाठें मार रही होंगी।
 
'क्लाइमेट सेंट्रल' के अनुसार, इस आपदा से बचना है, तो उस समय तक पृथ्वी पर कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में भारी कमी हुई होनी चाहिये। 2020 में यह उत्सर्जन 34.8 अरब टन के बराबर था। सभी जानते हैं कि कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन पृथ्वी पर 'ग्रीन हाउस इफ़ेक्ट' की तरह तापमान बढ़ाता है। वैज्ञानिकों को संदेह है कि सूर्य की भी तापमान बढ़ाने में एक भूमिका है। पर कितनी, यह स्पष्ट नहीं है। स्पष्ट इतना ही है कि समय के साथ सूर्य की सक्रियता और उसकी विशालता बढ़ती जाएगी। कुछेक अरब वर्षों में वह इतना फूल चुका होगा कि पृथ्वी उसकी आंच से पिघल जाएगी और उसमें समा कर अस्तित्वहीन हो जाएगी। यह विषय भी जल्द ही।