मंगलवार, 26 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. अंतरराष्ट्रीय
  4. Near Extinction of Human Race
Written By Author राम यादव

दुनिया में तब केवल 1300 स्त्री-पुरुष ही बचे थे, लगभग विलुप्त हो गई थी मानव जाति

Human Race
Near Extinction of Human Race: आज पृथ्वी पर लगभग आठ अरब लोग रहते हैं। अतीत में एक समय ऐसा भी आया था, जब मानव जाति लगभग लुप्त हो गई थी। एक अध्ययन के अनुसार, मानव जाति के करीब 99 प्रतिशत सीधे पूर्वज लगभग 9 लाख वर्ष पूर्व विलुप्त हो गए थे। उस समय — आधुनिक मानव होमो सैपियन्स के उद्भव से बहुत पहले — केवल लगभग 1300 ही ऐसे स्त्री-पुरुष रह गए थे, जिनकी संतानें हुईं। यह कहना है एक अंतरराष्ट्रीय पुरातात्विक शोध ग्रुप का 'साइंस' पत्रिका में।
 
इन शोधकों का कहना है कि जनसंख्या विलोप का यह संकट लगभग 1,17,000 वर्षों तक चला। इस संकट ने मानवता को पूरी तरह विलुप्त हो जाने के कगार पर ला दिया। उस समय के आदि मानवों के विनाश का कारण संभवतः जलवायु परिवर्तन था।
 
अधिकांश आनुवंशिक विविधता नष्ट हो गई। शंघाई में चीनी विज्ञान अकादमी के वांगजी हू के नेतृत्व वाली इस टीम ने यह गणना विभिन्न उद्भव वाले 3,154 आधुनिक लोगों के जीनोम (समग्र जीनों) के विश्लेषण के आधार पर की है। आनुवंशिक विविधता का विश्लेषण करने की एक नई जटिल तकनीक के आधार पर शोधकर्ताओं ने 9 लाख पूर्व की उस विलुप्त होती जनसंख्या के आकार को निर्धारित किया है।
 
इसके अनुसार, मानव जाति के और भी आदिपूर्वज — यानी होमो सैपियन्स के अपने पूर्वज, जो उनसे 3,00,000 साल पहले उभरे थे — लगभग 9,30,000 साल पहले तक केवल 1,00,000 व्यक्तियों की आबादी से घटते-घटते, 98.7 तक प्रतिशत तक घट गए थे। समझा जाता है कि इसके बाद, केवल क़रीब 1,280 स्त्री-पुरूष ही ऐसे बचे थे, जो नई संतानें पैदा कर सकते थे।
 
एक बड़ा हिस्सा लुप्त हो गया : वह एक ऐसा दौर था, जब आदिकालीन मानवीय आनुवंशिक विविधता का एक बड़ा हिस्सा नष्ट हो गया। यह दौर लगभग 1,17,000 वर्ष चला था और हमारे आज के समय से लगभग 813,000 वर्ष पूर्व तक चलता रहा। शोधकों का कहना है जनसंख्या घटते रहने के इस लंबे दौर का अंत होने के बाद हमारे बचे हुए आदिकालीन पूर्वजों की संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ने लगी। अनुमान है कि इस का कारण शायद यह रहा होगा कि तब तक वे आग को नियंत्रित करना सीख गए थे। 
 
शोधक टीम का यह भी मानना है कि जनसंख्या में गिरावट ने होमो इरेक्टस (सीधे खड़े होकर चलने वाले मनुष्य) की आबादी को प्रभावित किया, जो बाद में होमो सैपियन्स के अलावा निएंडरथालर और देनिसोवन नाम की आदिकालीन मानव प्रजातियों के रूप में विकसित हुई। हालाँकि, इस निष्पत्ति पर अभी कोई आम सहमति नहीं है।
 
हमारे पूर्वजों की प्रजातियां : निएंडरथालर प्रजाति वाले मनुष्य के निशान जर्मनी के ड्युसलडोर्फ शहर के पास की निएंडरथाल घाटी में मिले थे और देनिसोवन मनुष्य लाली प्रजाति के निशान 2010 में रूसी साइबेरिया के अल्ताई पर्वतों के पास तथा तिब्बत में मिले हैं। एक टिप्पणी में, ब्रिटिश संग्रहालय के लंदन स्थित विशेषज्ञ निक एश्टन और प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय के क्रिस स्ट्रिंगर लिखते हैं कि होमो सैपियन्स, निएंडरथलर और देनिसोवन के अंतिम सामान्य पूर्वज दस लाख साल से भी पहले जीवित रहे होंगे। 
 
वांगजी हू की शोध टीम का कहना है कि उस चरण के मनुष्यों के केवल कुछ ही ऐसे जीवाश्म पाए गए हैं, जो टीम द्वारा निर्धारित की गई जनसंख्या में भारी गिरावट की पुष्टि करते हैं। इस टीम ने  लिखा है, 'यह गंभीर बाधा 9,50,000 से 6,50,000 साल पहले अफ्रीका और यूरेशिया में होमिनिड जीवाश्मों के मिलने की अत्यधिक दुर्लभता को समझा सकती है।' यह दुर्लभता होमो इरेक्टस के मामले में, जो उस समय एशिया में पहले ही फैल चुका था, देखने में नहीं आती।
 
मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन : शोधक टीम को संदेह है कि हमारे बहुत आरंभिक पूर्वजों की जनसंख्या में गिरावट का मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन रहा हो सकता है। लगभग 9,00,000 वर्ष पहले, हिमनदों (ग्लेशियर) का बनना बहुत तेज हो गया रहा होगा और बहुत लंबे समय तक चला होगा। इसके साथ ही समुद्रों के तापमान में भी गिरावट हुई होगी। लंबे समय तक सूखा पड़ा होगा और अफ्रीका तथा यूरेशिया के जीव-जंतुओं की संख्या में भी भी उथल-पुथल मची होगी। यानी, इस सबसे उस समय के शिकारी और संग्रही आदि मनुष्य को जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ भोजन के अभाव का भी सामना करना पड़ा होगा।
 
इस खोज से यही संदेश मिलता है कि पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तनों का दौर आता रहा है। आज हम भी तेज़ी से भी बढ़ते हुए जलवायु परिवर्तन का सामना कर रहे हैं। 9 लाख वर्ष पूर्व हिमयुग था। तापमान बुरी तरह गिर गया था। कोई प्रौद्योगिक सभ्यता नहीं थी। आज आज तापमान लगातार बढ़ रहा है। हमारे पास प्रौद्योगिक सभ्यता है। तब भी हम जलवायु परिर्तन को रोक नहीं पा रहे हैं। सच तो यह है कि तरह-तरह के उद्योग-धंधों, कल-कारखानों और तेज़गति वाहनों वाली हमारी आधुनिक प्रौद्योगिक सभ्यता ने ही हमारे समय के जलवायु परिवर्तन को न्योता दिया है।