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Last Modified: गुरुवार, 18 जनवरी 2018 (18:23 IST)

यहां सिर्फ एक फीसदी बचे हैं मेल कछुए

यहां सिर्फ एक फीसदी बचे हैं मेल कछुए - male turtle virually extinct in great barrier reef
सिडनी। नॉर्दर्न ग्रेट बैरियर रीफ में बड़ी संख्या में हरे मादा कछुए टहलते हुए दिख जाते हैं लेकिन असल में इसे बड़ी समस्या माना जा रहा है। सिर्फ मादा कछुओं का बचे रहना इस प्रजाति के लिए खतरे से खाली नहीं है।
 
नॉर्दर्न ग्रेट बैरियर रीफ ऑस्ट्रेलिया का एक बेहद खूबसूरत समुद्री इलाका है। यह दुनिया में कछुओं की सबसे बड़ी कॉलोनी है जहां इस दुर्लभ प्र‍जाति के करीब 2 लाख कछुए दिख जाते हैं। समस्या यह है कि इनमें मेल कछुए नहीं हैं। इस रीफ पर बसने वाले 99 फीसदी से ज्यादा कछुए फीमेल हैं और इसकी वजह ग्लोबल वार्मिंग को माना जा रहा है।
 
ग्रीन सी टर्टल को विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रही प्रजाति माना जाता है। नॉर्दर्न रीफ पर 1990 के दशक से ही यह बदलाव देखा जा रहा है। करेंट बायोलॉजी जर्नल में हाल में प्रकाशित एक स्टडी में यह दावा किया है कि यह चेतावनीजनक स्थ‍िति ग्लोबल वार्मिंग की वजह से है।
 
वेबसाइट द वेदर नेटवर्क के अनुसार तापमान बढ़ने से कछुओं कें अंडों के इंक्यूबेशन के दौरान उनके जेंडर पर असर पड़ता है। वातावरण अगर ठंडा रहा तो ज्यादा मेल कछुए पैदा होते हैं लेकिन गर्म वातावरण में फीमेल कछुए ज्यादा होते हैं।
 
तापमान के आधार पर सेक्स निर्धारण की यह स्थिति रेप्टाइल प्रजाति के कई प्राणियों में होती है। तापमान बढ़ने से फीमेल कछुओं की संख्या का बढ़ना एक अच्छी खबर तो है, लेकिन जब पूरी तरह से फीमेल कछुए ही बचें तो यह एक विनाश वाली स्थ‍िति ही हो सकती है, क्योंकि इससे कछुओं के प्रजनन पर गंभीर असर पड़ेगा और धीरे-धीरे वे विलुप्त ही हो जाएंगे।
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