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जर्मन मीडिया को भारतीय मुसलमान प्रिय हैं, जर्मन मुसलमान अप्रिय

जर्मन मीडिया को भारतीय मुसलमान प्रिय हैं, जर्मन मुसलमान अप्रिय - German media loves Indian Muslims
German media loves Indian Muslims : सवा आठ करोड़ की जनसंख्या वाले ईसाई देश जर्मनी में लगभग 55 लाख लोग मुस्लिम हैं। एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, जिसे अब इंटरनेट पर से हटा दिया गया है, उन्हें अपने साथ व्यापक भेदभाव और बहिष्कार का ही नहीं, शत्रुता का भी सामना करना पड़ता है।
 
भारत में लोकसभा के लिए चुनाव शुरू होते ही पश्चिम के ईसाई देशों का मीडिया भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री मोदी पर कुछ ऐसे टूट पड़ा, मानो चुनावों का केवल एक ही उद्देश्य है- भारत को एक हिन्दू राष्ट्र बनाना और मुसलमानों की नाक में दम कर देना। विशेषकर जर्मन मीडिया प्रधानमंत्री मोदी को इतनी सहजता से हिटलर जैसा फ़ासिस्ट तानाशाह बताने लगा, जैसे हिटलर की तरह वे भी विस्तारवादी युद्ध छेड़ने और तीन करोड़ लोगों के मरने के लिए उत्तरदायी हैं। दूसरी ओर स्वयं जर्मनी या यूरोप के अन्य देश इतने विशाल हृदय हैं कि भारत में मुस्लिमों की दयनीय दशा उनसे सही नहीं जा रही। मानो, वे तो अपने यहां सदा पलक-पांवडे बिछाकर उनकी आरती उतारा करते हैं।
 
यह जानने के लिए कि जर्मनी में रहने वाले मुस्लिमों की क्या स्थिति है, उनके साथ कैसा बर्ताव होता है, जर्मनी के गृह मंत्रालय ने 2020 में नौ स्वतंत्र विशेषज्ञों की एक समीक्षा समिति बनाई। इस समिति ने पाया कि जर्मन जनता के बीच मुस्लिम विरोधी रवैया उच्च स्तर पर लगातार बना हुआ है। उस की अंतिम रिपोर्ट के अनुसार, जर्मनी का हर दो में से एक व्यक्ति मुस्लिम विरोधी बातों से सहमत है। 
 
सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय : भारत की तरह जर्मनी में भी मुसलमान सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय हैं। पर वे सदियों से नहीं, 1945 में द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त होने के बाद से जर्मनी में आकर बसने लगे। युद्ध-जर्जरित जर्मनी को उस समय देश के पुनरनिर्माण के लिए बाहरी श्रमिकों की भीषण ज़रूरत थी। तथाकथित अतिथि श्रमिकों के तौर पर काम करने के लिए उन्हें मुख्यतः तुर्की से लाया गया।

बाद में अन्य मुस्लिम देशों के लोग भी नौकरी-धंधे की तलाश में वैध-अवैध तरीकों से स्वयं आने और जर्मनी में बसने लगे। पिछले कुछ दशकों से मुस्लिम ही जर्मनी सहित पश्चिमी यूरोप के सभी देशों में मुख्यतः शरणार्थियों के रूप में भारी संख्या में आ रहे हैं और स्वाभाविक है कि स्थानीय जनता के भेदभावी विरोध का सामना भी कर रहे हैं।
 
इस बीच जर्मनी में रह रहे अधिकांश मुस्लिमों के पास जर्मन नागरिकता है, पर इतने भर से वे न तो दिलो-दिमाग से पूरी तरह जर्मन बन गए हैं और न ही आम जर्मन उन्हें अपने बराबर मान पा रहे हैं। जर्मनी के गृह मंत्रालय के लिए तैयार की गई रिपोर्ट में विशेषज्ञ समिति का कहना है कि जर्मनी के मुसलमान 'देश में सबसे अधिक दबाव में रहने वाले अल्पसंख्यकों में से एक हैं। उन्हें प्रायः बहिष्कार और भेदभाव ही नहीं, हिंसा भी झेलनी पड़ती है। ऐसी घटनाएं इक्की-दुक्की नहीं, बल्कि बार-बार होती हैं और भारी मानसिक तनाव का कारण बनती हैं।
 
मुस्लिम महिलाएं सबसे अधिक प्रभावित : रिपोर्ट के अनुसार, हिजाब पहनने वाली मुस्लिम महिलाएं अपने साथ जर्मनों के भेदभाव एवं दुराव से विशेष रूप से प्रभावित होती हैं। जो मुसलमान अपनी वेशभूषा से या किसी मुस्लिम संगठन की सदस्यता वाले प्रतीकों द्वारा खुलेआम दिखाते हैं कि वे मुसलमान हैं, उन्हें अपने साथ जर्मनों का अप्रिय व्यवहार सबसे अधिक झेलना पड़ता है। हिजाब पहनने वाली महिलाओं ने समति के सदस्यों को बताया कि उन्हें अपने प्रति 'शत्रुता का विशेष रूप से सामना' करना पड़ता है। उनके बारे में जर्मन समाज में पक्की धारणा बन गई है कि उनमें आत्मनिर्भरता की कमी होती है। इसी प्रकार, मुस्लिम पुरुषों का कहना है कि उन्हें हमेशा आक्रामक और हिंसक माना जाता है।
 
जर्मनी के विशेषज्ञ, समाजशास्त्री और विभन्न संगठनों-संस्थाओं के प्रतिनिधि जब मुस्लिम विरोधी भावनाओं की बात करते हैं, तो उनका तात्पर्य होता है जर्मन समाज के ऐसे जनसाधारण, जिनके लिए सभी मुसलमान पिछड़ेपन से ग्रसित, अक्खड़ और ख़तरनाक लोग हैं। इससे दोनों पक्षों के बीच चाहे-अनचाहे एक 'अजनबीपन' या यहां तक कि शत्रुता भी पैदा हो जाती है। दोनों पक्ष एक-दूसरे की बातों के जाने-अनजाने ग़लत अर्थ लगाने और आक्रामक बनने लगते हैं।

रिपोर्ट तैयार करने वाले विशेषज्ञों की समिति ने जर्मनी की संघीय सरकार को सलाह दी है कि देश में व्याप्त मुस्लिम विरोधी भावना से निपटने के लिए एक विशेषज्ञ परिषद का गठन किया जाना चाहिए और उसके सुझावों पर अमल करने के लिए एक संघीय आयुक्त होना चाहिए।
 
मीडिया में एकतरफा रिपोर्टिंग : सरकार को यह भी सुझाव दिया गया है कि जर्मन राज्यों के शिक्षा मंत्रालयों को चाहिए कि वे स्कूली पाठ्यक्रमों और पाठ्यपुस्तकों को संशोधित करें और राजनीतिक शिक्षा को भी एक विषय बनाएं। संस्थागत नस्लवाद से लड़ने के लिए सरकारी विभागों में काम करने वाले कर्मचारियों को जागरूक किया जाए। समीक्षा समिति का यह भी कहना है कि इस समय अधिकांश जर्मन मीडिया में इस्लाम के बारे में एकतरफा, संघर्ष-उन्मुख रिपोर्टिंग होती है। इंटरनेट और सोशल मीडिया पर इस्लाम की छवि और भी अधिक नकारात्मक है। ईसाई मीडिया एकतरफा हो कर इस्लाम को पेश करता है। 
 
जर्मनी में रहने वाले मुसलमानों के बारे में यह अपने ढंग की पहली रिपोर्ट है। चुने हुए विशेषज्ञों द्वारा एक ऐसा अध्ययन तैयार करवाने का विचार 2020 में जर्मनी के तत्कालीन गृह मंत्री होर्स्ट ज़ेहोफ़र को आया था। जर्मनी के हानाउ शहर में उस समय नस्लवाद से प्रेरित एक हमला उनके इस विचार का जन्मदाता बना था। ज़ेहोफ़र ने ही इस काम के उपयुक्त सभी विशेषज्ञ चुने थे। 400 पन्नों की यह रिपोर्ट दिखाती है कि है कि जर्मनी में 'इस्लामोफोबिया' (इस्लाम से भय) कैसे पैदा होता है और वह किस हद तक जाता है। जर्मनी की वर्तमान गृह मंत्री नैन्सी फ़ेज़र ने रिपोर्ट के निष्कर्षों का अध्ययन करने और आवश्यक क़दम उठाने का वादा किया है।
 
इस्लामवाद लगातार आगे बढ़ रहा है : इसी क्रम में, सबसे अधिक जनसंख्या वाले जर्मन राज्य 'नॉर्थ राइन वेस्टफालिया' (NRW) के गृह मंत्री हेरबेर्ट रॉएल ने, 14 मई को अपने राज्य में 'इस्लामवाद की दशा' नाम से एक अलग रिपोर्ट पेश की। उनके शब्दों में, इस्लामवाद लगातार आगे बढ़ रहा है। सोशल मीडिया नेटवर्क द्वारा लाइफ़ स्टाइल इस्लामवादी अपने अतिवादी संदेश युवाओं तक पहुंचा रहे हैं।...इस्लामी घृणा प्रचारकों ने टिकटॉक, इंस्टाग्राम या टेलीग्राम द्वारा अपना प्रचार करने में महारत हासिल करली है।
 
रॉएल के अनुसार, (अफ़ग़ानिस्तान में स्थित) इस्लामिक स्टेट प्रॉविंस खोरासान (ISPK) इस्लामी हिंसा की उर्वर भूमि बन गया है।...ऐसे संकेत मिले हैं कि इन गर्मियों में जर्मनी में होने वाली यूरोपीय फुटबॉल चैम्पियनशिप के समय पूर्णतः समन्वित आतंकवादी हमला करने की योजना बना रहा है। इसराइल को ठुकराने पर एकमतः जर्मनी के  नॉर्थ राइन वेस्टफालिया (NRW)  राज्य के गृह मंत्री की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस राज्य में रहने वाले 2,600 मुस्लिम, इस्लाम की कट्टर 'सलाफ़ी' विचारधारा के कायल हैं। उनमें से 600 हिंसा की पैरवी करते हैं और 187 ख़तरनाक माने जाते हैं। 
 
जर्मनी में रहने वाले मुसलमान चाहे जितने अलग-अलग इस्लामी फ़िरकों के सदस्य हों, इसराइल को ठुकराने की उनकी आक्रामक सोच एक जैसी है। इस संदर्भ में उल्लेखनीय है कि जर्मनी की पुलिस ने 2017 में पहली बार ऐसे अपराधों के आंकड़े विधिवत दर्ज करना शुरू किया, जो मुसलमानों के प्रति घृणा या शत्रुतापूर्ण भावना से प्रेरित थे। उस साल जर्मनी में रहने वाले मुसलमानों के अपमान, उनसे घृणा, उन्हें मारने-पीटने, घायल करने या उन्हें माली नुकसान पहुंचाने के कुल मिलाकर 1,075 आपराधिक मामले दर्ज किये गए थे। बाद के वर्षों में ऐसे आपराधिक मामलों की संख्या 700 से 1000 के बीच घटती-बढ़ती पाई गई।
 
जर्मनी के घोर दक्षिणपंथी : ऐसी अधिकांश घटनाओं के लिए जर्मनी के घोर दक्षिणपंथी विचारधारा वाले लोग दोषी पाए गए। उन्हें शिकायत है कि मुसलमान अपने मज़हब को लेकर बहुत कट्टरपंथी होते हैं। दक्षिणपंथी जर्मन चाहते हैं कि मुसलमानों की मज़हबी स्वतंत्रता पर लगाम लगे या यह स्वतंत्रता उनसे छीन ली जाए। दूसरी ओर,जर्मनी में रहने वाले मुसलमानों को शिकायत है कि आम जर्मन उन्हें आतंकवादी, उग्रवादी, जिहादी, लड़ाई-झगड़ा करने वाला और महिलाओं का दमन-शोषण करने वाला मान कर उनसे दूर रहना चाहता है।
 
यह बात सच है कि दुनिया के अन्य देशों की तरह, जर्मनी की जनता भी इस्लाम को बहुत संदेह की दृष्टि से देखती है। जर्मनी के प्रसिद्ध बेर्टेल्समान प्रतिष्ठान ने 2022 में यह जानने के लिए एक जनमत सर्वेक्षण किया कि जर्मन जनता इस्लाम को एक समृद्धि के तौर पर देखती है या एक ख़तरे के तौर पर। 50 प्रतिशत से अधिक जर्मनों ने कहा कि वे इस्लाम को एक ख़तरे के तौर पर देखते हैं। 15 प्रतिशत ने कहा कि उन्हें किसी दूसरे धर्म से उतना डर नहीं लगता, जितना इस्लाम से डर लगता है। 70 से 75 प्रतिशत जनता इस्लाम को बहुत पिछड़ा हुआ, महिलाओं का शत्रु और आतंकवाद का समर्थक मानती है।
 
मज़हब, क़ानून से ऊपर : इसी प्रकार के कुछ दूसरे जनमत सर्वेक्षणों में देखा गया कि जर्मनी में रहने वाले मुस्लिम अपने मज़हब के कहीं अधिक कट्टर समर्थक हैं। अलग-अलग सर्वेक्षणों में 43 से 54 प्रतिशत ने कहा, असली मज़हब तो एक ही है- इस्लाम। एक-तिहाई ने कहा, मज़हब के नियमों का पालन उनके लिए किसी देश के क़ानूनों के पालन से ऊपर है। मज़हब पहले, देश का क़ानून बाद में।
 
ऐसे में आश्चर्य की बात नहीं कि जर्मनी को एक इस्लामी ख़लीफ़त बनाने के लिए उसके हैम्बर्ग शहर में इस वर्ष अप्रैल और मई के केवल दो सप्ताहों में, दो सुनियोजित बड़े प्रर्शन हो चुके हैं। ख़लीफ़त की इस मांग ने जर्मन जनता और नेताओं के कान और अधिक खड़े कर दिए हैं। जर्मन मीडिया तब भी आंख मूंद कर भारत की ही लानत-मलानत करता रहेगा। ऐसा आज से ही नहीं है, तब से है, जब से भारत एक स्वतंत्र देश है; सरकार चाहे जिस किसी पार्टी या प्रधानमंत्री की रही हो।
(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण वेबदुनिया के नहीं हैं और वेबदुनिया इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)