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Last Modified: मंगलवार, 22 अक्टूबर 2019 (14:03 IST)

ऑस्ट्रेलिया में क्यों काले हुए अखबार के पहले पन्ने, याद आया भारत का आपातकाल

ऑस्ट्रेलिया में क्यों काले हुए अखबार के पहले पन्ने, याद आया भारत का आपातकाल - australian papers black protest media restrictions
सिडनी। ऑस्ट्रेलिया में सोमवार सुबह-सुबह लोग अचानक चौंक गए, जब उन्हें प्रमुख अखबारों के पहले पन्ने काले नजर आए। दरअसल, वहां की मीडिया ने यह सब अपनी एकजुटता के प्रदर्शन के लिए किया, जो सरकार द्वारा मीडिया पर थोपी जा रही पाबंदियों से गुस्सा है।

इस घटना से भारत के लोगों को भी 1975 में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा लगाया गया आपातकाल भी याद आ गया, जब मीडिया पर कड़े प्रतिबंध लागू कर दिए गए थे। 
 
ऑस्ट्रेलियन मीडिया ने सरकार के विरोध में पहले पन्ने के शब्दों को काला करते हुए लिखा है कि 'यह प्रकाशन के लिए नहीं-सीक्रेट'।
 
मीडियाकर्मियों का मानना है कि यह विरोध ऑस्ट्रेलियाई सरकार के उस कानून को लेकर भी है, जिसके तहत देश में गोपनीयता का माहौल बनाया जा रहा है। मीडिया ने नागरिकों से भी कहा है कि वे इस मामले को लेकर सवाल उठाएं। 
 
हालांकि ऑस्ट्रेलिया की सरकार का कहना है कि वह प्रेस की स्वतंत्रता का समर्थन करती है, लेकिन कानून से ऊपर कोई भी नहीं है। 
 
उल्लेखनीय है कि जून माह में पुलिस ने ऑस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन (एबीसी) और न्यूज कॉर्प ऑस्ट्रेलिया के पत्रकारों के घर पर छापा मारा था। संपादक लिसा डेविस ने ट्‍वीट कर कहा कि यह अभियान पत्रकारों के लिए नहीं है, बल्कि यह ऑस्ट्रेलिया के लोकतंत्र के लिए है।
 
वहीं न्यूज कॉर्प ऑस्ट्रेलिया के कार्यकारी चेयरमैन माइकल मिलर ने अखबार के पहले पन्ने ट्वीट करते हुए कहा कि नागरिकों को सवाल उठाना चाहिए कि वे (सरकार) मुझसे क्या छिपाने की कोशिश कर रहे हैं। 
भारत में हुए थे अखबारों के पन्ने काले : असल में ऑस्ट्रेलियन मीडिया के इस फैसले ने भारत के 1975 के दौर की याद दिला दी, जब आपातकाल के दौरान सरकार ने विपक्षी दलों के नेताओं और मीडिया पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए थे।
 
25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल घोषित किया गया था। उस समय नेताओं को जेल में डाल दिया गया था और प्रमुख समाचार-पत्रों की बिजली काट दी गई थी, ताकि सरकार के खिलाफ कुछ भी न छप सके। नेताओं की गिरफ्तारी की खबरें आम आदमी तक नहीं पहुंचें। विरोधस्वरूप कई अखबारों ने अपने संपादकीय पृष्ठ भी काले कर दिए थे।
 
तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने चारों समाचार एजेंसियों पीटीआई, यूएनआई, हिंदुस्तान समाचार और समाचार भारती को खत्म करके उन्हें ‘समाचार’ नामक एजेंसी में विलीन कर दिया। इसके अलावा सूचना और प्रसारण मंत्री ने महज छह संपादकों की सहमति से प्रेस के लिए ‘आचारसंहिता’ की घोषणा कर दी। जिस भी पत्रकार ने इसका विरोध किया उन्हें जेल में डाल दिया गया।
 
बड़ोदरा के ‘भूमिपुत्र’ के संपादक को तो गिरफ्तार किया गया। सबसे ज्यादा परेशान इंडियन एक्सप्रेस समूह को किया गया। इसका  प्रकाशन रोकने के लिए बिजली काट दी गई। उस समय देशभर में सरकार विरोधी मीडिया के खिलाफ दमन चक्र चलाया गया।