जब लगाई महाराजा सिंधिया ने कौड़ी की शर्त
महाराजा माधवराव सिंधिया के साथ रावराजा सर सेठ हुकुमचंदजी के साथ आत्मीय संबंध थे। वर्ष 1924 की बात है, जब दोनों में किसी बात पर एक-एक कौड़ी की शर्त लग गई। महाराजा शर्त जीत गए किंतु सेठ साहब महाराजा को शर्त के मुताबिक कौड़ी भेजना भूल गए। तब महाराजा ने उन्हें कौड़ी भेजने की याद दिलाई। सेठ हुकुमचंद ने साधारण कौड़ी भेजना अपनी शान के खिलाफ समझा।
सेठ साहब ने तब आनन-फानन में स्वर्ण मंडित हीरा-मोती, पन्नाजड़ित एक अति सुंदर कौड़ी तैयार करवाकर महाराजा ग्वालियर को भेज दी। प्रतिक्रियास्वरूप 21 जुलाई 1924 महाराजा ने सेठ हुकुमचंदजी को पत्र लिखा- 'आपके 17 जुलाई के कृपा पत्र के लिए धन्यवाद। मुझे तो सादी और सीधी कौड़ी चाहिए, सोने से मंडित और कीमती जवाहर से जड़ित नहीं। साधारण कौड़ी को रजिस्टर्ड डाक से भेज दीजिए।'
इस पर सर सेठ हुकुमचंद ने सादी कौड़ी भेजी, तब जयविलास ग्वालियर से महाराजा सिंधिया ने 10 अगस्त को दूसरे पत्र में लिखा कि- 'मेरी जीती हुई बाजी की कौड़ी के लिए मैं आपका आभारी हूं। सोने की कौड़ी लौटा रहा हूं। कौड़ी पहुंच की कृपापूर्वक सूचना दें।'