शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. नन्ही दुनिया
  3. प्रेरक व्यक्तित्व
  4. jay prakash narayan
Written By

लोकनायक जेपी : संपूर्ण क्रांति के जनक जयप्रकाश नारायण को जानिए

लोकनायक जेपी : संपूर्ण क्रांति के जनक जयप्रकाश नारायण को जानिए - jay prakash narayan
देश में आजादी की लड़ाई से लेकर वर्ष 1977 तक तमाम आंदोलनों की मशाल थामने वाले जेपी यानी जयप्रकाश नारायण का नाम देश के ऐसे शख्स के रूप में उभरता है जिन्होंने अपने विचारों, दर्शन तथा व्यक्तित्व से देश की दिशा तय की थी। उनका नाम लेते ही एक साथ उनके बारे में लोगों के मन में कई छवियां उभरती हैं।
 
लोकनायक के शब्द को असलियत में चरितार्थ करने वाले जयप्रकाश नारायण अत्यंत समर्पित जननायक और मानवतावादी चिंतक तो थे ही इसके साथ-साथ उनकी छवि अत्यंत शालीन और मर्यादित सार्वजनिक जीवन जीने वाले व्यक्ति की भी है। उनका समाजवाद का नारा आज भी हर तरफ गूंज रहा है। आज उनकी जयंती पर हम प्रकाश डाल रहे हैं उनके जीवन सफर पर...
 
जीवन परिचय-
 
जयप्रकाश का जन्म 11 अक्टूबर 1902 में सिताबदियारा बिहार में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री 'देवकी बाबू' और माता का नाम 'फूलरानी देवी' था। बचपन में उन्हें चार वर्ष तक दांत नहीं आने की वजह से उनकी माताजी उन्हें 'बऊल जी' कहती थीं।
 
उन्होंने जब बोलना शुरू किया तो वाणी में ओज झलकने लगा। 1920 में जय प्रकाश का विवाह बिहार के मशहूर गांधीवादी 'बृज किशोर प्रसाद' की पुत्री 'प्रभावती' के साथ हुआ। प्रभावती विवाह के बाद कस्तूरबा गांधी के साथ गांधी आश्रम में रहीं।
 
जय प्रकाश ने रॉलेट एक्ट जलियांवाला बाग नरसंहार के विरोध में ब्रिटिश शैली के स्कूलों को छोड़कर बिहार विद्यापीठ से अपनी उच्च शिक्षा पूरी की, जिसे प्रतिभाशाली युवाओं को प्रेरित करने के लिए डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और सुप्रसिद्ध गांधीवादी डॉ. अनुग्रह नारायण सिन्हा ने स्थापित किया गया था।।
 
स्वतंत्रता संग्राम और जयप्रकाश-
 
स्वतंत्रता संग्राम में जयप्रकाश नारायण के योगदानों के बारे में जितना कहा जाए वह कम है। वह विलक्षण प्रतिभा के धनी थे।
 
भारत लौटने पर उन्होंने उस वक्त स्वतंत्रता संग्राम में कूदने का फैसला कर लिया, जब उन्होंने पटना में 'मौलाना अबुल कलाम आजाद' की यह लाइन सुनी, जिसमें उन्होंने कहा था - 'नौजवानों अंग्रेजी शिक्षा का त्याग करो और मैदान में आकर ब्रिटिश हुकूमत की ढहती दीवारों को धराशाही करो और ऐसे हिन्दुस्तान का निर्माण करो जो सारे आलम में खुशबू पैदा करें।' इस वाक्य को सुनकर जेपी के मन में हलचल मच गई और वह आंदोलन में कूद पड़े।
 
1929 में वह कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए।
 
बाद में जब कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन हुआ तो उन्हें उसमें शामिल कर लिया गया और उन्हें पार्टी का महासचिव बनाया गया। बाद के दिनों में कई बार वह जेल भी गए और लाठियां भी खाईं।
 
गांधी जी के 'करो या मरो' के नारे को उन्होंने हमेशा याद रखा। इन्हीं लोगों के अथक प्रयास के बाद 15 अगस्त 1947 को हम आजाद हो गए। लेकिन जयप्रकाश जी की मुख्य भूमिका इसके बाद शुरू होती है।
 
आजादी के बाद जयप्रकाश-
 
भारत के स्वतंत्र होने के बाद 19 अप्रैल 1954 में गया, बिहार में उन्होंने विनोबा भावे के सर्वोदय आंदोलन के लिए जीवन समर्पित करने की घोषणा की और 1957 में उन्होंने लोकनीति के पक्ष मे राजनीति छोड़ने का फैसला किया। लेकिन 1960 के दशक के अंतिम भाग में वह राजनीति में फिर से सक्रिय हो गए।
 
बाद के दिनों में भारतीय राजनीति में फिर से उनकी दमदार वापसी हुई और संपूर्ण क्रांति के नारे के साथ वह पूरे राजनीतिक पटल पर छा गए।
 
संपूर्ण क्रांति- सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। 5 जून 1975 की विशाल सभा में जेपी ने पहली बार ‘सम्पूर्ण क्रांति’ के दो शब्दों का उच्चारण किया था। यह क्रांति उन्होंने बिहार और भारत में फैले भ्रष्टाचार की वजह से शुरू की।
 
लेकिन बिहार में लगी चिंगारी कब पूरे भारत में फैल गई पता ही नहीं चला। बिहार से उठी सम्पूर्ण क्रांति की चिंगारी देश के कोने-कोने में आग बनकर भड़क उठी।
 
इस दिन अपने प्रसिद्ध भाषण में जयप्रकाश ने कहा था कि 'भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी दूर करना, शिक्षा में क्रांति लाना आदि ऐसी चीजें हैं जो आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकतीं। क्योंकि वह इस व्यवस्था की ही उपज हैं। वह तभी पूरी हो सकती हैं जब सम्पूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए और सम्पूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन के लिए क्रांति यानी सम्पूर्ण क्रांति आवश्यक है।'
 
उस समय इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं। जयप्रकाश जी की निगाह में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार भ्रष्ट व अलोकतांत्रिक होती जा रही थी। 1975 में निचली अदालत में इंदिरा गांधी पर चुनावों में भ्रष्टाचार का आरोप साबित हो गया और जयप्रकाश ने उनके इस्तीफे की मांग की।
 
उनका साफ कहना था कि इंदिरा सरकार को गिरना ही होगा। तब इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर दी और जेपी तथा अन्य विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया।
 
तब दिल्ली के रामलीला मैदान में एक लाख से अधिक लोगों ने जय प्रकाश नारायण की गिरफ्तारी के खिलाफ हुंकार भरी थी। उस समय आकाश में सिर्फ उनकी ही आवाज सुनाई देती थी। उसी वक्त राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' ने कहा था 'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।'
 
फिर जनवरी 1977 को आपातकाल हटा लिया गया और लोकनायक के 'संपूर्ण क्रांति आदोलन' के चलते देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी। इस क्रांति का प्रभाव न केवल देश में, बल्कि दुनिया के तमाम छोटे देशों पर भी पड़ा था। वर्ष 1977में हुआ चुनाव ऐसा था जिसमें नेता पीछे थे और जनता आगे थी। यह जेपी के ही करिश्माई नेतृत्व का असर था।
 
8 अक्टूबर 1979 को जेपी ने पटना में अंतिम सांस ली। मरणोपरांत 1998 को भारत सरकार ने जेपी को देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से भी सम्मानित किया।
 
ये भी पढ़ें
Tips to stay Healthy in changing weather : बदलते मौसम में बढ़ती सर्दी, खांसी के 10 सटीक घरेलू इलाज